संसद तक पहुंच गई है ये बात कि महिला प्रधान के पति व बेटे करते हैं कामकाज में हस्तक्षेप

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   13 Jan 2018 1:50 PM GMT

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संसद तक पहुंच गई है ये बात कि महिला प्रधान के  पति व बेटे करते हैं कामकाज में हस्तक्षेपपंचायती राज के पास आ रही शिकायत।

अक्सर ये सुनने में आता है कि प्रधानपति ही सारा कामकाज देखते हैं महिलाएं बस नाम की प्रधान रहती हैं । लेकिन अब ये बात लोकसभा तक पहुुंच गई हैं। लोकसभा में भैरो प्रसाद मिश्रा के प्रश्न के लिखित उत्तर में पंचायती राज राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि ये शिकायतें आती हैं कि महिला प्रधानों के पति उनके अधिकारों का दुरूपयोग करते हैं।

ज्यादातर मामलों में निर्वाचित महिलाएं घर-परिवार में ही सिमटी रहतीं जबकि पति पंचायतों का सारा काम-काज देखते, पत्नियों के नाम पर सारे फैसले करते और उनके अधिकारों का दुरूपयोग करते हैं।

मैं प्रधान हूं लेकिन कामकाज मेरे पति ही देखते हैं, ऐसा नहीं है मुझे गाँव की समस्याओं का पता नहीं है लेकिन वो नहीं चाहते कि हमसे सबसे मिले जुले।
गोंडा जिले की एक महिला प्रधान ने कहा

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“मैं प्रधान हूं लेकिन कामकाज मेरे पति ही देखते हैं, ऐसा नहीं है मुझे गाँव की समस्याओं का पता नहीं है लेकिन वो नहीं चाहते कि हमसे सबसे मिले जुले ज्यादा इसलिए ज्यादातर काम वो खुद ही देखते हैं।” ये कहना है गोण्डा जिले की महिला प्रधान का।

लोकसभा में भैरो प्रसाद मिश्रा के प्रश्न के लिखित उत्तर में पंचायती राज राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा, पंचायत राज्य का विषय है और ऐसे में महिला जन प्रतिनिधियों के कामकाज में उनके पतियों के अनावश्यक हस्तक्षेप से संबंधित शिकायतें आमतौर पर राज्यों को भेजी जाती है। हालांकि कुछ ऐसी ही शिकायतें पंचायती राज मंत्रालय को भी प्राप्त हुई हैं।

उन्होंने कहा, आम तौर पर ये शिकायतें आती हैं कि महिला जन प्रतिनिधियों के पति उनके अधिकारों का उपयोग करते हैं। जब कभी पंचायती राज मंत्रालय को इस तरह की शिकायतें मिलती हैं तो इन्हें संबंधित राज्य सरकारों के पास भेज दिया जाता है ताकि इनका निवारण हो सके। इसके साथ ही मंत्रालय ने राज्यों केंद्रशासित प्रदेशों को इस संदर्भ में परामर्श जारी किया है।

इस बारे में देवरिया जिले की महिला प्रधान सावित्री सिंह, जो खुद ही सारा कार्यभार संभालती हैं, वो बताती हैं, “महिलाएं अपने रुझान की वजह से तो प्रधान बनती नहीं है। महिला सीट होने पर बस उन्हें नाम के लिए खड़ा कर दिया जाता है। ज्यादातर महिलाओं से आप मिलिए तो उन्हें कुछ भी नहीं पता होता है बस वो नाम की प्रधान होती है। वो आगे बताती हैं, “कुछ महिला प्रधान ऐसी भी हैं जो अच्छा काम कर रही हैं, गाँव का विकास चाहती हैं लेकिन घर वालों के दबाव में आकर वो कुछ नहीं कर पातीं लेकिन पावर उनके ही पास है बस आगे आने की देरी है।”

संविधान के अनुच्छेद 243 में देश भर की पंचायतों में महिला आरक्षण 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया था। बुनियादी स्तर पर महिलाओं को ज़्यादा अधिकार देने के लिए सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कदम उठाया था।

संविधान के अनुच्छेद 243 में देश भर की पंचायतों में महिला आरक्षण 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया था। बुनियादी स्तर पर महिलाओं को ज़्यादा अधिकार देने के लिए सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कदम उठाया था और संविधान में 73 संशोधन करके महिलाओं का 33 प्रतिशत आरक्षण संभव किया था।

बस्ती जिले की महिला प्रधान पूनम बताती हैं,“हमारे गाँव में महिला सीट थी तो घरवालों ने मेरा नाम दे दिया। मैं जीत भी गई हालांकि किसी भी चुनाव प्रचार में मैं नहीं गई। प्रधान बनने के बाद गाँव में सभी पंचायत के काम मेरे पति ही देखते हैं और इन्हें मैं कभी बाहर नहीं जाती। अगर कोई सरकारी कागजात हो तो मेरा हस्ताक्षर ले लिया जाता हैं पर कागज़ी कार्यवाही पति ही करते हैं।”

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इस बारे में लखनऊ के समाजशास्त्री डॉ संजय सिंह बताते हैं, “महिला सशक्तिकरण के लिए हर क्षेत्र में भले महिलाएं आगे आ रही हैं लेकिन हमारे यहां गांव में महिलाएं आज भी अपना आधा जीवन घूंघट की ओट में काट देती हैं, उन्हें हर चीज के लिए पति की अनुमति की जरूरत होती है। ऐसे में उनका प्रधान बनना भी बस नाम के लिए है। पुरुष अपना पद बचाए रखने के लिए महिला को चुनाव में खड़ा कर देता है लेकिन निर्वाचित होने के बाद उसकी कोई भूमिका नहीं रह जाती।”

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