खुले में शौच मुक्त घोषित होने के बावजूद देश में सफाई के दावे संदेह के घेरे में

देश को खुले में शौच की समस्या से मुक्ति (ओडीएफ) का तमगा भले ही मिल जाये लेकिन भारत में सफाई की वास्तविकता सवालों के घेरे से बाहर नहीं है...

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   1 Oct 2018 12:28 PM GMT

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खुले में शौच मुक्त घोषित होने के बावजूद देश में सफाई के दावे संदेह के घेरे में

नई दिल्ली। पर्यायवरण के क्षेत्र में कार्यरत शोध संस्था सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) ने स्वच्छता अभियान की जमीनी हकीकत से जुड़ी रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि देश को खुले में शौच की समस्या से मुक्ति (ओडीएफ) का तमगा भले ही मिल जाये लेकिन भारत में सफाई की वास्तविकता सवालों के घेरे से बाहर नहीं है।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने पर्यावरण से जुड़ी पत्रिका डाउन टू अर्थ के साथ सोमवार को जारी विश्लेषण रिपोर्ट के हवाले से कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत अगले साल फरवरी में ओडीएफ देश होने का दावेदार हो जायेगा। सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के तहत अब तक देश के 76 प्रतिशत गांवों को ओडीएफ का दर्जा मिल गया है।

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नारायण ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहा कि देश में 8.33 करोड़ शौचालयों के बनने के दावे पर कहा कि स्वच्छ भारत के दावे को हकीकत में बदलने के लिये शौचालय निर्माण पहला और सबसे आसान कदम है लेकिन इसे सफलता का अंतिम पायदान नहीं माना जा सकता है। करोड़ों शौचालयों से भारी मात्रा में जनित ठोस और तरल कचरे के निस्तारण के पुख्ता उपाय नहीं होने पर पर्यावरण और मानवीय सेहत के लिये नया खतरा बन जायेगा।

विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 14.4 करोड़ घरेलू शौचालयों के 72 करोड़ लोगों के इस्तेमाल से प्रतिदिन औसतन एक लाख टन अपशिष्ट निकलता है। इसके उचित निस्तारण के इंतजाम नहीं होने पर अपशष्टि से जमीन और भूजल के दूषित होने का खतरे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। शौचालयों के निर्माण में अपशिष्ट के निस्तारण के सुरक्षित उपायों का ध्यान रखने की जरूरत पर बल देते हुये कहा गया है कि इस हेतु पुख्ता इंतजाम नहीं होने पर स्वच्छता अभियान के अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगे।

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