चाय के बागान बदल सकते हैं पहाड़ के किसानों की तकदीर 

Divendra SinghDivendra Singh   9 March 2018 11:17 AM GMT

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चाय के बागान बदल सकते हैं पहाड़ के किसानों की तकदीर टी बोर्ड दे रहा चाय की खेती को बढ़ावा

मुनिस्यारी (पिथौरागढ़)। पहाड़ी क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में किसानों का खेती से तेजी से मोहभंग हुआ, जिससे पलायन भी बढ़ा, ऐसे में टी बोर्ड चाय की खेती से किसानों के आय बढ़ाने की तैयारी में है।

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उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले के मुनिस्यारी ब्लॉक में कई गाँवों में चाय की बागान लगाने की तैयारी चल रही है, जिससे किसानों को फायदा हो सके। पर्वतीय क्षेत्रों में चाय की खेती को किसानों की आर्थिक तरक्की का जरिया बनाने की कवायद जारी है, जिसके तहत इसके उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब जौरासी और मुनस्यारी क्षेत्र में भी चाय की खेती की शुरूआत होगी। साथ ही यहां की जैविक चाय का विदेशों में अधिक आयात हो सके, इसका भी प्रयास किया जा रहा है।

टी बोर्ड के स्थानीय प्रबंधक डैसमेंड बिर्कबेक बताते हैं, "पिछले कुछ साल में पहाड़ों पर जंगली सुअर और बंदरों से परेशान होकर किसान खेती छोड़ रहे हैं, ऐसे में चाय की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, इसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पहाड़ों पर सबसे ज्यादा काम महिलाएं ही करती हैं, ऐसे में महिलाओं के लिए चाय की फायदेमंद साबित हो सकती है।"

चाय की खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, इसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। पहाड़ों पर सबसे ज्यादा काम महिलाएं ही करती हैं, ऐसे में महिलाओं के लिए चाय की फायदेमंद साबित हो सकती है।
डैसमेंड बिर्कबेक, स्थानीय प्रबंधक, टी बोर्ड

वो आगे बताते हैं, "चाय की खेती में ये फायदा होता है, इसे एक बार लगाने पर कई साल तक मुनाफा मिलता है, अगर ओले से नुकसान भी होता है तो पत्तियां फिर से निकल आती हैं और सूखे का भी कोई खास असर नहीं पड़ता है। चाय की पत्तियों की प्रोसेसिंग के लिए चंपावत में चाय की फैक्ट्री भी लगाई गई है।"

इंडिया ब्रैंड इक्विटी फाउंडेशन की वेबसाइट के अनुसार देश में हर वर्ष 563.98 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1208.78 मिलियन किग्रा चाय का उत्पादन होता है। देश के असाम, उत्तराखंड, बिहार, मणिपुर, सिक्किम, अरुणांचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड जैसे कई राज्यों में चाय की खेती होती है।

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चम्पावत क्षेत्र में जैविक चाय का उत्पादन बेहतर तरीके से हो रहा है और दो दर्जन से ज्यादा ग्राम पंचायतों में चाय बागान से लगाए गए हैं। यहां स्थापित चाय फैक्ट्री में भी अच्छी चाय का उत्पादन होने लगा है। अब जौरासी और मुनस्यारी में भी चाय की खेती शुरू की जाएगी। जिसके लिए नर्सरी का कार्य शुरू हो गया है।

राज्य के कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों के पांच ब्लॉकों में जल्द ही चाय के नए बागान विकसित किए जाएंगे। बागान विकसित करने को पांच साल तक चलने वाली इस योजना में 500 से अधिक लोगों को रोजगार भी मिलेगा। नए बागान विकसित हाने से उत्तराखंड में चाय की खेती का रकबा एक हजार से बढ़ कर 1500 हेक्टेयर हो जाएगा।

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राज्य में अब तक करीब एक हजार हेक्टेयर क्षेत्र में चाय बागान हैं। इनमें से आठ सौ हेक्टेयर क्षेत्र के बागानों से प्रति वर्ष तीन से चार लाख किलो चाय पत्ती तोड़ी जा रही हैं। दो हेक्टेयर क्षेत्र में रोपी गई पौध से भी जल्द ही उपज मिलने लगेगी। मुनिस्यारी ब्लॉक के कुरुझिमिया गाँव में चाय की नर्सरी लगाई गई है।

कुरुझिमिया गाँव के ग्राम प्रधान भगत सिंह बिष्ट बताते हैं, "टी बोर्ड के माध्यम से यहां पर चाय की खेती की जाएगी। बंदरों और जंगली सुअरों के आतंक से यहां के ज्यादातर किसान खेती से दूर भाग रहे हैं, पहले जहां हर कोई खेती करता था अब कुछ ही किसान की खेती करते हैं। लेकिन चाय की खेती होने से किसानों को फायदा होने वाला है।"

वो आगे बताते हैं, "समिति बनाकर चाय की खेती की जाएगी, इसमें पांच साल तक चाय के बगान की देखभाल टी बोर्ड करेगा, इसके लिए हर महीने किसान को पांच सौ रुपए किराया भी दिया जाएगा, पांच साल के बाद किसान खुद से खेत की देखभाल कर सकता है, जिससे पूरा फायदा किसान को ही मिलेगा।"

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