कृषि जानकार पी साईनाथ बोले, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना राफेल घोटाले से भी बड़ा घोटाला"

Mithilesh DharMithilesh Dhar   5 Nov 2018 9:40 AM GMT

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कृषि जानकार पी साईनाथ बोले, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना राफेल घोटाले से भी बड़ा घोटाला

लखनऊ। देश के जाने माने पत्रकार और कृषि के जानकार पी. साईनाथ ने आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने फसल बीमा योजना के नाम पर सबसे बड़ा घोटाला किया है। उन्होंने ने यह भी आरोप लगाया देश की वर्तमान सरकार किसान विरोधी है।


पी. साईनाथ ने गुजरात के अहमदाबाद में शुक्रवार से शुरू हुए तीन दिवसीय किसान स्वराज सम्मेलन को रविवार को संबोधित किया। इस दाैरान उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पर एक के बाद एक कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना राफेल घोटाले से भी बड़ा घोटाला है। रिलायंस, एस्सार, जैसी चुनींदा कंपनियों को फसल बीमा प्रदान करने का काम सौंपा गया है।

अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के 2.80 लाख किसानों ने सोयाबीन की खेती की। फसल बीमा के लिए केवल एक जिले के किसानों ने 19.2 करोड़ रुपए का भुगतान किया। जबकि राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अपने अंशदान के तहत 77-77 करोड़ रुपए का भुगतान किया। इस तरह बीमा कंपनी रिलायंस को 173 करोड़ रुपए की कुल राशि प्राप्त हुई। साईनाथ ने कहा कि उस साल किसानों की पूरी फसल खराब हो गई, जिसके बाद बीमा कंपनी ने किसानों के दावों का भुगतान किया।

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इसके तहत रिलायंस ने एक जिले में सिर्फ 30 करोड़ रुपए का भुगतान किया, इस तरह से बिना एक रुपए निवेश किये उसे 143 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हो गया। अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ में आशा-किसान स्वराज गठबंधन और गुजरात विद्यापीठ द्वारा आयोजित किसान स्वराज सम्मेलन को संबोधित करते हुए साईनाथ ने कहा कि 70 और 80 के दशक में सरकारें कहा करती थीं कि हम 'सेल्फ रिलायंस' की तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन पिछले 25 सालों में देश 'सेल्फ रिलायंस' से 'रिलायंस' की तरफ बढ़ रहा है।

आईआईएम अहमदाबाद के सेंटर ऑफ मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर (सीएमए) की रिपोर्ट 'प्रधानमंत्री मंत्री फसल बीमा योजना का प्रदर्शन और मूल्यांकन' के अनुसार वर्ष 2017-18 में कुल 5.01 करोड़ किसानों ने नामांकन कराया था, ये संख्या 2016-17 के मुकाबले 10 फीसदी कम थी। सबसे ज्यादा गिरावट, गोवा, केरल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से हुई। दूसरी ओर, वर्ष 2017-18 में 4.89 करोड़ हेक्टेयर को बीमा के क्षेत्र में लाया गया, ये क्षेत्र 2016-17 के मुकाबले 13.27 फीसदी कम था। नियमों के मुताबिक, क्लेम की रिपोर्ट होने के बाद 2 महीने में किसान को भुगतान होना चाहिए, लेकिन किसानों को इसके लिए छह महीने से लेकर एक साल तक का इंतजार करना पड़ता है। बीमा भुगतानों में देरी की समस्या को सरकार ने संसद में भी माना है।


साईनाथ ने बताया कि देश में पिछले 25-30 सालों के दौरान डेढ़ करोड़ किसान कम हुए हैं। जबकि इसी दौरान देश में खेत मजदूरों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि आज कर्ज की वजह से लाखों किसान खेत मजदूर बन गए हैं। उन्होंने इसके लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है।वहीं सम्मेलन में बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता उल्का महाजन ने कहा कि कृषि संकट और किसानों की आत्महत्या की वजह ये नहीं है कि वे अपना मानसिक संतुलन खो रहे हैं। बल्कि ये आर्थिक और राजनीति व्यवस्था के अपना संतुलन खोने की वजह से हो रहा है। कृषि संकट को हल करने के लिए हमें भारत की सत्ता व्यवस्था को चुनौती देनी होगी।

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हालांकि पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन से नहीं कहा था कि हमारी सरकार किसानों के सशक्तिकरण का काम कर रही है। सबसे ज्यादा बजट कृषि के लिए जारी किया है। इसके साथ ही कई अन्य फंड से भी पैसा दिया जा रहा है। फसल बीमा किसानों के लिए सुरक्षा कवच है। भुगतान में तेजी आई है। लेकिन कई बार देखने में आता है कि राज्य सरकार और बीमा कंपनियां विलंब से भुगतान करती हैं, इसलिए फसल बीमा योजना में सुधार करने जा रहा हूं। अगर अब बीमा कंपनी दो महीने से ज्यादा लेट करती हैं तो उन्हें 12 फीसदी ब्याज के साथ किसान को भुगतान करना होगा। राज्य सरकार पर भी यह नीयम लागू होगा।

किसान आत्महत्या के मुद्दे पर साईनाथ ने कहा, 'वर्तमान सरकार किसान आत्महत्या से जुड़े आंकड़े सार्वजनिक नहीं करना चाहती। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले बीस साल यानी 1995 से 2015 के बीच 3.10 लाख किसानों ने आत्महत्या की। पिछले दो साल से किसान आत्महत्या के आंकड़ों को जारी नहीं किया जा रहा है।'

साईनाथ ने इन मुद्दों को सुलझाने पर भी बात की। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और मुंबई में हुए किसानों के मार्च के बारे में भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, '29 और 30 नवंबर को हम संसद मार्च का आयोजन कर रहे हैं। हमारी मांग है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए कम से कम तीन दिन तक बहस की जाए। अगर जीएसटी के लिए आधी रात को संसद बुलाई जा सकती है तो किसानों के मुद्दों पर सदन में बहस क्यों नहीं की जाती।'

2016 में शुरू की गई थी योजना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को साल 2016 में लॉन्च किया गया था, जिसमें फसल के साथ-साथ बुवाई के पूर्व और फसल कटाई के बाद के नुकसान को वहन किया जाता है। साथ ही इस योजना में खरीफ में अधिकतम 2 फीसदी, रबी में 1.5 फीसदी और कमर्शियल व बागवानी फसलों के लिए मात्र 5 फीसदी प्रीमियम किसानों से लिया जाता है। जबकि शेष प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें वहन करती हैं। वहीं, किसान अपनी उपज का औसतन 150 फीसदी तक फसल बीमा करा सकते हैं।


          

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