राष्ट्रपति ने कहा भारत की प्रगति के पथ का एक यात्री हूं, ऐसे ही आपसे मिलूंगा
गाँव कनेक्शन 24 July 2017 11:15 PM GMT
नई दिल्ली (भाषा)। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति के तौर पर देश को सोमवार की शाम दिए अपने आखिरी संबोधन में कहा, ''भारत की आत्मा बहुलवाद और सहिष्णुता में है। हमने एक मानवीय और खुशहाल टाउनशिप का निर्माण करने का प्रयास किया।'' 81 वर्षीय मुखर्जी कल रामनाथ कोविंद को कार्यभार सौंपने के बाद 340 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन से हटकर एक बंगले में रहने चले जाएंगे।
मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने गत पांच वर्षों में पड़ोस के कुछ गांवों में प्रसन्नता लाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, ''यह यात्रा जारी है। हमने खुशहाली देखी जो प्रसन्नता और गौरव, मुस्कान और हंसी, अच्छे स्वास्थ्य, सुरक्षा की भावना और सकारात्मक कार्यों से जुड़ी है।'' उन्होंने कहा, ''हमने हमेशा मुस्कुराना, जीवन पर हंसना, प्रकृति से जुड़ना और समुदाय के साथ शामिल होना सीखा। इसके बाद हमने अपने अनुभव का विस्तार पड़ोस के कुछ गांवों में किया। यह यात्रा जारी है।''
राष्ट्र निर्माण ईमानादारी व निष्ठा से हो
मुखर्जी ने 2012 के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम दिये अपने प्रथम संबोधन को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था, ''भारत हममें से हर एक से यह अपेक्षा रखता है कि राष्ट्र निर्माण के इस जटिल कार्य में हम जो भी भूमिका निभा रहे हैं, उसे हम ईमानादारी, समर्पण और हमारे संविधान में स्थापित मूल्यों के प्रति दृढ़ निष्ठा के साथ निभाएं।'' उन्होंने कहा, ''कल जब मैं आपसे बात करुंगा तो राष्ट्रपति के रुप में नहीं बल्कि आपकी तरह एक ऐसे नागरिक के रुप में बात करुंगा जो महानता की दिशा में भारत की प्रगति के पथ का एक यात्री है।''
प्रणव मुखर्जी ने कहा, ''जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं है। पिछले 50 सालों के सार्वजनिक जीवन के दौरान ''भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है, भारत की संसद मेरा मंदिर रहा है और भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रही है।'' इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन, लोकभवन बन गया।
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