यहां के लोगों की फ्लोराइडयुक्त पानी पीना है मजबूरी, देखिए वीडियो...

60 साल की यशोदा अब चार कदम भी बिना सहारे के चल नहीं पाती हैं, ये सिर्फ यशोदा की समस्या नहीं है, यहां के ज्यादातर लोगों की हडि्डया कमजोर हो गईं हैं, ऐसा हुआ है फ्लोरोसिस जैसी बीमारी से...

Divendra SinghDivendra Singh   3 July 2018 12:22 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

सोनभद्र। आप अगर पानी पीते हैं तो कई बाद देख कर पीते हैं पानी साफ हैं न, लेकिन यहां के लोगों की मजबूरी है जानकर भी इन्हें फ्लोराइड युक्त पानी पीना पड़ता है।

60 साल की यशोदा अब चार कदम भी बिना सहारे के चल नहीं पाती हैं, ये सिर्फ यशोदा अकेले की समस्या नहीं है, यहां के ज्यादातर लोगों की हडि्डया कमजोर हो गईं हैं, ऐसा हुआ है फ्लोरोसिस जैसी लाइलाज बीमारी से, जिससे कई लोग सिर्फ़ जमीन पर रेंग कर चलते हैं।

सोनभद्र ज़िले के ज्यादातर गाँवों में कुओं व हैंडपम्प में फ्लोराइड, आर्सेनिक जैसे भारी तत्वों की अधिकता से ग्रामीण क्षेत्रों में कई तरह बीमारियां बढ़ने लगी हैं, एक उम्र के बाद लोगों की हडि्डयां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि लोगों का चलना मुश्किल हो जाता है। यशोदा बताती हैं, "पानी बहुत खराब आता है, दो-तीन साल से चलना मुश्किल को गया है, अब बिना सहारे नहीं चल पाते हैं। पानी साफ करने की मशीन लगा दी गई लेकिन कोई देखने नहीं आया कि काम करता है या नहीं, पूरे गाँव में गंदा पानी आता है।"

ये भी पढ़ें : बोतल बंद पानी और RO छोड़िए, हर्बल ट्रीटमेंट से भी पानी होता है शुद्ध, पढ़िए कुछ विधियां

जिले के चोपन, दुद्धी, बभनी व म्योरपुर इन चार ब्लॉकों में सबसे ज्यादा पानी खराब है। चौपन ब्लॉक के गाँव परवाकुंडवारी पिपरबां, झीरगाडंडी, दुद्धी ब्लॉक में गाँव मनबसा, कठौती, मलौली, कटौली, झारोकलां, दुद्धी, म्योरपुर ब्लॉक में गाँव कुस्माहा, गोविन्दपुर, खैराही, रासप्रहरी, बरवांटोला, पिपरहवा, सेवकाडांड, खामाहरैया, हरवरिया, झारा, नवाटोला, राजमिलां, दुधर, चेतवा, नेम्ना, बभनी ब्लॉक के गाँव बकुलिया, बारबई, घुघरी, खैराडीह।

उसी गाँव के रमेश कहते हैं, "पीने के पानी में फ्लोराइड है ये सब जानते हैं और इससे बीमार भी होते हैं फिर भी यही पानी पीने को मजबूर हैं, कई बच्चे और बूढ़े बीमार हो गए हैं। प्राइमरी स्कूल में आरओ लगा है, लेकिन गाँव से बहुत दूर है, हर दिन वहां पानी नहीं ला सकते हैं।"

साल 2010 में इन गाँवों में हैंडपम्पों में फ्लोराइड रिमुवल किट भी लगायी गई, लेकिन देखरेख के आभाव में इन्होंने काम करना बंद कर दिया। मिनी फ़िल्टर भी ज्यादा दिनों तक साथ नहीं दे सके क्यों कि इसमें प्रयोग होने वाला मिडिया 4000 लीटर पानी को ही फ़िल्टर कर सकता था। हैंडपम्प से निकलने वाले पानी को जब इस मिडिया से होकर गुजारते हैं तो मिडिया फ्लोराइड को ऊपरी सतह पर फ़िल्टर कर रोक लेता है और शुद्ध पानी नीचे से निकलकर मिल जाता है। यह मिडिया 4000 लीटर पानी को फ़िल्टर करने में ही कारगर है इसके बाद मिडिया को बदला जाना चाहिए। फ़िल्टर का मिडिया अब काम करने लायक नहीं है इसकी देखरेख नहीं की जा सकी। जिससे हैंडपम्प में लगे फ़िल्टर केवल शोपीस बनकर रह गए।

येे भी पढ़ें : पानी के बिना कुछ ऐसा दिखेगा इंडिया

इस बारे में जल निगम के साथ फिल्टर लगाने वाली निजी कंपनी के प्रतिनिधि अंजनी शर्मा बताते हैं, "समय-समय पर फिल्टर बदलना था, जल निगम के कर्मचारियों को मीडिया बदलने का काम दिया गया है, जल निगम की जिम्मेदारी थी कि फिल्टर बदला जाए।"

साल 1980 में हुई थी जानकारी

पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है इसकी जानकारी सबसे पहले रेनुकूट व सिंगरौली क्षेत्र में वर्ष 1954 से वनवासियों के बीच कार्य कर रही संस्था वनवासी सेवा आश्रम गोविंदपुर को वर्ष 1980 में हुई। जब ये जानकारी हुई कि क्षेत्र के लोगों को कुछ इस तरह की बीमारी हो रही है, जिससे उनकी हड्डियां कमज़ोर हो रही हैं तो उन्होंने जानकारियां जुटानी प्रारम्भ की तो पाया कि औद्योगिक प्रदूषण से पीने का पानी प्रदूषित हो रहा है। वनवासी सेवा आश्रम में पानी के परीक्षण को एक लैब तैयार करवाई गयी। पानी का परीक्षण किया गया तो यह जानकारी मिली कि जिन लोगों ने फ्लोराइड के अधिक मात्रा वाला पानी पिया था वही फ्लोराइड की अधिकता वाले पानी पीने से होने वाली बीमारी फ्लोरोसिस से ग्रसित थे।

कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था, मौसम के बदलते रुख से वर्षा कम हुई जिससे पीने के पानी की कमी होने लगी भूजल स्तर नीचे चला गया, पीने का पानी मुहैया कराने को सरकार ने जो हैंडपंप लगाये वो बहुत गहरे, यानि 300 मीटर पर लगाए, गहरी बोरिंग के चापाकल में आने वाला पानी फ्लोराइड युक्त पानी है। विभाग ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि जो पानी वह चापाकल से पीने को मुहैया करवा रहे हैं वह फ्लोराइड युक्त पानी है और वो भी मानक से कई गुना अधिक जो आज भी जस के तस जारी है।

ये भी पढ़ें : Water Index : पानी बना नहीं सकते, बचा तो लीजिए

मनबसा गाँव के लिए लालजी बताते हैं, "हैंडपम्प में पानी साफ करने की टंकी लगा दी गई, लेकिन एक बार लगने के बाद कोई देखने आया, अब तो और भी गंदा पानी आने लगा है मजबूरी में हमें यही पानी पीना पड़ता है। नलों से लाल पानी आता है, घड़े, बाल्टी में पानी डालों लाल हो जाता है।"

क्या है फ्लोरोसिस

मानक से अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पीने से फ्लोरोसिस बीमारी पैदा होती है। फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के दांत ख़राब हो जाते हैं और हाथों व पैरों की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं, जिसके कारण वह चलने फिरने से लाचार हो जाता है यह बीमारी बच्चों से लेकर अधिक उम्र वाले व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेती है। एक लीटर पीने के पानी में फ्लोराइड एक मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि फ्लोराइड की मात्रा मानक से अधिक होती है तो इसका प्रभाव लोगों पर पड़ने लगता है।

सोनभद्र में फ्लोरोसिस का प्रभाव बहुत अधिक है। औद्योगिक क्षेत्र से फ्लोराइड का उत्सर्जन अधिक होने के कारण पीने का पानी फ्लोराइड युक्त हो गया है। औद्योगिक क्षेत्र से उपजे प्रदूषण के साथ ही मौसम की मार ने भी यहां के नागरिकों को यह बीमारी देने में योगदान किया है। भूजल स्तर बेहद नीचे चला गया जिसके कारण राज्य सरकार ने पीने का पानी जुटाने के लिये गहराई वाले हैंडपंप लगाने शुरू कर दिए राज्य सरकार ने यह देखा ही नहीं कि जो पानी गहराई से चापाकल द्वारा मुहैया कराया जा रहा है उसमें मानक के कई गुना अधिक मात्रा में फ्लोराइड है।

ये भी पढ़ें : आईआईएसईआर ने विकसित किया उपकरण, पानी से अलग कर देगा आर्सेनिक

प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सर्वे के अनुसार

उन्नाव जिले में फ्लोराइड प्रभावित 260 गाँव, रायबरेली जिले में फ्लोराइड से प्रभावित गाँव 115, फिरोजाबाद जनपद में फ्लोराइड से प्रभावित गाँव 22, मथुरा जनपद में फ्लोराइड से प्रभावित गाँव 253, प्रतापगढ़ जनपद में फ्लोराइड से प्रभावित जनसंख्या 31354 तथा सोनभद्र में फ्लोराइड से प्रभावित जनसंख्या 201613 है।

देश के इन राज्यों में है फ्लोराइड की ज्यादा समस्या

उत्तर प्रदेश: वाराणसी, कन्नौज, प्रतापगढ़, फरुखाबाद, रायबरेली, उन्नाव, सोनभद्र

आन्ध प्रदेश : कुडप्पा, हैदराबाद, कृष्णा, मेडक, वारंगल, अनन्तपुर, करनूल, करीमनगर, नालगोंडा, प्रकाशम, चित्तूर, गुंटूर, खम्मम, महबूब नगर, नेल्लौर, रंगारेड्डी,

असम : कार्बी आंगलूंग, नौगाँव, कामरूप

बिहार : डाल्टनगंज, गया, रोहतास, गोपालगंज, पश्चिम चम्पारण, मुंगेर

छत्तीसगढ़ : दुर्ग, दंतेवाड़ा

दिल्ली : पश्चिम जोन, उत्तर-पश्चिम जोन, पू्र्वी जोन, उत्तर पूर्वी जोन, मध्य जोन, दक्षिणी जोन, दक्षिण-पश्चिम जोन

गुजरात : अहमदाबाद, बनासगांठा, भुज, जुनागढ़ मेहसाणा, सूरत, बलसाड़, अमरही, भरुच, गाँधीनगर, पंचमहल, राजकोट, सुरेन्द्र नगर, भावनगर, जामनगर, खेड़ा, साबरकांठा, बड़ौदा

हरियाणा : रेवाड़ी, फरीदाबाद, करनाल, सोनीपत, जिंद, गुड़गांव, महेन्द्रगढ़, रोहतक, करुक्षेत्र, कैथल, भिवानी, सिरसा

ये भी पढ़ें :
हम ब्रश करते वक्त 25 से 30 लीटर पानी बर्बाद करते हैं

जम्मू कश्मीर : डोडा झारखण्ड :- पाकुर, पलामू, साहेबगंज, गिरीडिह

कर्नाटक : धारवाड़, गंडक, वेल्लारी, वेलकगाँम, रायचुर, बिजापुर, गुलबर्गा, चित्रदुर्ग, तुमकुर, चिकमंगलूर, मंडिया, बंगलुरु (ग्रामीण क्षेत्र), मैसूर, मंगलौर, सिमोगा, कोलार

केरल : पालघाट, ऐलेप्पी, बावनपुरम

मध्य प्रदेश : शिवपुरी, झाबुआ, मंडला, डिंडोरी, छिंदवाड़ा, धार, विदिशा, सिवनी, सिहोर, रायसेन, मंदसौर, नीमच, उज्जैन, ग्वालियर

महाराष्ट्र : भण्डारा, चन्द्रपुर, बुलधाना, जलगाँव, नागपुर, अकोला, अमरावती, नांदेड़, सोलापुर, यवतमाल

उड़ीसा : अंगुल, धानकनाल, बौद्ध, नयागढ़, पुरी, बालासोर, भद्रक, बालंगीर, गंजम, जगत सिंह पुर, जाजपुर, कालाहांडी, केवनझार, खुर्दा, कोरापुर, मयुरभंज, पुलवानी, रायगढ़

पंजाब : मांसा, फरीदकोट, भटिंडा, मुक्तसर, मोगा, संगरूर, फीरोजपुर, लुधियाना, अमृतसर, पटियाला, रोपण, जालंधर, फतेहगढ़ साहिब, कपूरथला, गुरदासपुर, होशियारपुर, नावांशहर

राजस्थान : भिलवाड़ा, अजमेर, सिरोही, टोंकनगर, जालौर, जोधपुर, सवाईमाधोपुर, दौसा, जयपुर, सीकर, अलवर, चुरू, भरतपुर, झुंझनु, जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, राजसमन्द, बांसपाड़ा, डुंगरपुर, बिकानेर, धौलपुर, करौली, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, कोटा, बुंदी, झालावाड़, गंगानगर, बाटन, हनुमानगढ़

तमिलनाडु : धर्मपुरी, इरोड, सालेम, कोयम्बटुर, तिरुचिरापल्ली, मदुरै, बेल्लौर, विरुधनगर,

पश्चिम बंगाल : वीरभूस, बांकुड़ा, वर्धमान, पुरुलिया

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.