बीटी बैंगन पर सरकार की ओर से गठित टीम को बताया गैर कानूनी, मुख्य सचिव को लिखा पत्र

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बीटी बैंगन पर सरकार की ओर से गठित टीम को बताया गैर कानूनी, मुख्य सचिव को लिखा पत्र

लखनऊ। बीटी बैंगन का उपभोग करना स्वास्थ्य पर कितना असर करता है इसकी जांच करने के लिए हरियाणा सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की है। ये कमेटी तीन दिनों के अंदर बीटी बैंगन के दुष्प्रभाव पर अपनी रिपोर्ट सरकार के सामने पेश करेगी। सरकार की ओर से कमेटी गठित करने के बाद उसपर लगातार सवाल भी उठने शुरू हो गए है।

राज्य सरकार के इस फैसले पर चिंता जाहिर करते हुए Farmers' and Consumers' organizations and Scientists के सदस्यों ने मुख्य सचिव हरियाणा सरकार डीएस देसाई को चिट्ठी भी लिखी है। जाने माने विशेषज्ञ प्रोफेसर राजेंद्र चौधरी ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से बीटी बैंगन के स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए कमेटी गठित करना पूरी तरह से गैर कानूनी। जब 2010 में लगे बीटी बैंगन की खेती करने पर प्रतिबंध अभी तक लागू है तब हरियाणा सरकार की तरफ से ऐसा करना उपभोक्ताओं की सेहत और देश की जैविक संपदा के साथ खिलवाड़ है।

जानकारों ने सरकार के इस कदम पर जताया विरोध

प्रोफेसर राजेंद्र चौधरी ने यह भी बताया कि भारत में भारत में संशोधित जीन वाली फसलें केवल देश के सर्वोच्च नियामक जीईएसी की अनुमति के बाद ही उगाई जाती हैं। जीईएसी ने बैंगन की किसी अन्य किस्म को अभी तक मंजूरी नहीं दी है। बकौल प्रो चौधरी कमेटी गठित करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है। हरियाणा सरकार की जवाबदेही है कि अवैध बीजों को बाजार में लाने वालों पर कार्रवाई करे। लेकिन कार्रवाई में देरी कर राज्य सरकार अपराधियों को केवल बढ़ावा देने का काम कर रही है।

2010 में बीटी बैंगन खेती पर सरकार ने लगाई थी रोक

साल 2010 में केंद्र सरकार ने माना कि बीटी बैंगन से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की अभी तक कोई स्वतंत्र जांच पड़ताल नहीं हुई। इस आधार पर केंद्र सरकार ने बीटी बैंगन के उपभोग पर रोक लगा दी थी। बीटी बैंगन के बारे में अभी तक जितने भी आकड़े और रिपोर्ट सामने आए हैं सब बीज बनाने वाली कंपनी की ओर से ही उपलब्ध कराया गया है। इन रिपोर्ट्स में बीटी बैंगन के स्वतंत्र पड़ताल की आवश्यकता भी बताई गई थी। पर्यावरण मंत्रालय ने बीटी बैंगन की उपज पर रोक लगाते हुए कहा था कि जब तक इस पर कोई स्वतंत्र रिपोर्ट नहीं आ जाती तब ये रोक लगातार बरकरार रहेगी।

प्रोफेसर चौधरी ने इस बात पर भी जोर दिया कि तीन दिनों के अंदर कमिटी की ओर से रिपोर्ट देने का कोई तुक ही नहीं बनता। फिर भी अगर सरकार बीटी बैंगन के स्वास्थ्य पर प्रभाव की पड़ताल करना चाहती है तो ऐसी बहुत सी सामाग्री सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। सरकार या कोई भी उन सामाग्रियों का इस वेबसाइट्स पर अध्ययन कर सकता है- जीएमआई

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अगर उनकी सिरफारिश उन रिपोर्ट्स के उलट पाई जाती है, तो उनकी बातों का तर्कपूर्ण तथ्यों से खंडन किया जाए। मुख्य सचिव को भेजी गई चिट्ठी में संस्था के सदस्यों की ओर से इस बात पर भी रोष जताया गया है कि लगातार 3 सालों से बीटी बैंगन की खेती हो रही है और 3 सप्ताह पहले उसपर शिकायत होने के बाद भी राज्य सरकार की ओर से कार्रवाई के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।

प्रोफेसर चौधरी ने आशा जताई है कि मुख्य सचिव इस मसले पर कानून सम्मत कार्रवाई करेंगे। प्रोफेसर चौधरी ने बीज विकसित करने वाले की पहचान, उसके बाजार में फैलाव पर रोक लगाने साथ ही किसानों की नष्ट फसल पर मुवाअजा दिलवाने की मांग मुख्य सचिव से मांग की। उनका कहना है कि किसानों को ये नहीं पता कि उनकी ओर से उगाई गई फसल अवैध है या वैध इसलिए उन्हे मुआवजे का हक है। हालांकि सरकार की ओर से उपायुक्त फतेहाबाद ने बताया कि आगे की कार्रवाई अब तभी की जाएगी जब सरकार की ओर से गठित की गई टीम के रिपोर्ट में स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव जाएंगे।

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