शादी खत्म करने का सबसे खराब तरीका है तीन तलाक: सुप्रीम कोर्ट

Karan Pal SinghKaran Pal Singh   12 May 2017 3:52 PM GMT

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शादी खत्म करने का सबसे खराब तरीका है तीन तलाक: सुप्रीम कोर्टतीन तलाक पर 19 मई तक रोज सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई ।

नई दिल्ली। तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई जारी है। सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संविधान पीठ तीन तलाक मामले में 19 मई तक रोज सुनवाई करने जा रही है। बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर के अलावा जस्टिस जोसेफ कुरियन, आरएफ नरीमन यूयू ललित और अब्दुल नजीर शामिल हैं।

असंवैधानिक है तीन तलाक- जेठमलानी

सुनवाई के दौरान सीनियर वकील राम जेठमलानी भी तीन तलाक की एक पीड़िता की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 सभी नागरिकों को बराबरी का हक देते हैं और इनकी रोशनी में तीन तलाक असंवैधानिक है। जेठमलानी ने दावा किया कि वो बाकी मजहबों की तरह वो इस्लाम के भी छात्र हैं। उन्होंने हजरत मोहम्मद को ईश्वर के महानतम पैगंबरों में से एक बताया और कहा कि उनका संदेश तारीफ के काबिल है।

जेठमलानी ने कहा, 'कुरान कहती है कि आप अगर ज्ञान की तलाश में हैं तो अल्लाह की राह पर हैं। एक ज्ञान के साधक की स्याही शहीद के खून से ज्यादा महान है।' जेठमलानी की राय में महिलाओं से सिर्फ उनके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता और सुप्रीम कोर्ट में तय होने वाला कोई भी कानून भेदभाव को बढ़ावा देने वाला नहीं होना चाहिए।

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कोर्ट के सवाल

आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने मामले में एमिकस क्यूरी की भूमिका निभा रहे सलमान खुर्शीद से पूछा कि क्या तीन तलाक इस्लाम में महज एक प्रथा है या फिर ये इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है? संविधान पीठ ने जानना चाहा कि क्या ऐसा कोई रिवाज जो गुनाह हो, शरीयत का हिस्सा हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने खुर्शीद से ये भी पूछा कि क्या किसी भी गुनाह को ईश्वर की मर्जी माना जा सकता है या फिर इसे इंसानों का बनाया कानून कहना ज्यादा सही होगा? जजों ने पूछा कि भारत से बाहर भी तीन तलाक की प्रथा प्रचलित है? अदालत ने जानना चाहा कि दूसरे देशों में ये प्रथा कैसे खत्म हुई? अदालत ने माना कि तीन तलाक इस्लाम में पति-पत्नी के बीच के रिश्तों को खत्म करने का 'सबसे खराब' और 'अवांछनीय' तरीका है। हालांकि संविधान पीठ ने स्वीकार किया कि इस्लाम की कई विचारधाराएं इसे जायज मानती हैं।

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तीन तलाक पर सलमान खुर्शीद के जवाब

सलमान खुर्शीद ने कोर्ट को बताया कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की नजर में तलाक एक घिनौना लेकिन वैध रिवाज है। खुर्शीद का कहना था कि उनकी निजी राय में तीन तलाक 'पाप' है और इस्लाम किसी भी गुनाह की इजाजत नहीं दे सकता। बेंच के सवालों के जवाब में खुर्शीद ने कहा कि तीन तलाक जैसा गुनाह शरीयत का हिस्सा नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि सिर्फ भारतीय मुस्लिमों में ही तीन तलाक का प्रचलन है। खुर्शीद ने सुझाव दिया कि एक साथ तीन बार तलाक कहने को तलाक की एक ही घोषणा माना जाए।

उनकी राय में अगर तीन तलाक को 'एक तलाक' माना जाएगा तो इसे पलटना आसान होगा। खुर्शीद ने बताया कि जो भारत में अब हो रहा है वो विदेशों में पहले ही हो चुका है। इसी के चलते कई देशों में तीन तलाक की प्रथा को खत्म कर दिया गया है। सलमान खुर्शीद का कहना था कि इस्लामी कानून के मुताबिक महिला निकाहनामे में ऐसी शर्त रख सकती है जिसके मुताबिक उसे तीन तलाक को 'ना' कहने की इजाजत हो।

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निकाह, हलाला जैसे बिंदुओं पर होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में ये ऐतिहासिक सुनवाई तीन तलाक और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हो रही है। कोर्ट के मुताबिक वो पहले ये तय करेगा कि ये प्रथा इस्लाम का मौलिक हिस्सा है या नहीं? अगर है, तो क्या इसे मौलिक अधिकार के तहत लागू किया जा सकता है? अदालत ने साफ किया है कि अगर संविधान पीठ इस नतीजे पर पहुंचती है कि तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा है तो वो उसकी संवैधानिक वैधता के सवाल पर गौर नहीं करेगा। बेंच आज एक बार फिर याचिकाकर्ताओं की बहस सुनेगा। अगले दो दिन इन याचिकाओं का विरोध कर रहे पक्षों की सुनवाई होगी। इसके बाद दोनों पक्षों को एक-एक दिन जवाब देने के लिए मिलेगा।

पहले दिन की सुनवाई में क्या हुआ

पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि अगर तीन तलाक गैर-कानूनी घोषित होता है तो उसका अगला कदम क्या होगा? मसले पर केंद्र का कहना था कि वो महिलाओं के बुनियादी हकों के पक्ष में है और किसी एक वर्ग की महिलाओं को इन हकों से महरूम नहीं रखा जा सकता है। तीन तलाक की शिकार महिलाओं की पैरवी करते हुए सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह का कहना था कि केंद्र सरकार के लिए महज महिलाओं के हक में बयान देना ही काफी नहीं है और मामले में संसद को दखल देना चाहिए। मामले में एमिकस क्यूरी यानी न्यायमित्र सलमान खुर्शीद ने कहा कि सुलह की कोशिश के बगैर तीन तलाक को इस्लामी कानून मान्यता नहीं देता है। उनकी दलील थी कि इस्लामी कानून में पति और पत्नी दोनों की जिम्मेदारियां तय हैं। उनकी राय में तीन तलाक कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि इसका ताल्लुक पति और पत्नी के निजी संबंधों से है। मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड की पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल ने भी खुर्शीद की दलीलों का समर्थन किया।

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