समलैंगिकता अब अपराध नहीं, जानिए इस केस और फैसले से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

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समलैंगिकता अब अपराध नहीं, जानिए इस केस और फैसले से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

लखनऊ। आईपीसी की धारा 377 की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दो बालिगों के बीच आपसी सहमति से बनाये गये समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली इस धारा को खत्म कर दिया है। कोर्ट ने 17 जुलाई को सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। आइए जानते हैं फैसले की पांच महत्वपूर्ण बातें-

1- मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि व्यक्तिगत पसंद को पूरी आजादी देनी चाहिए, उन्होंने आगे कहा कि सबको समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है।

2- जजों ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव बेहद जरूरी है. जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है इसके बिना बाकी अधिकारों का कोई औचित्य नहीं।

3- सीजेआई दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवार्ड चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले सुनवाई शुरू कर 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

4- बता दें कि धारा 377 के मुताबिक यदि कोई पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो यह अपराध माना जाता था।

5- समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखने वाले धारा 377 के खिलाफ एलजीबीटी समुदाय के लोगों के लिए काम करने वाली नाज फाउंडेशन ने याचिका डाली थी।

क्या है धारा 377

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार कोई किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो उसे अपराध माना जायेगा। इसके लिए उसे उम्रकैद या 10 साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड का भागी होना पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो धारा-377 के मुताबिक अगर दो वयस्क आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध होगा। इसे अप्राकृतिक यौनाचार भी माना गया है।

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क्या था हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने होमो सेक्शुऐलिटी मामले में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता के मामले में उम्रकैद तक की सजा के प्रावधान वाले कानून को बहाल रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें दो बालिगों द्वारा आपस में सहमति से समलैंगिक संबंध बनाए जाने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रिव्यू पिटिशन खारिज हुई और फिर क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की गई जिसे संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया गया। साथ ही नई अर्जी भी लगी जिस पर संवैधानिक बेंच ने सुनवाई की।


        

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