सफाई कर्मचारी दिवस : भयावह हैं इनके हालात

Anusha MishraAnusha Mishra   31 July 2017 11:44 AM GMT

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सफाई कर्मचारी दिवस : भयावह हैं इनके हालात31 जुलाई को देश भर में सफाई कर्मचारी दिवस मनाया जाता है।

लखनऊ। 31 जुलाई को देश भर में सफाई कर्मचारी दिवस मनाया जाता है। सफाई कर्मचारी और उनके नेता इस दिन इकट्ठा होकर अपनी मांगे सामूहिक रूप से प्रशासन के सामने रखते हैं। 1964 से हर साल सफाई कर्मचारी दिवस भारत में मनाया जाता है। सफाई कर्मचारियों की ये कोशिश होती है कि हमारा देश साफ सुथरा भी रहे और उनके साथ किसी तरह की ज़्यादती भी न हो।

देश की सड़कें साफ सुथरी हों, कहीं गंदगी बिखरी न हो, सफाई और स्वच्छता का ध्यान रखा जाए इसके लिए 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की। उन्होंने लोगों से अपील की कि वो खुद ही अपने आस-पास सफाई करें। गाँवों को खुले में शौच मुक्त कराने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। देश के छह राज्यों सिक्किम, केरल, हिमाचल प्रदेश हरियाणा और उत्तराखंड को खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 6,40,000 गाँव हैं जिनमें से 1,13,000 गाँवों को खुले में शौच मुक्त बनाया जा चुका है।

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इससे पहले 1993 में सफाई कर्मचारियों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए देश में मैला धोने का काम और शुष्क शौचालय निर्माण रोकथाम कानून 1993 में बनाया। 2013 में इस नियम में संशोधन करके नया नियम बनाया गया जिसके अनुसार ऐसे शौचालय का निर्माण कराना और इस तरह किसी से काम कराना दोनों गैरज़मानती काम हैं। पहली बार ऐसा काम करते हुए पकड़े जाने पर 2 साल की सजा और 2 लाख रुपए जुर्माने या फिर दोनों का प्रावधान है। दोबारा यही गलती करने पर 5 साल की सजा और 5 लाख का जुर्माना है।

हर साल हो जाती हैं कई मौतें

इन सारे नियमों के बावजूद भारत में सफाई कर्मचारियों की स्थिति में ज़्यादा परिवर्तन नहीं आया है। यहां बिना किसी सुरक्षा के ही उन्हें सीवर में उतरना पड़ता है। हर साल हज़ारों सफाई कर्मचारियों की गंदे नालों से निकलने वाली ज़हरीली गैसों की वजह से मौत हो जाती है। नियम तो यह है कि सीवेज की सफाई करते समय कर्मचारी के पास सूट, मास्क और गैस सिलेंडर होना चाहिए। इनका सूट स्पेसिफिक होता है जो गंदे पानी से कर्मचारियों की सुरक्षा करता है लेकिन उन्हें ये चीज़ें मुहैया नहीं कराई जातीं। एक गैर लाभकारी संगठन प्रैक्सिस इंडिया की 2014 में ज़ारी रिपोर्ट 'डाउन द ड्रेन' के मुताबिक, सिर्फ दिल्ली में ही एक साल में 100 से ज़्यादा सफाई कर्मचारियों की नालों और सीवर टैंकों की सफाई करने के दौरान हो जाती है।

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अभी भी लाखों लोग करते हैं मैला ढोने काम

मैला ढोने के विषय पर ‘अदृश्य भारत’ नाम से किताब लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह बताती हैं, "देश में शुष्क शौचालयों की कमी तो आई है लेकिन 2017 में भी देश भर में एक लाख 60 हज़ार लोग मैला उठाने का काम करते हैं। इसमें से ज्यादातर महिलाएं ही हैं। यूपी में सबसे ज्यादा महिलाएं मैला उठाने का काम करती हैं।”

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा इसी वर्ष किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देश भर में 12,522 लोगों की पहचान की, जो अभी भी मैला उठाने में लगे हैं। इनमें 80 प्रतिशत महिलाएं हैं और मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश की हैं। यह एकमात्र राज्य है जिसमें भारी संख्या (9,882) महिलाएं मैला ढोने में लगी हैं।

राजधानी लखनऊ का भी बुरा है हाल

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का भी हाल बुरा है। यहां के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के घर से महज़ सौ मीटर की दूरी पर सौ से ज्यादा परिवार के लोग कच्चे शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं और इन्हीं शौचालयों से मैला उठाने का काम सफाई कर्मचारी अशोक कुमार करते हैं। 40 वर्षीय अशोक कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया कि हमारे बच्चे ये गंदा काम करने से मना करते हैं, हमें भी अब मन नहीं यह काम करने का। मन ऊबने के बाद यह काम छोड़ देते हैं तो यहां के लोग घर के सामने आकर हंगामा करने लगते हैं। मज़बूरी में गंदा काम करने को मजबूर हैं।’

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राजधानी लखनऊ के ऐशबाग के बिलोचपुरा में सौ से ज्यादा परिवार अभी भी कच्चे शौचालय का प्रयोग करते हैं। ये इलाका उत्तर प्रदेश के विधानभवन जहां कई कानून बनते हैं और सरकार के सचिवालय, जहां उन कानूनों को अमली जामान पहनाने का काम होता है, उससे चंद मिनट की दूरी पर है।

जब एक युवक हो गया था शहीद

इस तरह की असुविधाओं और मुश्किलों को दूर करने के लिए 1964 में सफाई कर्मचारी दिवस की शुरुआत की गई थी। लेकिन इसकी कहानी 1957 से शुरू होती है। 29 जुलाई 1957 में दिल्ली की म्युनिसिपल कमेटी ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल शुरू कर दी थी जिसे दबाने की कोशिश में 31 जुलाई को पुलिस ने उनकी बस्ती में फायरिंग कर दी। इस फायरिंग में बस्ती में मेहमान बनकर आए एक युवक भूप सिंह को गोली लग गई और उसकी मौत हो गई। इसके बाद सरकार ने सफाई कर्मचारियों की मांगें मान लीं और हड़ताल खत्म हो गई लेकिन बस्ती के लोग भूप सिंह की शहादत को नहीं भूले और उन्होंने हर साल 31 जुलाई भूप सिंह शहीदी दिवस मनाने का निश्चय किया। इसी दिन को 1964 से भूप सिंह की याद में सफाई कर्मचारी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

        

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