समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाई

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समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाईप्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2013 के अपने उस फैसले पर फिर से विचार करेगा, जिसमें समलैंगिकता को अपराध बताया गया था। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से हटाने की मांग करने वाली याचिका को अब संवैधानिक पीठ के सुपुर्द किया है, जो आईपीसी की धारा 377 की वैधता पर पुनर्विचार करेगा।

आईपीसी की धारा 377 में कहा गया कि प्रकृति के नियम के खिलाफ जाकर किसी मर्द, औरत या जानवर के साथ यौन संबंध बनाना अपराध है और इसके दोषियों को दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा के अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

कोर्ट ने आज कहा कि संवैधानिक मामला होने के नाते इस फैसला पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है। कोर्ट, 'समान लिंग वाले दो व्यस्क लोगों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने वाले कानून पर बहस की जरूरत है। हमें लगता है कि इस मामले को बड़ी बेंच को भेजना उचित होगा।'

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वहीं एक एलजीबीटी एक्टिविस्ट अक्काइ का कहना है, 'हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसला स्वागत करने की जरूरत है। हम 21वीं सदी में रह रहे हैं। सभी राजनीतिक दलों और राजनेताओं को इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़नी होगी।'

नौ जजों की बेंच के बाद आया फैसला

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नौ जजों की बेंच के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें निजता को मौलिक अधिकार बताया गया था। समलैंगिकों के अधिकार के लिए लड़ने वाली संस्था ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बना कर यह याचिका दायर की थी।

दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को पलट चुकी है सुप्रीम कोर्ट

इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी अंग्रेजों के वक्त बने कानून को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में इस संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के उस आदेश को पलट दिया था।

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कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

कोर्ट ने इस मामले में केंद्र से भी जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सामाजिक नैतिकता में समय के साथ बदलाव होता है। समाज का कोई वर्ग अपने व्यक्तिगत पसंद के कारण डर में नहीं जी सकता।

कांग्रेस ने फैसले का किया स्वागत

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया है। ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कहा कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है।

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