और कुछ इस तरह गाँव का गोदना शहर का फैशनेबल टैटू बन गया
Shrinkhala Pandey 22 Aug 2018 6:26 AM GMT
लखनऊ। फैशन में कपड़े और ऐसेसरीज बदलने का तो चलन रहा ही है लेकिन उसके साथ ही टैटू का भी ट्रेंड है जो हमेशा से फैशन में रहता है। फिल्म के अभिनेता-अभिनेत्री, खिलाड़ी से लेकर युवाओं के लिए टैटूज बनवाना अब आम होता जा रहा है। वे तरह-तरह के डिजाइन्स के टैटू अपने पैरों, हाथों पर बनवा रहे हैं। यहां तक की लोग बांहों पर ओम, त्रिशूल, डमरू जैसे डिजाइन ज्यादा बनवा रहे हैं।
युवा खुद को रफ-टफ दिखाने के लिए ले रहे टैटू का सहारा
टैटू जो कि पुराने समय के गोदना का ही आधुनिक रूप है। 60 व 70 के दशक के पहले से भी इस कला के चिन्ह देखने को मिलते हैं। एक अलग तरह का स्टेटस चाहने वाले इस कला के साथ काफी ऐक्सपेरीमेंट करते हैं। बेशक टैटू बॉडी आर्ट के शुरूआती जमाने से चले आ रहे हों पर हाई फैशन के दौर में इसकी वापसी की वजह भी सॉलिड है। आजकल के युवा अपने आप को ज्यादा टफ व मजबूत दिखाने के लिए टैटू का ही सहारा ले रहे हैं।
ऐसे बनता है टैटू
इसके लिए खास स्टूडियो बने होते हैं। हजरतगंज में टैटू स्टूडियो चला रहे एंथनी काफी समय से ये काम कर रहे हैं। वो बताते हैं, पहले अस्वास्थकर तरीके से गली मोहल्लों में दुकान खोल के टैटू बनाने का काम करते थे, अब ऐसा नहीं है। अब इलेक्ट्रिक मशीन द्वारा टैटू बनाए जाते हैं। लोग अपनी पसंद का डिजाइन चुनकर शरीर की पसंदीदा जगह पर बनवा सकते हैं।
इंफेक्शन होने का रहता है खतरा, देखभाल जरूरी
फैशन जरूर करें पर इसके लिए स्वयं को खतरे में न डालें। टैटू बनवाने से पहले टैटू बनाने वाले के बारे में उचित जानकारी ले लें। क टैटू डिजायनर व उसका काम बहुत ही सफाई के साथ करना चाहिए। जब जो भी आपके शरीर में टैटू बनाए तो उसने हाथों में दस्ताने होने चाहिए। इंक व टैटू मशीन साफ होनी चाहिए। इससे पहले भी उसने कई बार टैटू बनाए हुए हों। इसके साथ ही टैटू बनने के बाद उसे धूप से बचाना बहुत जरूरी होता है वरना त्वचा में जलन व खुजली होनी लगती है।
गाँव में इसे गोदना के नाम से जानते हैं
गोदना एक विशेष प्रकार के स्याही से गोदे जाते हैं। इस स्याही को बनाने के लिए पहले काले तिलों को अच्छी तरह भुना जाता है और फिर उसे लौंदा बनाकर जलाया जाता है। जलने के बाद प्राप्त स्याही जमा कर ली जाती है और इस स्याही से गोदहारिन एक विशेष प्रकार की सुई से जिस्मों पर मनचाही आकृति, नाम और चिन्ह गोदती है। ढाई-तीन दशक पूर्व तक हर एक महिला गोदना गोदवाना आवश्यक समझती थी। कई महिलाएं हाथ एवं शरीर के अन्य अंगों पर गोदना गोदवाती थीं तो अधिकांश महिलाएं अपने पति का नाम ही गुदवाकर खुद के सच्ची अर्धांगनी होने का सबूत पेश करती थी।
महिलाओं में पति का नाम हाथ पर लिखवाने की थी परंपरा
गोण्डा से लगभग 12 किमी दूर बटौरा गाँव की रहने वाली सावित्री देवी (60वर्ष) बताती हैं, "हमारे जमाने में गोदना गोदना जरूरी होता था कहते थे कि जो पैसा गोदना गोदने वाले को दिया जाता था वही मरने के बाद भगवान के घर पहुंचता था। महिलाएं अपने पति का नाम हाथ पर लिखाती थीं, जिससे उनकी पहचान उनके पति के नाम से हमेशा बनी रहे।" वो आगे बताती हैं, "ज्यादातर लोग बाजू, हाथ और गर्दन पर ही गोदना गुदवाती थीं।"
धीरे-धीरे यह चलन टैटू में बदल गया और आज के युवाओं का फैशन बन गया। लखनऊ की रहने वाली श्रुति चौरासिया 21 बताती हैं, "मेरे कई दोस्तों ने अपने हाथ और पैरों पर टैटू बनवाया था। उनको देखकर मैनें भी वैसा ही टैटू बनवा लिया।"
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टैटू बनवाने की परंपरा और किन देशों में कितनी पुरानी
ब्रिटेन
शरीर पर टैटू गुदवाने का चलन सदियों पुराना है। ब्रिटेन में उस वक़्त के राजकुमार जॉर्ज पंचम ने जब 1881 में जापान दौरे में अपनी बांह पर नीले और लाल रंग का ड्रैगन गुदवाया तो उसकी बड़ी चर्चा हुई थी। उस दौर में चेहरे पर टैटू बनवाने का चलन नहीं था, लेकिन जॉर्ज के टैटू गुदवाने के साथ ही इस आर्ट पर शाही मुहर लग गई थी।
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जापान
1868 में जापान में मेजी राजशाही की स्थापना के साथ ही पश्चिमी देशों के साथ जापान का कारोबार तेज़ी से बढ़ा था। उसके बाद जापानी कला और चीज़ों की मांग पश्चिमी देशों में तेज़ी से बढ़ने लगी। जिस्म पर टैटू बनाने की कला असल में जापान में पनपी थी और धीरे धीरे पश्चिमी देशों में भी फैलनी शुरू हो गई।
यूरोप
यूरोप के रईस लोगों ने इस चलन को ख़ूब बढ़ावा दिया। बीसवीं सदी की शुरुआत में तो फ़्रांस और अमरीका में तो टैटू गुदवाना, लोगों के अच्छे सामाजिक दर्जे का प्रतीक बन चुका था। ब्रिटेन की एसेक्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मैट लॉडर ने 1881 में जब प्रिंस जॉर्ज ने टैटू गुदवाया था तो इसकी ख़ूब चर्चा हुई थी।
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