कानून के गलत इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दहेज उत्पीड़न में अब नहीं होगी तुरंत गिरफ्तारी 

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कानून के गलत इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दहेज उत्पीड़न में अब नहीं होगी तुरंत गिरफ्तारी प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीडन के मामलों में कानून के दुरुपयोग को लेकर अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 (ए) (दहेज प्रताड़ना) के गलत इस्तेमाल से चलते सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ये गाइडलाइन जारी की। दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब पति या ससुराल वालों को शिकायत के बाद सीधे गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।

हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति का गठन हो गठन

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति का गठन किया जाए। जो दहेज के मामलों में रिपोर्ट दे। कोर्ट ने साफ कहा है कि समिति की रिपोर्ट आने तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जिले की लीगल सर्विस अथारिटी यह समिति बनाए जिसमें तीन सदस्य हों। जिला जज थोड़े-थोड़े वक्त के बाद समिति का कामकाज जांचते रहें। परिवार कल्याण समिति में कानूनी स्वयंसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त व्यक्ति को शामिल किया जा सकता है।

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मारपीट या मौत में यह सहूलियत नहीं

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.के. गोयल और जस्टिस यू.यू. ललित की बेंच ने कहा है कि अगर महिला जख्मी है या फिर उसकी प्रताड़ना की वजह से मौत हो जाती है तो फिर वह केस इस गाइडलाइन के दायरे से बाहर होगा और ऐसे मामले में गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं होगी। सर्वोच्च अदालत ने कुछ समय पहले भी इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की थी।

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ये है मामला

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के इस मामले में पत्नी पक्ष ने धारा 498ए के तहत एफआईआर में पति राजेश शर्मा के सभी परिजनों भाई-बहन, माता-पिता का नाम लिखवा दिया था। आरोप था कि उन्होंने तीन लाख रुपये और कार की मांग पर उसे प्रताड़ित किया। मामले में जारी समन को रद्द करने के लिए वे सुप्रीम कोर्ट आए थे। कोर्ट ने इस मामले में एएसजी एएस नाडकर्णी और वी. गिरी को लेकर कमेटी बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर ये निर्देश जारी किए गए।

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