मॉडर्ना और फाइजर दवा कंपनी की कोरोना वैक्सीन 90 फीसदी असरदार, मगर अब बड़ा सवाल – आगे क्या ?
एक ओर जहाँ भारत की सीरम और भारत बायोटेक कंपनियां कोरोना वैक्सीन बनाने के तीसरे चरण में चल रही हैं, वहीं अमेरिका की मॉडर्ना और फाइजर जैसी दवा कंपनियों ने अपनी-अपनी कोरोना वैक्सीन के 90 फीसदी असरदार होने का दावा किया है। आने वाले दिनों में अगर भारत में कोरोना वैक्सीन आ भी जाती है तो इस वैक्सीन को पाने के लिए आम लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है ...
Kushal Mishra 19 Nov 2020 8:57 AM GMT
आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस की एक प्रमाणिक वैक्सीन बनने का इंतजार कर रही है। अच्छी खबर यह है कि अमेरिका की फार्मा कंपनी मॉडर्ना और फाइजर ने तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल में अपनी-अपनी वैक्सीन का कोरोना संक्रमण के इलाज में 90 फीसदी तक असरदार होने का दावा किया है। अब बड़ा सवाल यह है कि हर दिन कोरोना संक्रमण दर के नए रिकॉर्ड बना रहे भारत के लिए वैक्सीन को लेकर मुश्किलें कितनी आसान हो सकेंगी?
भारत में 19 नवंबर तक करीब नौ करोड़ लोग कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं जबकि 1.31 लाख से ज्यादा लोगों की मौत की वजह कोरोना वायरस रहा है। ऐसे में कोरोना संक्रमण से भय के बीच फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन के परिणाम सामने आने के बाद देश के लोगों में भी उम्मीद जगी है।
आने वाले समय में फाइजर या मॉडर्ना फार्मा कंपनी की कोरोना वैक्सीन अगर दुनिया की पहली प्रमाणिक वैक्सीन का दर्जा हासिल भी कर लेती है तो भारत में यह वैक्सीन कब तक उपलब्ध हो सकेगी? आम लोगों तक यह वैक्सीन कैसे और कब तक मिल सकेगी? भारत में कोरोना वैक्सीन को लेकर काम कर रहीं फार्मा कंपनियों की वैक्सीन के लिए और कितना इंतजार करना होगा? फ़िलहाल अभी कई ऐसे सवाल हैं जो सामने चुनौती बने हुए हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार कोरोना वैक्सीन को लेकर भारत समेत दुनिया भर की 48 उत्पादक कंपनियां क्लिनिकल स्टेज के तीन चरणों में अंतिम दौर में चल रही हैं। इनमें जर्मनी की बायोटेक फर्म बायोएनटेक के साथ मिलकर काम कर रही अमेरिका की फाइजर फार्मा कंपनी ने कोरोना वायरस के इलाज के लिए वैक्सीन तैयार करने का दावा किया है।
फाइजर कंपनी ने इसकी घोषणा नौ नवंबर को की और दावा किया कि क्लिनिकल स्टेज के शुरुआती नतीजों में उनकी कोरोना वैक्सीन 90 फीसदी असरदार हो सकती है। फिलहाल यूरोपीय संघ से इस वैक्सीन को हरी झंडी मिलने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने इस वैक्सीन को निष्पक्ष रूप से वितरण करने की बात कही है।
दूसरी ओर अमेरिका की एक और दवा निर्माता कंपनी मॉडर्ना ने 16 नवम्बर को दावा किया है कि तीसरे चरण के प्रारंभिक नतीजों में उनकी कोविड वैक्सीन 94.5 फीसदी तक असरदार साबित हुई है। मॉडर्ना के परिणामों से यह भी पता चला कि कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में भी उसकी वैक्सीडन काफी प्रभावी साबित हुई है।
इस वैक्सीन के शुरुआती नतीजों पर अमेरिकी वैज्ञानिक एंथनी फाउची ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमारे पास एक ऐसी वैक्सीन है जो 94.5 प्रतिशत तक प्रभावी है। यह वास्तव में शानदार नतीजे हैं और आश्चर्यजनक रूप से प्रभावशाली है। मुझे नहीं लगता है कि किसी ने भी इस तरह के अच्छे परिणाम का अनुमान लगाया होगा।"
अब जब कोरोना वैक्सीन को लेकर फाइजर और मॉडर्ना फार्मा कंपनी के नतीजों में सार्थक परिणाम निकलकर सामने आये हैं तो सवाल उठता है कि अब आगे क्या? भारत जैसे देश में जहाँ प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड मामले सामने आ रहे हैं, इन वैक्सीन के आने के बाद क्या राहत मिल सकेगी?
अब जब कोरोना वैक्सीन को लेकर फाइजर और मॉडर्ना फार्मा कंपनी के नतीजों में सार्थक परिणाम निकलकर सामने आये हैं तो सवाल उठता है कि अब आगे क्या? भारत जैसे देश में जहाँ प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड मामले सामने आ रहे हैं, इन वैक्सीन के आने के बाद क्या राहत मिल सकेगी?
किसी भी वैक्सीन को प्रभावी बनाए रखने के लिए एक निश्चित तापमान में भंडारण करने की जरूरत होती है। अगर फाइजर दवा कंपनी की वैक्सीन की बात करें तो फाइजर की इस वैक्सीन के भंडारण के लिए शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस कम तापमान की जरूरत होगी।
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत के वैक्सीन की कोल्ड स्टोरेज चैन में क्या इतनी क्षमता है कि इस वैक्सीन का इतने तापमान पर भंडारण कर सके। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में इस वैक्सीन की आपूर्ति करना कितना चुनौतीपूर्ण होगा?
पिछले करीब 50 वर्षों से भारत सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़े रहे और भारत में कई वैक्सीन पर काम कर चुके पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट के. सुरेश किशनराव 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "फिलहाल हमारे देश में शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस कम तापमान तक ही किसी वैक्सीन को बड़े कोल्ड स्टोरेज में रखने की सुविधा है, वो भी हर एक राज्य में सिर्फ एक या दो ही ऐसे स्टोरेज होंगे। जहाँ तक फाइजर की कोरोना वैक्सीन का सवाल है, तो उसके लिए हमारे लिए माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना भी मुश्किल होगा, सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, कई ऐसे विकसित देश भी हैं जहाँ इतने तापमान में स्टोरेज की सुविधा नहीं है।"
ऐसे में फाइजर की वैक्सीन को लेकर भारत की संभावनाओं के सवाल पर के. सुरेश किशनराव कहते हैं, "ऐसी वैक्सीन को स्टोर करने के लिए हमारे देश में ज्यादा से ज्यादा दस जिलों में ही गुंजाईश हो सकती है, वो भी निजी क्षेत्रों में जहाँ फ्रोजेन फ़ूड को स्टोर करते हैं, मगर वैक्सीन को ऐसे कोल्ड स्टोरेज में स्टोर करने में भी कई दिक्कतें हो सकती हैं, इसके अलावा इस वैक्सीन को हम गाँव-कस्बों में कैसे पहुंचा पायेंगे, यह भी बड़ा सवाल है। इसलिए हमें ऐसी वैक्सीन की जरूरत होगी जो शून्य से 25 डिग्री कम तापमान में स्टोर की जा सके।"
फिलहाल हमारे देश में शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस कम तापमान तक ही किसी वैक्सीन को बड़े कोल्ड स्टोरेज में रखने की सुविधा है। जहाँ तक फाइजर की कोरोना वैक्सीन का सवाल है, तो उसके लिए हमारे लिए माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना भी मुश्किल होगा, सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, कई ऐसे विकसित देश भी हैं जहाँ इतने तापमान में स्टोरेज की सुविधा नहीं है।
के. सुरेश किशनराव, पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट
दूसरी ओर राहत वाली बात यह है कि मॉडर्ना फार्मा कंपनी की कोरोना वायरस वैक्सीन को शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में स्टोर किया जा सकता है। ऐसे में यह वैक्सीन भारत में वैक्सीन के कोल्ड चैन के लिए उपयुक्त होगी जहाँ इसे कुछ महीनों तक बिना ख़राब हुए रखा जा सकता है।
भारत के टीकाकरण कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों तक टीके की आपूर्ति के लिए आशा वर्कर्स, एएनएम जैसी स्वास्थ्य कार्यकत्रियां महिलाओं और बच्चों में टीके लगाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगे इटौंजा में 13 ग्राम पंचायतों में टीकाकरण कार्यक्रम को लेकर 25 से ज्यादा साथी आशा कार्यकत्रियों के साथ काम कर रहीं रेनू सिंह भी इनमें से एक हैं।
आशा कार्यकत्री रेनू सिंह बताती हैं, "अभी वैक्सीन के कोल्ड स्टोरेज सीएचसी लेवल पर बने हैं, जहाँ से हम लोग पोलियो और खसरे जैसे टीकों को आइस बैग में रखकर गाँव-गाँव ले जाते हैं, इनके लिए शून्य से माइनस दो से छह डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, फिर भी हमें काफी ध्यान देना पड़ता है।"
"अगर हम छह बार से ज्यादा बैग खोलते हैं तो वैक्सीन ख़राब होने का डर रहता है। अगर कोई कोरोना वैक्सीन इससे कम तापमान में रखने के लिए आती है तो गाँव तक पहुँचाने के लिए सरकार को और कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी," रेनू सिंह बताती हैं।
फिलहाल फाइजर और मॉडर्ना फार्मा कंपनी से भारत सरकार यदि भविष्य में इस वैक्सीन को लेकर कोई समझौता करती भी है तो ग्रामीण इलाकों तक इस कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता पर लम्बा वक़्त लग सकता है।
हम लोग पोलियो और खसरे जैसे टीकों को आइस बैग में रखकर गाँव-गाँव ले जाते हैं, इनके लिए शून्य से माइनस दो से छह डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, फिर भी हमें काफी ध्यान देना पड़ता है। अगर हम छह बार से ज्यादा बैग खोलते हैं तो वैक्सीन ख़राब होने का डर रहता है।
रेनू सिंह, आशा कार्यकत्री, इटौंजा, उत्तर प्रदेश
दूसरी ओर भारत में भी कई दवा निर्माता कंपनियां कोरोना वायरस के इलाज के लिए वैक्सीन बनाने के काम में तेजी से सामने आई हैं। इनमें सबसे पहले देश की सबसे बड़ी दवा निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया का नाम आता है।
पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ब्रिटिश-स्वीडिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनिका के साथ मिलकर कोविड-19 वैक्सीन को लेकर काम कर रही है, जबकि कोविड वैक्सीन बनाने का जिम्मा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी पर है। इसमें इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने भी सीरम इंस्टीट्यूट के साथ हाथ मिलाया है। कोवीशील्ड नाम से बन रही इस वैक्सीन को लेकर तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल की चुनौती को पार कर लिया गया है। सीरम इंस्टीट्यूट ने 11 नवम्बर को इसकी घोषणा की और उम्मीद जताई गयी है कि अगले साल की शुरुआत में यह वैक्सीन आ सकती है।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने एनडीटीवी इंडिया चैनल से बातचीत में वैक्सीन के बारे में बताया, "साल 2021 की दूसरी या फिर तीसरी तिमाही तक 100 करोड़ वैक्सीन की खुराक बनाना हमारा लक्ष्य है।"
सीरम कंपनी विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता प्राप्त और दुनिया के सबसे सस्ते टीके 170 से ज्यादा देशों में आपूर्ति करने का दावा करती है। दूसरी ओर भारत में सीरम इंस्टीट्यूट के अलावा कोरोना वायरस के इलाज के लिए हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक भी कोवाक्सिन नाम से वैक्सीन बनाने की तैयारी में है।
भारत बायोटेक ने इससे पहले इन्फ्लूएंजा एच 1 एन 1, रोटावायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस, रेबीज के लिए टीके विकसित किए हैं और दुनिया भर में चार करोड़ से ज्यादा टीकों की खुराक की आपूर्ति करने का दावा करती है। फिलहाल भारत बायोटेक ने कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल 16 नवंबर से शुरू करने की घोषणा की है।
भारत बायोटेक से जुड़ीं शीला पनिकर 'गाँव कनेक्शन' से बताती हैं, "हम कोरोना वैक्सीन को लेकर हम थर्ड स्टेज की तैयारी 16 नवम्बर से शुरू कर चुके हैं, तीसरे चरण में हम देश के 13 राज्यों के 25 अलग-अलग केन्द्रों पर 26 हजार से ज्यादा वालंटियर्स पर ट्रायल करेंगे, हम उम्मीद जता रहे हैं कि 2021 के जून महीने तक हम वैक्सीन लाने में सक्षम होंगे।"
हम कोरोना वैक्सीन को लेकर हम थर्ड स्टेज की तैयारी 16 नवम्बर से शुरू कर चुके हैं, तीसरे चरण में हम देश के 13 राज्यों के 25 अलग-अलग केन्द्रों पर 26 हजार से ज्यादा वालंटियर्स पर ट्रायल करेंगे, हम उम्मीद जता रहे हैं कि 2021 के जून महीने तक हम वैक्सीन लाने में सक्षम होंगे।
शीला पनिकर, भारत बायोटेक कंपनी
हालाँकि तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल पर चल रही कई कंपनियों की वैक्सीन को लेकर पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट के. सुरेश किशनराव बताते हैं, "किसी भी वैक्सीन के जब थर्ड स्टेज के ट्रायल शुरू होते हैं तो हमें उस वैक्सीन के कम से कम छह महीने तक परिणाम देखना जरूरी होता है। हमें देखना पड़ता है कि उस वैक्सीन के लगने पर इम्युनिटी लेवल कितना बढ़ता है और साइड रिएक्शन क्या होते हैं, इसके लिए कम से कम छह महीने का समय जरूरी है।"
"इसके अलावा जरूरी यह भी है कि हम ऐसी वैक्सीन बनाये जो कम से कम शून्य से 25 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में रखी जा सके क्योंकि हमारे पास इतने तापमान पर वैक्सीन रखने की कोल्ड चैन मौजूद है। तब हम गाँव-गाँव वैक्सीन की उपलब्धता पर भी काम कर सकेंगे," के. सुरेश बताते हैं।
किसी भी वैक्सीन के जब थर्ड स्टेज के ट्रायल शुरू होते हैं तो हमें उस वैक्सीन के कम से कम छह महीने तक परिणाम देखना जरूरी होता है। हमें देखना पड़ता है कि उस वैक्सीन के लगने पर इम्युनिटी लेवल कितना बढ़ता है और साइड रिएक्शन क्या होते हैं, इसके लिए कम से कम छह महीने का समय जरूरी है।
के. सुरेश किशनराव, पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट
लम्बे समय तक भारत सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम से जुड़े रहे के. सुरेश किशनराव के अनुसार अगर कोई कंपनी वैक्सीन बनाने में सफल भी हो जाती है तो भी कोई भी कंपनी पूरे विश्व को सप्लाई नहीं कर पाएगी। इसलिए हमें जनता के लिए दो-तीन तरह की वैक्सीन की जरूरत होगी।
फिलहाल कोरोना वायरस के इलाज के लिए अगर अगले साल की शुरुआत में भारत में प्रमाणिक वैक्सीन आ भी जाती है तो बड़ा सवाल यह है कि इन्हें सबसे पहले किन लोगों को उपलब्ध कराया जाएगा और आम लोगों तक वैक्सीन की पहुँच कैसे और कब तक होगी?
कोरोना वैक्सीन आने पर वितरण को लेकर भारत सरकार की तैयारियां भी जारी हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के निर्देश पर नीति आयोग के (स्वास्थ्य) सदस्य डॉ. वीके पॉल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विशेषज्ञों का एक समूह वैक्सीन के वितरण को लेकर रणनीति तैयार कर रहा है। इसके तहत वैक्सीन पहले उन्हें उपलब्ध कराई जायेगी जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। इनमें देश भर में कोरोना संक्रमण के मरीजों के साथ काम कर रहे फ्रंटलाइन वर्कर्स, स्वास्थ्य कर्मी, डॉक्टर्स प्रमुख रूप से शामिल हैं।
इस बारे में नीति आयोग के (स्वास्थ्य) सदस्य डॉ. वीके पॉल ने इंडिया टुडे से बातचीत में बताया, "हालाँकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि शुरुआती चरण में हमें वैक्सीन का कितना स्टॉक मिलता है, मगर पहली प्राथमिकता जोखिम भरी परिस्थितियों में काम कर रहे फ्रंटलाइन और हेल्थ वर्कर्स होंगे।" उन्होंने यह भी बताया कि मरीज के लिए कोरोना वैक्सीन की दो खुराक जरूरी होंगी।
अगर देश भर में डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स की जनसँख्या पर गौर करें तो यह संख्या करीब तीन करोड़ है। वैक्सीन वितरण को लेकर कार्ययोजना पर काम कर रहे राष्ट्रीय विशेषज्ञों के समूह के साथ राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं जिन्हें इनकी सूची तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
इस बारे में झारखण्ड राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अभी सभी राज्यों को फ्रंटलाइन वर्कर्स, डॉक्टर्स, नर्सेज और सभी हेल्थ केयर वर्कर्स की लिस्ट तैयार करने के आदेश दिए गए हैं। झारखण्ड में भी इन स्वास्थ्य कर्मियों की लिस्टिंग का काम जारी है। इसके बाद वैक्सीन वितरण को लेकर जो आदेश आगे दिए जाएंगे, उन्हें भी फॉलो किया जाएगा।"
वहीं हरियाणा राज्य के पानीपत जिले में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. संतलाल वर्मा बताते हैं, "सभी हेल्थ केयर वर्कर्स की सूची तैयार की जा रही है। इसके लिए सभी विभागों से डाटा भी माँगा गया है। यह लिस्ट तैयार होते ही मुख्यालय को भेज दी जायेगी।"
अभी सभी राज्यों को फ्रंटलाइन वर्कर्स, डॉक्टर्स, नर्सेज और सभी हेल्थ केयर वर्कर्स की लिस्ट तैयार करने के आदेश दिए गए हैं। झारखण्ड में भी इन स्वास्थ्य कर्मियों की लिस्टिंग का काम जारी है। इसके बाद वैक्सीन वितरण को लेकर जो आदेश आगे दिए जाएंगे, उन्हें भी फॉलो किया जाएगा।
डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी, सचिव, स्वास्थ्य विभाग, झारखंड
अब सवाल यह भी उठता है कि अगर वैक्सीन अगले साल के पहली तिमाही तक भी भारत में उपलब्ध होती है तो आम जनता के लिए इसे कब तक उपलब्ध कराया जा सकेगा?
पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट के. सुरेश किशनराव 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अगर अगले साल मध्य तक भी वैक्सीन आती है तो प्राथमिकता के आधार पर विशेष समूहों को वितरण किया जाएगा। हेल्थ वर्कर्स के बाद पुलिस कर्मी, जवानों और फिर 50 की उम्र पार कर चुके मरीजों और किसी गंभीर बीमारी से पहले से ही जूझ रहे संक्रमित मरीजों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ऐसे में अगले साल भी आम लोगों तक वैक्सीन की पहुँच में वक़्त लग सकता है। यह मुश्किल होगा कि सरकार आम लोगों को अगले साल तक वैक्सीन उपलब्ध करा सके।"
वर्ष 2021 तक आम लोगों तक कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता पर के. सुरेश किशनराव की बात एम्स के निदेशक और राष्ट्रीय विशेषज्ञों के समूह के सदस्य डॉ. रणदीप गुलेरिया भी मानते हैं कि आम लोगों तक वर्ष 2022 तक ही कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हो सकेगी।
नेटवर्क 18 ग्रुप को दिए एक इंटरव्यू में एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा, "अगर कोरोना वैक्सीन तैयार हो जाती है तो भी आम लोगों के लिए वर्ष 2022 तक भी उपलब्ध नहीं हो पाएगी और इसे पहुँचने में एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है।"
भारत में एक ओर जहाँ लोग अभी भी कोरोना की वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं, वहीं इस वैक्सीन की कीमत को लेकर भी संदेह की स्थिति है। हाल में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पटना पहुँचीं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय जनता पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में बिहार के कोरोना संक्रमित मरीजों को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराये जाने का भी संकल्प किया गया है। ऐसे में कोरोना वैक्सीन की क्या कीमत होगी, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्या इसे सरकार वहन करेगी या फिर लोगों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ेगी?
हालांकि भारत में कोरोना वैक्सीन बना रही सीरम इंस्टीट्यूट ने अपनी वैक्सीन निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए बनाने की घोषणा की है। सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने एक इंटरव्यू में वैक्सीन की कीमत ज्यादा नहीं होने की बात कही है।
वैक्सीन को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने पीटीआई से बताया कि ऑक्सफोर्ड कोविड-19 वैक्सीन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और बुजुर्गों के लिए फरवरी 2021 तक और आम जनता के लिए अप्रैल तक उपलब्ध होनी चाहिए। कोरोना वैक्सीन की दो जरूरी खुराक की अधिकतम कीमत 1000 रुपए होगी।
Serum Institute of India's CEO Adar Poonawalla says Oxford COVID-19 vaccine should be available for healthcare workers, elderly people by around Feb 2021 and by April for general public. It will be priced at a maximum of Rs 1,000 for two necessary doses.
— Press Trust of India (@PTI_News) November 19, 2020
मगर वैक्सीन का वितरण सरकार करेगी या लोगों को स्वयं अपनी जेब से वैक्सीन का खर्च उठाना पड़ेगा, इस बारे में नीति आयोग के (स्वास्थ्य) सदस्य डॉ. वीके पॉल ने इंडिया टुडे चैनल में बातचीत के दौरान बताया, "कोरोना महामारी से पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ा है। वैक्सीन बनने के बाद संक्रमित मरीज को कम से कम दो खुराक देनी आवश्यक होगी। ऐसे में लोगों की जिंदगी बचाना हमारी प्राथमिकता है और इसमें वित्तीय परिस्थितियां रुकावट नहीं बनेगी।"
एक ओर भारत में वैक्सीन आने के बावजूद आम लोगों की पहुँच तक आने में फिलहाल अभी वक़्त लग सकता है, दूसरी ओर नयी दिल्ली समेत कई राज्यों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में ही नौ से 15 नवंबर के बीच मात्र एक सप्ताह में ही 625 लोगों की संक्रमण की वजह से मौत हो गई। ऐसे में जरूरी है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए नियमित मास्क पहनें और सामाजिक दूरी बनाए रखें।
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