निजी ज़मीनों में मिलने वाले खजाने पर सरकार का हक है, तो भूजल पर क्यों नहीं?

तेज़ी से कम होते जा रहे भूजल स्तर का एक बड़ा कारण निजी ज़मीनों पर होने वाला भूजल का अंधाधुंध इस्तेमाल भी

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निजी ज़मीनों में मिलने वाले खजाने पर सरकार का हक है, तो भूजल पर क्यों नहीं?

भारत की एक बड़ी आबादी को पानी का साफ पानी नहीं मिलता है, लेकिन बहुत सारी कंंपनियां और कारोबारी इस पानी का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। ये पानी आपका है, सरकार का है.. लेकिन इस पर नकेल नहीं कस पा रही.. जानिए इससे क्या फायदा ?
लखनऊ। भारत में कानूनी तौर पर ज़मीन के मालिक को उस भूमि के अंदर मिलने वाले पानी का भी मालिकाना हक दिया जाता है, जबकि भूमिगत जल एक प्राकृतिक संसाधन है और इस पर सबका समान अधिकार है। तेज़ी से कम होते जा रहे भूजल स्तर का एक बड़ा कारण निजी ज़मीनों पर होने वाला भूजल का अंधाधुंध इस्तेमाल भी है।
मुंबई में पानी के बचाव पर बड़े स्तर पर काम कर रहे हिन्दी-गुजराती साहित्यकार और मशहूर कार्टूनिस्ट आबिद सुरती बताते हैं, ''सरकार किसी की निजी ज़मीन पर मिलने वाले खजाने पर अपना अधिकार जताती है, तो निजी ज़मीनों के अंदर मिलने वाले भूजल पर भी उसका अधिकार होना चाहिए। निजी भूमि पर मिलने वाला पानी बहुत अमूल्य है पर निजी कंपनियां और कारखाने बड़ी मात्रा में इसका दोहन कर रहे हैं, जिससे भूजल घटता जा रहा है।''
सेंट्रल वाटर कमीशन, भारत सरकार के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धि वर्ष 1994 में 6,000 घन मीटर थी, जो वर्ष 2000 में घटकर मात्र 2,300 घन मीटर रह गई है। जनसंख्या में वृद्धि और निजी क्षेत्र में जल की बढ़ती खपत को देखते हुए यह आंकड़ा वर्ष 2025 तक मात्र 1,600 घन मीटर हो जाने का अनुमान है।
जल संरक्षण पर काम कर रही गैर सरकारी संस्था 'सेव एवरी ड्राप ऑर ड्राप डेड' के अनुसार केरल के प्लैकिमादा क्षेत्र में वर्ष 2004 में भूजल की कमी होने के कारण आसपास के 10 से अधिक गाँवों में भूजल गिरने के कारण पानी की भारी किल्लत हो गई थी। यहां तक कि हालत यह थी कि इलाके में रहने वाले 100 घरों के बीच में जल का एक मात्र संसाधन एक कुंआ ही बचा था। इसके में भूजल में आई गिरावट का मुख्य कारण क्षेत्र में लगी कोका कोला फैक्ट्री थी, जो बड़ी मात्रा में क्षेत्र का भूजल सोख रही थी।
जल संसाधनों पर वर्ष 2016 में संसद समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में दक्षिण, पश्चिम और मध्य भारत के नौ राज्यों में भूजल स्तर को गंभीर बताया गया था। 'गंभीर' एक ऐसी स्थिति है, जहां राज्यों में 90 फीसदी भूजल निकाल लिया गया है।


निजी कंपनियों में खर्च हो रहे भूजल को देश में कम होती पानी की मात्रा का मुख्य कारण मान रहे भूजल विभाग, भारत सरकार में सीनियर हाइड्रो जियोलॉजिस्ट रविकान्त सिंह बताते हैं, ''निजी तौर पर खोली गई कंपनियों को भूमिगत जल इस्तेमाल करने के लिए सरकार से एनओसी बनवाना पड़ता है। इसमें यह प्रमाणित किया जाता है कि वह कंपनी साल भर में तय की मात्रा का भूजल ही इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन कंपनियां ऐसा नहीं करती है।''
उन्होंने आगे बताया कि खर्च हो गए भूमिगत जल को दोबरा रिचार्ज होने में बहुत समय लग जाता है। (100 लीटर पानी को दोबारा रीचार्ज होने में एक साल का समय लगता है) इसलिए सरकार को निजी कंपनियों में होने वाले भूमिगत जल के दोहन पर टाइम टू टाइम निगरानी करनी चाहिए। अभी ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं लागू है।
वर्ष 2016 में मनाए गए 'भारत जल सप्ताह' में देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन यहां की जल उपलब्धता महज चार प्रतिशत है। हर वर्ष अरबों घनमीटर वर्षा जल बेकार चला जाता है। देश में प्रति व्यक्ति सालाना जल की उपलब्धता के मामले में भारत चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से बहुत पीछे है।
देश में भूमिगत जल संरक्षण एवं जल संग्रहण पर वर्ष 1985 से काम रहे अन्ना हज़ारे और ग्लोबल वाटर एवार्ड व रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह (जल पुरूष) के अभियान से वर्ष 2011 से जुड़े समाजसेवी रामबाबू तिवारी (25 वर्ष) देश में घटते भूजल स्तर को सरकार की लापरवाही मानते हैं। वो बताते हैं, ''जैसे भारत में फूड सेफ्टी बिल पारित हुआ उसी तरह हम देश में वाटर सेफ्टी बिल लाने के लिए सरकार को वर्ष 2010 में एक मसौदा भेजे थे। इस बिल में देश में वाटर कंज़रवेशन के साथ हर एक नागरिक को पानी की हर एक बूंद पर स्वतंत्र अधिकार की बात रखी गई थी। लेकिन सरकार ने इस बिल को आज तक मंजूरी नहीं दी है।''
भारतीय केंद्रीय जल आयोग ने वर्ष 2014 में जारी किए गए आंकड़ों में यह बात सामने लाई थी कि देश के 12 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक) के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई है। लेकिन सरकार ने इन राज्यों में जल संरक्षण के नाम पर कोई भी बड़ी योजना नहीं चलाई है।
''पैगम्बर मोहम्मद ने हज़ार साल पहले कहा था कि अगर इंसान नहर के किनारे बैठा हो, तो भी उसे पानी बचाने के बारे में सोचना चाहिए। भूमिगत जल के बचाव के लिए सरकार का इंतज़ार न करते हुए लोगों को खुद आगे आना होगा, तभी भूमिगत पानी बचाने का सपना साकार हो पाएगा।'' हिन्दी-गुजराती साहित्यकार आबिद सुरती आगे बताते हैं।

   

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