पत्नी को साथ रखने के लिए पति को मजबूर नहीं कर सकती अदालतें : सुप्रीम कोर्ट
गाँव कनेक्शन 26 Nov 2017 5:15 PM GMT

नई दिल्ली। पति-पत्नी के साथ रहने को लेकर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कोर्ट पति पर पत्नी को साथ रखने के लिए दबाव नहीं डाल सकते। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट पति-पत्नी के बीच सुलह समझौते को लेकर एक मामले की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस जमानत आदेश को भी बहाल कर दिया है जिसे पति द्वारा सुलह समझौता मानने से इनकार करने के कारण रद्द कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पेशे से पायलट एक व्यक्ति को अलग रह रही पत्नी और बेटे की परवरिश के लिए 10 लाख रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता के तौर पर जमा कराने के लिए भी कहा है।
रकम कम करने की अपील खारिज
न्यायमूर्ति आदर्श गोयल और न्यायमूर्ति यू यू ललित की बेंच ने कहा, "हम पत्नी को साथ रखने के लिए पति पर दबाव नहीं बना सकते। यह मानवीय रिश्ता है। आप (पति) ट्रायल कोर्ट में 10 लाख रुपए जमा करें, जिसे बगैर किसी शर्त के पत्नी निकाल सके।" पति की ओर से पेश हुए वकील ने यह रकम कम करने की गुहार लगाई तो अदालत ने कहा कि यह फैमिली कोर्ट नहीं है, इसलिए इस पर चर्चा नहीं कर सकता।
चार हफ्ते में जमा करने होंगे 10 लाख रुपए
बेंच ने कहा, "अगर आप 10 लाख रुपए फौरन जमा करने को राजी हो तो बेल ऑर्डर बहाल किया जाएगा।" इस पर वकील ने पैसा जमा करने की रजामंदी दे दी। इसके बाद कोर्ट ने पिटीशनर को 10 लाख रुपए चार हफ्ते में जमा करने का ऑर्डर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह रकम आगे की कार्यवाही के मुताबिक एडजस्ट की जा सकेगी। साथ ही दोनों पक्ष समझौते के लिए भी आजाद हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट में पेंडिंग कार्यवाही तीन महीने में पूरी की जा सकती है, जैसा कि हाईकोर्ट ने भी निर्देश दिया है।
ये है मामला
यह केस पति-पत्नी के बीच तकरार का है। इसमें उनके नाम उजागर नहीं किए गए हैं। पति पर दहेज के लिए तंग करने समेत आईपीसी के कई एक्ट में केस दर्ज है। उसे पत्नी और बच्चे को साथ रखने का समझौता करने की शर्त के साथ जमानत दी गई थी। लेकिन उसने बाद में उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया। इस पर मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने पति की एंटीसिपेटरी बेल अर्जी 11 अक्टूबर को रद्द कर दी थी। कोर्ट का कहना था कि पति ने शिकायतकर्ता के साथ समझौता किया, लेकिन वह अपने वादे से मुकर गया। उसने अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाने के लिए इसके खिलाफ एक एफिडेविट दायर कर दिया।
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