विदेशी मेहमानों को लुभा रही मैनपुरी की धरती

इस समय यदि आप मैनपुरी में हैं, और घिरोर से शिकोहाबाद की तरफ सफर कर रहे हैं तो रास्ते में वेटलैंड यानी नम भूमि वाले क्षेत्रों पर विदेशी पक्षियों के झुंड आसानी से देख सकते हैं।

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विदेशी मेहमानों को लुभा रही मैनपुरी की धरती

हृदेश सिंह

मैनपुरी की धरती पर मेहमानों का आना शुरू हो गया है। तिब्बत, हिमालय, नेपाल, भूटान के मेहमान पहुंच चुके हैं। मध्य एशिया, यूरोप, ब्राजील, अफ्रीका, मलेशिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। संभावना है कि ये सभी मेहमान अक्टूबर के अंत आ जाएंगे। कई सालों के बाद मेहमान अपने निर्धारित समय पर मैनपुरी पहुंचे हैं, जो पर्यावरण के लिए एक अच्छा संकेत है।

इस समय यदि आप मैनपुरी में हैं, और घिरोर से शिकोहाबाद की तरफ सफर कर रहे हैं तो रास्ते में वेटलैंड यानी नम भूमि वाले क्षेत्रों पर विदेशी पक्षियों के झुंड आसानी से देख सकते हैं। घिरोर तहसील से जब भारौल की तरफ चलेंगे तो इसके आस-पास सड़क के दोनों किनारों पर मौजूद नम भूमि वाले क्षेत्रों पर कॉमन टेल और व्हिसिल डक की मधुर आवाज एक अलग ही दुनिया में ले जाएगी। इन पक्षियों का कलरब आपको मंत्रमुग्ध कर देगा।

धान के खेतों में विचरण करते सारस जैसे इन विदेशी पक्षियों का स्वागत कर रहे हैं। मैनपुरी की जमीन नम भूमि क्षेत्र से भरी पड़ी है। प्रकृति की तरफ से मैनपुरी को दिया गया यह एक नायाब तोहफा है। यहां पर कई प्रजातियों के विदेशी पक्षी प्रवास पर पहुंचते हैं। यह परिंदे हजारों मील का सफर तय कर मैनपुरी आते हैं।

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मैनपुरी में 12,887 हेक्टयर में वेटलैंड हैं जो जिले की कुल भूमि का 2.86 प्रतिशत इलाका है। आगरा मंडल में सबसे अधिक वेटलैंडस मैनपुरी जनपद में ही है।

वर्ष 2010 में इसरो द्वारा कराए गए सेटलाइट सर्वे में मैनपुरी में 1084 वेटलैंडस चिन्हित किए गए थे। पृथ्वी का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाली जैव विविधता से यह क्षेत्र परिपूर्ण हैं। समान पक्षी विहार मैनपुरी का सबसे विशाल वेटलैंड है जो 5.25 वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है। इसे नेशनल प्लान फॉर कंजर्वेशन एक्वेटिक ईको सिस्टम के तहत विकसित किया जा रहा है।

मैनपुरी में इसके अतिरिक्त मार्कण्डेय झील,किन्हावर झील और सहन तालाब ऐसे क्षेत्र हैं जहां सबसे अधिक विदेशी पक्षी आते हैं और अपना आशियाना बनाते हैं। इस बार इन क्षेत्रों में गुज, टीन, रेड कॉस्टेड, कॉमडक, लेजर आदि प्रजाति के पक्षी देखे जा रहे हैं। कई ऐसे भी विदेशी पक्षी हैं जो कई सालों के बाद मैनपुरी की धरती पर देखे जा रहे हैं।

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इनमें से एक रेड क्रेस्टेड कार्डिनल चीड़िया है जो ब्राजील से यहां पहुंची है। मैनपुरी के नम भूमि वाले क्षेत्र विदेशी पक्षियों को हमेशा से लुभाते रहे हैं। वर्ष 2016 में 20 हजार विदेशी पक्षी मैनपुरी पहुंचे थे। ये सैलानी पक्षी सात समंदर पार भारतीय मौसम का लुत्फ लेने आते हैं, हालांकि बीते वर्षों में आने वाले विदेशी मेहमानों की संख्या में कमी आई है लेकिन फिर भी संभावनाएं बनी हुई हैं।

गंभीरता और उचित प्रबंधन से इस दिशा में अच्छे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। जिले में अब तक विदेशी पक्षियों की 27 प्रजातियां देखी जा चुकी है। बदलते मौसम और प्रदूषण की बढ़ती समस्या के कारण विदेशी पक्षियों की संख्या घटी है,जो चिंता का विषय है।

जिले में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे। वर्ष 2015 में आयोजित बर्ड वॉचिंग डे पर 40 विदेशी डेलीगेट्स यहां आए थे जिन्होंने मैनपुरी को ईको टूरिज्म के लिए बेहतर बताया था। इसमे शामिल विशेषज्ञों ने इसे विकसित और सुधार करने के सुझाव भी दिए थे।


इंटरनेशनल क्रेन फाउंडेशन के एक सर्वे के मुताबिक मैनपुरी- इटावा में सारसों की संख्या में दुनिया में सबसे अधिक है। यह संस्था सारसों की संख्या बढ़ाने की दिशा में बीते 17 वर्षों से काम कर रही है। मैनपुरी को सारसों को घर कहा जाता है। सारस उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी भी है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक जिले में 2435 सारस हैं।

छह फीसदी की दर से सारसों की संख्या बढ़ रही है। साइबेरियन सारस भी मैनपुरी आते थे, लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते साइबेरियन सारसों ने मैनपुरी आना बंद कर दिया। अंतिम बार वर्ष 2002 में साइबेरियन सारस को मैनपुरी में देखा गया था।

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विदेशी पक्षियों का शिकार एक बड़ी समस्या है। सामान पक्षी विहार के आस-पास बसे कुछ गाँवों की अर्थव्यस्था पक्षियों के अवैध शिकार पर ही टिकी है। जहां-जहां विदेशी पक्षी प्रवास करते हैं वहां पर शिकार पर रोक लगाना बेहद जरूरी है। इसके साथ ही तालाबों को अतिक्रमण से बचाने की भी जरूरत है।

जागरूकता की कमी के कारण किसान नम भूमि को बेकार भूमि समझ कर उसे कृषि के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है और ईको सिस्टम पर भी बुरा असर पड़ता है। जिन क्षेत्रों में विदेशी मेहमान प्रवास करते हैं उसे ईको जोन घोषित किया जाए ताकि प्रवास करने वाले पक्षियों को कोई नुकसान न पहुंचा सके।

बर्ड टूरिज्म की जिले में आपार संभावनाए हैं। इस दिशा में योजना बनाकर काम करने की जरूरत है। जिले में छोटे-बड़े तीन हजार से अधिक तालाब हैं। जहां पर जैव विविधिता पनपती है। नम भूमि वाले क्षेत्र पर्यावरण को बेहतर बनाने में विशेष योगदान देते हैं। जल स्तर को बनाए रखने में नम भूमि क्षेत्र की भूमिका अहम है। इसके साथ ही नम भूमि क्षेत्र बाढ़ से भी बचाता है।

इतना ही नहीं किसी भी वेटलैंड यानी नम भूमि के भौतिक, जैविक व रासायनिक अवयव उस आद्र भूमि की पहचान सुनिश्चित करते हैं। साथ ही अनगिनत प्रकार के जंतुओं व वनस्पतियों के विकास एवं सरंक्षण के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराते हैं। शहरीकरण और वर्तमान कृषि प्रणाली नम भूमि के लिए खतरा बनती जा रही है जिस कारण मेहमानों की संख्या कम हो रही है, जो मानव जीवन के लिए अच्छे संकेत नहीं है।

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