टेराकोटा : आपके ड्राइंग रूम की सजावट से फिल्मों के सेट डिज़ाइन में काम आने वाली कला

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टेराकोटा : आपके ड्राइंग रूम की सजावट से फिल्मों के सेट डिज़ाइन में काम आने वाली  कलागोरखपुर में 1,000 से अधिक कारीगर करते हैं टेराकोटा का काम। 

आग में लाल मिट्टी को पकाकर उससे तरह तरह के बर्तन, कलाकृतियां, मूर्तियां और सजावटी सामान बनाने की कला टेराकोटा भारत के कई हिस्सों में जानी मानी हस्तकलाओं में से एक है। चार दशक पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में कुम्हारों ने टेराकोटा के बर्तन व सजावटी सामान बनाना शुरू किया। आज इस कला ने यहां के स्थानीय कुम्हारों को एक नया रोजगार दिया है।

गोरखपुर जिले में टेराकोटा हस्तकला से जुड़ी कलाकृतियां बना रहे कारीगर अंगू प्रसाद (63 वर्ष) का परिवार इस कला से वर्ष 1972 से जुड़ा है। टेराकोटा से बनी कलाकृतियों के बारे में कारीगर अंगू प्रसाद बताते हैं,'' ये काम हमारा खानदानी पेशा है, टेराकोटा में बनाए जाने वाले बर्तन पूरी तरह से हाथों से बनाए जाते हैं। यह कला हमने अपने गुरू सुखराज जी से सीखी है, उन्हें टेराकोटा कला के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने राजकीय सम्मान भी दिया था।''

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टेराकोटा शैली में बने मिट्टी के बर्तन भारत में 3000-1500 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले थे, टेराकोटा हस्तकला भारत में राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और उत्तरप्रदेश में तेज़ी से बढ़ती हुई कला है। इस कला ने कुम्हारों के जीवन को न सिर्फ सुधारा है बल्कि उन्हें अपने काम को देश के कई हिस्सों में पहुंचाने का रास्ता भी खोला है।

'' टेराकोटा के बर्तन बनाने के लिए विशेष प्रकार की लाल मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। इस मिट्टी को पकाकर सजावटी सामान बनाने की कला को टेराकोटा कहा जाता है। आज टेराकोटा से जुड़े कारीगरों के लिए सरकार यूपी दिवस जैसे सरकारी आयोजनों में मुफ्त स्टॉल लगाने की मदद देती है। इससे हमारा पांच-छह महीने का मेहताना आसानी से निकल जाता है।" वर्ष 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके कारीगर अंगू प्रसाद आगे बताते हैं।

टेराकोटा कला में बनाए जाते हैं, लालटेन, टेबललैंप, भगवान की मूर्तियां व अन्य सजावटी सामान।

भारत में सबसे पहले टेराकोटा कला की शुरूआत गुजरात के कच्छ में हुई। इसके बाद यह कला पंजाब और हरियाणा राज्यों के कम्हारों ने अपनाई। आज उत्तर प्रदेश में टेराकोटा कला से जुड़े 1,000 से अधिक कारीगर इस काम के बदौलत अपने परिवार की रोज़ी-रोटी चला रहे हैं। गोरखपुर में औरंगाबाद, जंगल अकेला, भरवलिया, अमवा गुंलरिया और बेलवा रायपुर गाँवों में यह काम कुम्हारों की रोज़ीरोटी चलाने का अहम हिस्सा बन गया है। टेराकोटा कला की मदद से नए ज़माने की लालटेन, टेबललैंप, भगवान की मूर्तियां, कप, कुल्हड़ व अन्य सजावटी सामान बनाए जाते हैं।

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टेराकोटा हस्थकला के सामानों का व्यापार कर रहे व्यवसायी प्रकाश अनंत बताते हैं,'' टेरा कोटा से बने सामानों की मांग दिल्ली, पंजाब और मुंबई में बहुत ज़्यादा है। आज कल पौराणिक हिंदी सीरियल और इतिहास पर बनाने वाली फिल्मों में सेट डिज़ाइनिंग मैटीरियल के तौर पर टेराकोटा से बनी मूर्तियों और सामानों की डिमांड बहुत होती है। इस कला से बनाए गए सामान की कीमत पांच हज़ार से पांच लाख रूपए तक होती है। ''

टेराकोटा हस्तकला को एक भौगोलिक पहचान देने और इससे जुड़े कालाकारों की मदद के लिए भारतीय डाक विभाग, गोरखपुर ने टेराकोटा कलाकृतियों पर संस्मारक डाक टिकट जारी किया है। इसके अलावा यूपी सरकार ने इस कला को राष्ट्रीय मंच पर लाने के लिए इसे अपनी एक जनपद- एक उत्पाद योजना में इसे शामिल किया है।

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