अंधविश्वास : किसी बच्चे का हाथ खौलते तेल में डाल दिया, तो किसी को आग से जला दिया

ग्रामीण भारत में एक ओर तो तकनीक पैर पसार रही है, लेकिन आज भी अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं, अशिक्षा और लचर स्वास्थ्य सेवा के चलते बीमारियों की गिरफ्त में आने वाले नवजात बच्चों को भूत-प्रेत का साया मानकर उनके अंगों को जलाने की प्रथा बरकार है। जिसके बाद ये बच्चे ज़िंदगी भर के लिए अपंग हो जाते हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   12 Sep 2019 1:45 PM GMT

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अंधविश्वास : किसी बच्चे का हाथ खौलते तेल में डाल दिया, तो किसी को आग से जला दिया

श्रावस्ती/लखनऊ। सावित्री देवी (बदला हुआ नाम) अपनी सास और पति के सामने हाथ जोड़कर दहाड़े मार-मार कर रो रही थीं, लेकिन उनकी सास ने अनसुना करते हुए उनके पांच दिन के बच्चे के मुलायम पैरों को जलती आग के ऊपर रख दिया।

सावित्री ने अपनी सास को यह बताया था कि उनका बच्चा ज्यादा दूध पीने लगा है, तो उनकी सास को लगा कि बच्चे को जमोगा (भूत-प्रेत का साया) है, और इससे छुटकारा दिलाने के लिए उन्होंने अपने नवजात पोते के दोनों पैरों को जलती आग पर रख दिया।

इसी तरह नेहा पासवान (बदला हुआ नाम) की डेढ़ साल की बेटी के दाहिने हाथ की उंगलियों को उनके पति ने खौलते तेल में तब डाल दिया था जब वो महज 12 दिन की थी।

लखनऊ जिले में रहने वाली सावित्री और श्रावस्ती जिले में रहने वाली नेहा की ही तरह देश भर में अनेकों ऐसी घटनाएं आए दिन सुनाई पड़ती हैं। आज 21वीं सदी में भी अंधविश्वास ने इस कदर जड़ें जमा रखी हैं कि ऐसी घटनाओं को सुन के कलेजा फट जाए।

ये है वो बच्चा जिसके नाजुक पैरों को आग से दाग दिया था

सावित्री और नेहा के बच्चों के हाथ-पैर उनके घर वालों ने इसलिए जला दिए क्योंकि उन्हें शंका थी कि बच्चे जमोगा (भूत-प्रेत का साया) का शिकार हैं, और जला देने से उनकी जान नहीं जायेगी। उनके इस अंधविश्वास ने बच्चों को ज़िंदगी भर के लिए अपंग बना दिया।

भारत में हादसों में जान गंवाने वाले और हत्याओं के आंकड़ों को दर्ज करने वाली राष्ट्रीय संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 से लेकर वर्ष 2019 तक के आंकड़ों के अनुसार 52 नाबालिग बच्चों की मौत अंधविश्वास के चक्कर में हुई। वहीं, वर्ष 1991-2010 के बीच 1700 मौतें काला जादू की घटनाओं से हुईं, जबकि वर्ष 2000-2016 के बीच 2500 मौतें चुड़ैल की घटनाओं के चलते हुईं।

यूपी की राजधानी लखनऊ से महज 30 किमी दूर गोसाईगंज ब्लॉक में रहने वाली सावित्री (30 वर्ष) बताती हैं, "जब-जब बेटे का पैर देखती हूँ उस दिन की याद आ जाती है। जब पूरा परिवार एक तरफ था, मैं अकेली थी जो इसका विरोध कर रही थी। इसके दोनों पैर जब वो जलती आग में रख रहीं थीं तब मेरा कलेजा फटा जा रहा था लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी।" ये बताते-बताते सावित्री की आंखें भर आईं।

बच्चे की माँ उसके जले पैर को दिखाते हुए

सैकड़ों बच्चों की ज़िंदगी छीनने वाला या उन्हें अपंग बनाने वाली भ्रांति 'जमोगा' के बारे में वात्सल्य संस्था की संस्थापिका डॉ. नीलम सिंह बताती हैं,

"टिटनेस को देहाती भाषा में 'जमोगा' कहते हैं। अगर गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को दो टीके लग जाएं तो उन बच्चों को ये बीमारी होने की संभावना बहुत कम रहती है। एक समय था जब टिटनेस से बहुत बच्चे मरते थे, लेकिन अब ये मौतें बहुत कम हो गयी हैं। अगर नवजात बच्चे में ऐसा लग रहा है कि वो रंग बदल रहा है, तो हो सकता है कोई दूसरी भी बीमारी हो, हाइपोथर्मिया या जन्मजात ह्दय रोग भी हो सकता है। इसलिए उसे तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए," डॉ. नीलम सिंह कहती हैं, साथ ही, जहां इस तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं, लोगों को जागरुक करना होगा।"

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीलम सिंह

भारत में अंधविश्वास और अज्ञानता की गहरी जड़ों को संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट भी दिखाती है। वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक रिपोर्ट पेश की जिसमें भारत में 1987-2003 तक 2,556 महिलाओं को डायन या चुड़ैल कह कर मार देने की बात कही गयी थी।

श्रावस्ती जिले के एक गाँव में रहने वाली नेहा पासवान (19 वर्ष) ने अपनी डेढ़ साल की बच्ची को गोद में दुलारते हुए बताया, "जब ये पांच-छह दिनों की थी तो इसका रंग बदल रहा था। हमने पति को बताया तो वो कहने लगे इसे 'जमोगा' हो गया है। अगर इसका हाथ खौलते तेल में नहीं डाला तो ये मर जायेगी। मुझे भी ज्यादा समझ नहीं थी। चार-पांच दिन हमने न दागने की जिद की तो वो कहने लगे कि अगर नहीं दागा तो मर जायेगी।"

बेटी मरे नहीं इस डर से सोनी अपने पति का विरोध नहीं कर पाई। आज उनकी बेटी के दाहिने हाथ में एक अंगूठा और एक अगुंली ही बची है।

जब ये बच्ची 12 दिन की थी तब इसकी उंगली खौलते तेल में डाल दी गयी थी

जब ये बच्ची 12 दिन की थी तब इसकी उंगली खौलते तेल में डाल दी गयी थीये सभी घटनाएं किसी आदिवासी इलाकों में नहीं हो रहीं, ये गाँव शहरों से महज कुछ किलोमीटर दूर हैं। ये शहर सूचना तकनीक से लैस होते हुए स्मार्ट सिटी बनने की राह पर हैं।

यूपी की राजधानी लखनऊ से लगभग 30 किलोमीटर दूर गोसाईगंज ब्लॉक में 30 अगस्त, 2019 को कमला देवी (50 वर्ष, बदला हुआ नाम) ने अपने तीन महीने के नाती की छंगुल खौलते तेल में डाल दी, जिससे उसकी अगले दिन मौत हो गयी।

जब गाँव कनेक्शन रिपोर्टर ने कमला देवी से इस घटना के बारे में जानकारी चाही तो उनका लहजा बहुत ही सामान्य दिखा। उन्होंने बताया, "मेरे नाती को कब 'जमोगा' हुआ ये हम जान नहीं पाए। अगर हमें पहले पता चल जाता तो हम झड़वा-फुंकवा लेते, लेकिन देर से पता चल पाया।"

हद तो तब हो गई जब कमला देवी को अपने किए पर बिल्कुल पछतावा नहीं दिखा। उन्होंने कहा "जब उसकी उंगली खौलते तेल में डाली, तो वो बिलकुल भी नहीं रोया, मतलब उसे जमोगा था।"

ये हैं कमला देवी (बदला हुआ नाम)

अंधविश्वास और अशिक्षा ने किस कदर पांव पसार रखे हैं, इसका अंदाजा कमला देवी की बातों से आसानी से लगाया जा सकता है। "इसका (जमोगा) गाँव में जल्दी कोई नाम नहीं लेता, क्योंकि नाम लेने से भी ये घर में आ सकता है। कई बच्चों को तो माँ के पेट में ही हो जाता है। ये वो साया है जो बच्चे को मार देता है और खुद जिंदा रहकर पूरे परिवार को परेशान करता है। मेरे नाती के साथ भी यही हुआ," कमला देवी ने कहा।

नाती की मौत के बाद कमला देवी ने अभी अपने घर के सभी दरवाजों में कीले ठुकवा ली हैं, जिससे भूत-प्रेत का साया उनके घर में न आये। ये कीलें पास ही गाँव के एक बाबा से फुंकवा कर लाई हैं।

गाँव कनेक्शन रिपोर्टर ने जब श्रावस्ती और लखनऊ जिले के चार-पांच गाँवों के ग्रामीणों से बच्चों में होने वाली 'जमोगा' बीमारी के बारे में जानने की कोशिश की तो ज्यादातर लोगों ने यही बताया कि अगर बच्चे के जन्म के कुछ दिन बाद ही उसका रंग बदलने लगे, जैसे-वो हल्का नीला, हल्का काला या पीला दिखाई पड़ने लगे या फिर माँ का दूध ज्यादा पीने लगे तो हम मान लेते हैं कि उसे 'जमोगा' हो गया है।

गाँव की ये बुजुर्ग महिला झाड़-फूंक करती हैं

कई बुजुर्गों ने इस अंधविश्वास को ये कहकर सही ठहराया कि जमोगा भूत का वो साया है जो बच्चे की जान ले लेता है। अगर बच्चे को खौलते तेल या आग में न दागा जाए तो वो बच्चे की जान ले लेता है। बच्चा मरे नहीं इस डर से लोग बच्चों को खौलते तेल में अंगुली डाल देते हैं ताकि 'जमोगा' भाग जाए।

वहीं, लखनऊ जिले के एक गाँव में रहने वाली आंगनबाड़ी कार्यकत्री माया देवी ने अपने गाँव में 'जमोगा' से जुड़ी दो तीन घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा, "जमोगा कोई नई बीमारी नहीं है, ये पुराने समय से चली आ रही है। कुछ लोग झड़वाते हैं तो कुछ लोग तेल में अंगुली दाग देते हैं। हमारे गाँव में ही एक आदमी है जिसकी बचपन में अगुंली जमोगा होने पर दागी गयी थी पर उसे कुछ नहीं हुआ।"

गाँव में छोटे बच्चों और गर्भवती माताओं की देखरेख के लिए चलने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों की एक संचालिका का 'जमोगा' के अंधविश्वास पर भरोसा देख कर बाकी लोगों का अंदाजा लगा सकते हैँ, यह हाल तब है जब गाँव के नवजात और गर्भवती महिलाओं की देखरेख का जिम्मा आंगनबाड़ी केन्द्रों की जिम्मेदारी होती है।

वहीं, अपने तीन महीने के नाती की मौत के बाद भी कमला देवी का अंधविश्वास अभी खत्म नहीं हुआ है। वो खुद भी कई जगह ढोंगी बाबाओं से झाड़-फूंक करवाकर आयीं हैं।

अपने घर के दरवाजे में लगी कीलों को दिखाती कमला देवी.

कमला देवी बताती हैं, "मेरे नाती के मरने के बाद बहू के ऊपर भी भूत-प्रेत का साया हो गया। उसे गाँव की एक चाची के पास से लौंग बंधवाई। किसी के ऊपर भी बाहरी साया आती है तो उसे चाची के पास ही ले जाते हैं। वो 100 साल से ज्यादा की हो गयी हैं लेकिन उनमें इतनी शक्ति है कि वो सबको ठीक कर देती हैं।"

जब झाड़-फूंक करने वाली उस महिला विरजा देवी से गाँव कनेक्शन की रिपोर्टर मिली तो उसे भी झाड़फूंक का नाटक् करवाना पड़ा कि यह पता चल सके कि तरीका क्या होता है। विरजा देवी को दिखाई नहीं देता, सुनती भी ऊंचा हैं।

पांच रुपए की लौंग मंगाकर वो कुछ मन्त्र पढ़कर फूंक मारती हैं, भूत-प्रेत से जुड़ी एक घटना बताती हैं। इस तमाम तामझाम के बाद लोग उनपर भरोसा कर लेते हैँ।

विरजा देवी ने बताया, "गाँव में जाकर पता कर लो हमने बहुत लोगों को ठीक किया है। जिनको बाहरी साया आता है सब मेरे पास ताबीज और लौंग बंधवाने आते हैं। कई लोगों के तो गाँव में ताबीज बाँधने से बच्चे भी हुए हैं।" यह पूछने पर कि यह सब सीखा कहां से? विरजा देवी ने कहा, "भगवान ने ये सारी शक्तियाँ हमें दी हैं।"

उत्तर प्रदेश का श्रावस्ती जिला देश में सबसे पिछड़ा माना जाता है। श्रावस्ती जिला देश में सबसे पिछड़े जिलों में से एक है, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की औसत साक्षरता दर 46.26 प्रतिशत है, जबकि भारत की औसत साक्षरता दर 74.04 फीसदी है।


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के आंकड़ों के अनुसार श्रावस्ती जिले में कुल 42.7 प्रतिशत महिलाएं जिनकी उम्र छह साल या उससे ऊपर है वही स्कूल गयी हैं। सर्वे के दौरान 15-19 साल की महिलाएं या तो गर्भवती थीं या फिर माँ बन गयी थीं उनका कुल प्रतिशत दर 7.0 है। सर्वे के दौरान जिन महिलाओं की उम्र 20-24 साल की थी उनकी शादी 18 साल से पहले हो चुकी थी उसका कुल प्रतिशत दर 67.9 है।

महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करने वाली संस्था 'महिला समाख्या' की श्रावस्ती यूनिट में काम करने वाली सहयोगिनी सुषमा देवी बताती हैं, "पहले लोग अपने बच्चों को जमोगा होने पर बहुत जलाते थे, लेकिन अब इसमें कमी आई है। गाँव-गाँव जाकर हम लोगों को जागरूक करते रहते हैं, कुछ बात मानते हैं तो कुछ नहीं।"

श्रावस्ती जिले में घटित हो रही ऐसी घटनाओं पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. वीके सिंह कहते हैं, "ये मामला मेरे संज्ञान में नहीं है, लेकिन काफी पिछड़ा जिला होने की वजह से यहाँ तमाम तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। यहाँ अभी भी लोग बीमार होने पर दो चार दिन झाड़-फूंक करवाते हैं तब कहीं अस्पताल आते हैं। मीटिंग में आशा बहुओं से कहते तो हैं कि वो अंधविश्वास जैसे मामलों पर भी चर्चा करे पर वो कितना करती हैं, इसकी हमारे पास जानकारी नहीं है।"


उधर, यूपी के जिले श्रावस्ती से 750 किमी दूर झारखंड में ऐसे ही डायन प्रथा ने कई महिलाओं की ज़िंदगी छीन रही है।

झारखंड में महिलाओं को कानूनी मदद देने के लिए काम कर रही संस्था आली की रेशमा कुमारी कहती हैं, "यहां अंधविश्वास से जुड़ी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। कहीं न कहीं मेडिकल सिस्टम और शिक्षा व्यवस्था फेल है, क्योंकि लोगों में जागरुकता ही नहीं है। इन लोगों को किसी ने नहीं बताया कि बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाएं, ओझा के पास नहीं।"

झारखंड स्टेट क्राइम ब्यूरों के वर्ष 2014-2019 के आंकड़ों के अनुसार डायन प्रथा से जुड़े अंधविश्वास की चपेट में आकर 203 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि इस समय अंतराल में 4,125 लोगों से डायन प्रथा के नाम पर हिंसा हुई।

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अंधविश्वास पर भरोसा करने वाले लोग इस तरह कीलें अपने घर के दरवाजे पर लगाते हैं

ग्रामीण स्तर पर शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं की लचर व्यवस्था के कारण ही डायन और जमोगा जैसे अंधविश्वास पनपते हैं। इसे रेशमा की बातों से समझ सकते हैं।

"डायन प्रथा के अंधविश्वास से सबसे ज्यादा हत्याएं बरसात में होती हैं, क्योंकि बरसात में तमाम तरह की बीमारियाँ होती हैं और लोग उसे डायन से जोड़ देते हैं। पहले तो महिलाओं को ही मारते थे पिछले दो तीन साल में पुरुषों और बच्चों को भी लोग मारने लगे हैं," रेशमा ने कहा।

लखनऊ एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के उपाध्यक्ष एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ आशुतोष वर्मा ने बताया, "अगर बच्चा छोटा है वो हल्का नीला हो रहा है या काला दिख रहा है तो ये ध्यान दें कि कहीं बच्चा ठंडा तो नहीं हो गया। रंग बदलने से बच्चे में हाइपोथर्मिया, फेफड़े में इन्फेक्शन और हार्ट सम्बन्धी समस्या हो सकती है।" उन्होंने आगे कहा, "गर्भावस्था के दौरान महिला को लगातार डॉ से चेकअप कराते रहना चाहिए। अगर कोई गर्भवती महिला को बीमारी है तो उसका इलाज कराएं। ये भी ध्यान देने की जरूरत है बच्चा डॉ की देखरेख में हो। अगर बच्चे में इस तरह के लक्षण हैं तो तुरंत डॉ के पास ले जाएं।"

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इस बच्ची के एक हाथ में बची हैं केवल दो उंगली

वहीं, सावित्री अपने बच्चे की जली उंगलियों के लिए खुद को ही गुनहगार मानती हैं, "अगर मुझे थोड़ा भी शक होता कि ये मेरे बच्चे को जला देंगी तो मैं ये कभी नहीं कहती कि वो दूध ज्यादा पीने लगा है। इस घटना के बाद मैं अपनी सास से छह महीने तक नहीं बोली थी। बचपन में जलने के जख्म इतने ज्यादा थे जिससे मेरे बच्चे को बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी। इसकी बहुत इलाज कराया, डेढ़ साल बाद इसने थोड़ा-थोड़ा चलना शुरू किया।"

आयुष (बदला हुआ नाम) आज छह साल का हो गया है, अभी भी जब वो बिना चप्पलों के चलता है तो उसके पैरों के जख्म उभर आते हैं। कई बार उनमें खून निकलने लगता है। अपने जख्मों से बेखबर कोने में लगे मिट्टी के ढेर में खेल रहा था, लेकिन उसकी माँ (सावित्री) बार-बार उसे वहां खेलने के लिए मना कर रही थी, क्योंकि अभी भी उसके पैर की खाल मुलायम होने से जख्म हो जाते हैं।

आयुष के पिता कुंवारे (33 वर्ष) कहते हैं, "माँ की बात कैसे टालते। उस समय हम लोगों में ज्यादा समझ थी नहीं, मजबूरी में जो माँ ने किया उसे स्वीकार कर लिया। इसकी इलाज में बहुत पैसे खर्च किये तब कहीं इसने चलना शुरू किया। पढ़ने में होशियार है बस पैरों में दिक्कत आ गई। जब ये बड़ा होगा तो हम लोगों को जिंदगी भर कोसेगा।"

(Edited by: Manish Mishra)

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