गरीबों का मसीहा: पढ़िए सुपर 30 के आनंद कुमार की कहानी, पैसे नहीं सपनों की ताकत से चलाते हैं कोचिंग
Shefali Srivastava 13 Jun 2017 12:58 PM GMT
लखनऊ। देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी में जाने का सपना हर इंजीनियरिंग स्टूडेंट का होता है लेकिन मंजिल तक पहुंचना इतना आसान नहीं होता, कई बार गरीबी इनके आड़े आ जाती है। ऐसे में बिहार की सुपर 30 कोचिंग ने आईआईटी जेईई एंट्रेस क्लीयर करने में फिर से बाजी मारी है जो मुफ्त में गरीब बच्चों के सपनों को पूरा करने में मदद करता है ।
इस बार इस कोचिंग के सभी 30 बच्चों ने एग्जाम क्लीयर कर लिया है। कोचिंग के फाउंडर आनंद कुमार ने फेसबुक पर इस सफलता को बयां करते हुए एक पोस्ट लिखा है। वह लिखते हैं,
सफलता के शोर में गुरबत के दर्द को सिमटते देख रहा हूं । पिछले 15 वर्षों से मैं हर साल यही अनुभव करते आ रहा हूं ।
जब मेहनत इरादों के रथ पर सवार होकर अपने सफर पर चल पड़ती है तो लाख मुसीबतों के बाद भी सफलता कदम चूमने को बेकरार हो जाती है और इस बार के आईआईटी प्रवेश परीक्षा के रिजल्ट में मेरे सभी 30 बच्चों ने सफलता के झंडे गाड़कर यह सिद्ध भी कर दिया है।
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आनंद के इन सुपरस्टार्स में एक बेरोजगार पिता का बेटा केवलिन, सड़क किनारे अंडे बेचने वाले का बेटा अरबाज आलम, खेतों में मजदूरी करने वाले का बेटा अर्जुन और भूमिहीन किसान का बेटा अभिषेक शामिल हैं।
सुपर 30 के आनंद की कहानी हम कई जगह पढ़ चुके हैं कि कैसे वे सुविधाओं से वंचित परिवारों के तीस बच्चों को हर साल अपनी कोचिंग में मुफ्त में आईआईटी की कोचिंग देते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इन बच्चों को अपने घर पर रखते हैं और उनकी मां उनके लिए भोजन बनाती हैं।
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सुपर 30 की सफलता पर रियेक्शन देने के साथ उन्होंने अपनी आगे की प्लानिंग बताते हुए लिखा कि जल्द ही वह सुपर 30 का दायरा बढ़ाने जा रहे हैं ताकि 30 से ज्यादा बच्चों को उनकी मंजिल तक पहुंचा सकूं।
उनके प्लान में यूपी के भी शामिल होने की संभावना है जिसका जिक्र उन्होंने कुछ समय पहले लखनऊ में किया था।
संस्थान का खर्चा आनंद खुद अपने पैसों से चलाते हैं और इस बारे में वह लिखते हैं कि सुपर 30 को बड़ा करने के लिए पैसे नहीं चाहिए, हां आपके सपने जरूर चाहिए।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से आया था बुलावा, जा नहीं सके
बिहार के पटना से ताल्लुक रखने वाले आनंद कुमार के पिता पोस्टल डिपार्टमेंट में क्लर्क की नौकरी करते थे। घर की माली हालत अच्छी न होने की वजह से उनकी पढ़ाई हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल में हुई जहां गणित के लिए लगाव हुआ था। यहां उन्होंने खुद से मैथ्स के नए फॉर्मुले ईजाद किए।
ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने नंबर थ्योरी में पेपर सब्मिट किए जो मैथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथेमेटिकल गैजेट में पब्लिश हुए। इसके बाद आनंद कुमार को प्रख्यात कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से एडमीशन के लिए बुलाया गया लेकिन पिता की मृत्यु और तंग आर्थिक हालत के चलते उनका सपना साकार नहीं हो सका।
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दिन में पढ़ाते शाम को मां के साथ पापड़ बेचते
पिता के जाने के बाद सारा दारोमदार आनंद पर ही था। उस दौरान उन्होंने रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमैटिक्स नाम का एक क्लब खोला था। यहां वे अपने प्रोफेसर की मदद से मैथ के छात्रों को ट्रेनिंग दिलाते थे और एक भी पैसा नहीं लेते थे। दिन में वह क्लब में पढ़ाते और शाम को अपनी मां के साथ पापड़ बेचा करते थे।
आनंद जब रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमैटिक्स में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराना शुरू कर दिया था। दो बच्चों से अब वहां आने वले स्टूडेंट्स की संख्या 500 तक हो गई थी। एक दिन एक लड़के ने आनंद से कहा कि सर हम गरीब हैं अगर हमारे पास फीस ही नहीं है तो देश के अच्छे कॉलेजों में पढ़ सकते हैं और तब जाकर 2002 में आनंद ने सुपर 30 की नींव रखीं।
इस कोचिंग में हर साल परीक्षा के जरिए 30 बच्चों का चयन किया जाता है और रहने, खाने-पीने के साथ किताबें भी निशुल्क उपलब्ध कराई जाती हैं। 15 साल में अब तक उनकी संस्था से 396 बच्चे आईआईटी में पहुंच चुके हैं।
डिस्कवरी बना चुका है डॉक्युमेंट्री
डिस्कवरी चैनल ने आनंद कुमार पर एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई है। अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स में भी इनकी बायोग्राफी प्रकाशित हो चुकी है। आनंद कुमार को प्रो यशवंतराव केलकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। आनंद कुमार को बिहार गवर्नमेंट ने अब्दुल कलाम आजाद शिक्षा अवार्ड से भी नवाजा है।
अंत में आनंद लिखते हैं कि आंसुओं से नज़रें चुराकर हंसने का हुनर देखना है तो सुपर 30 के आंगन में एक बार आइएगा जरूर।
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