साल 2020: महामारी के बीच कुछ नेक और साहसिक कदम आशाओं का नया सवेरा भी लेकर आये

साल 2020 में सब कुछ बुरा ही नहीं हुआ। कुछ लोगों की हिम्मत और जज्बे ने महामारी वाले साल में लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी। गाँव कनेक्शन की सालाना रिपोर्ट 'दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020' से कुछ खबरें बदलाव लाने वाले चेहरों की।

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The year 2020: Some noble and bold steps amidst the epidemic brought new dawn of hope, positive stories of 2020वर्ष 2020 में बहुत से लोगों ने बेहतरीन काम किया, बदलाव की कहानी गढ़ी। (सभी ग्राफिक्स- गांव कनेक्शन)

कोरोना महामारी ने साल 2020 में हाहाकार मचा दिया। सब कुछ बदल गया और ऐसा बदला जो हम सबकी सोच और कल्पना से परे था। नकारात्मकता हमारे जीवन में हावी हो गई। हालात कुछ इस कदर बिगड़े कि पॉज़िटिव शब्द से डर सा लगने लगा। पूरी दुनिया समेत हमारा देश अंधकार के काले रंग से रंग चुका था। ऐसे में कुछ अच्छे बदलाव, सूरज की पहली किरण की भांति प्रतीत हुआ। समाज की भलाई के लिए कुछ प्रशंसनीय और सराहनीय कदम उठाये गए। कुछ उम्मीदें, कुछ आशायें जगीं। अच्छे कदम, अच्छे इंसानों द्वारा ही उठाये जाते हैं। इन्हें हम ईश्वर का दूत कह सकते हैं, जिन्होंने ऐसे हालात में उम्मीद को जिंदा रखा।

कोविड-19 महामारी के दौरान कुछ व्यक्तियों, संगठनों और सरकार द्वारा जरूरतमंद लोगों की दैनिक और पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करने जैसे राहतपूर्ण कदम उठाये गये। साथ-साथ मिट्टी, जल और वन संरक्षण के माध्यम से कुछ परियोजनाओं का निर्माण किया गया, जिसने पर्यावरण के लिए सुरक्षा कवच का काम किया।

पोषकता से भरपूर बगीचों का निर्माण

साल 2020 में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की आंगनवाड़ी में पोषक तत्वों से भरपूर फल-फूल वाले पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। पोषकता से परिपूर्ण इन बागानों का उद्देश्य कुपोषण को खत्म करना और गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना है। पोषक बगीचों के निर्माण का उद्देश इंसानों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है।

उदाहरण के लिए ओडिशा के कांधमहल जिले के फिरंगिया में गैर लाभकारी संस्था केयर इंडिया सॉल्यूशंस फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के प्रयासों द्वारा पोषक बगीचे लगाए गए। भारतीय पोषण और कृषि क्षेत्र में तकनीकी सहायता और अनुसन्धान परियोजना के तहत एकीकृत बाल विकास योजना के लिए पोषण बगीचों को लगाना एक महत्वपूर्ण कदम है। फिरंगिया में 220 आंगनवाड़ी में 44 पोषक बागों के निर्माण को प्रोत्साहित करना ही परियोजना का मुख्य ध्येय था। 2020 के अगस्त महीने में यहाँ 10 पोषक बाग लगाए गए। इनमें से प्रत्येक उद्यान लगभग 40 बच्चों की पोषकता को पूरा करने में सक्षम हैं।

बीते सितम्बर को राष्ट्रीय पोषण का महीना मान कर पूरे देश भर में जैसे पंजाब, असम,आंध्र प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना के ग्रामीण क्षेत्रों में पोषक बगीचों को लगाने पर जोर दिया गया। महाराष्ट्र में 25 जून से 15 जुलाई तक महाराष्ट्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत 92 हजार पोषक बगीचे लगाए गए।

सैनिटरी पैड्स का निर्माण

बेंगलुरु के वाइटफील्ड में स्थित सदारामंगला की महिलाए देश के लिए एक मिसाल हैं। कोरोना महामारी ने जीने के सारे स्रोत इन महिलाओं से छीन लिया था। इसके बाद भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। साबित कर दिखाया कि जहाँ चाह है वहाँ राह है। गैर लाभकारी संगठन, दि गुड क्वेस्ट फाउंडेशन से जुड़कर ये महिलायें, पुनः प्रयोग में आने वाले सैनिटरी पैडों के निर्माण कार्य में लग गईं। वे प्रतिदिन 25 पैडों का निर्माण करतीं और हर रोज़ इसके लिए उन्हें 162 रुपए मिलते। इन सैनिटरी पैडों को कर्नाटक में स्थित एमएम हिल्स की आदिवासी महिलाओं को वितरित किया गया और साथ ही मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता की जानकारी भी दी गई।

मध्य-प्रदेश के रिवा की आदिवासी महिलाओं का एक समूह, दस्तक किशोरी समूह 2018 से ही सैनिटरी पैड के निर्माण कार्य में लगा हुआ है। इसे वे 15 से 20 रुपए की कीमत में गाँवों में बेचती हैं। लेकिन इंसानियत का परिचय देते हुए लॉकडाउन में इन पैडों को निःशुल्क वितरित किया। क्या ऐसे लोगों को ईश्वर का दूत कहना सही नहीं होगा?

स्वयं सहायता समूह

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन एक सरकारी कार्यक्रम है जिसे विश्व बैंक आर्थिक सहायता देता है, 2011 में अस्तित्व में आया। ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब वर्ग के लिए प्रभावी सामुदायिक संस्थानों को बनाने और उनकी आय बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने के लिए इस मिशन की स्थापना की गई थी। अभी तक 66 लाख स्वयं सहायता समूह का निर्माण हो चुका है और 7 करोड़ 20 लाख सदस्य इसमें कार्यरत हैं।

महामारी के दौरान जब सम्पूर्ण देश लॉकडाउन में था, तब देश के 27 राज्यों में स्वयं सहायता समूह द्वारा एक करोड़ 90 लाख मास्क बनाये गए। एक लाख लीटर सैनिटाइज़र और 50 हजार लीटर हैंडवॉश बनाये गये। यही नहीं, समूह ने 10 हज़ार सामुदायिक रसोई का निर्माण गरीबों और फंसे हुए मज़दूरों को खाना खिलाने के लिए किया।


2020 के अक्टूबर में अंतरराष्ट्रीय पहल हुई और इम्पैक्ट इवेल्व फॉर इम्पैक्ट इवलुआन और बेंगलुरु स्थित गैरलाभकारी संगठन वृत्ति ने एक अध्ययन प्रकाशित किया। इस अध्ययन में देशभर के सात राज्यों के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के प्रभाव का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि शुरुआत से (2012-13 से) मिशन से जुड़े लोगों की घरेलु आय में 19% की वृद्धि हुई और औसतन 28% की बचत हुई।

पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले में कृषिवानिकी परियोजना

सन 1998 में पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले के झरबगड़ा गाँव ने गैर लाभकारी संगठन "ग्रामीण विकास के लिए टैगोर समाज" की मदद से एक पहल की। इस पहल में उन गाँव के चारों ओर पौधरोपण किया गया जो हीट वेव्स और अनियमित मौसमी घटनाओं से भली-भांति परिचित थे। गैर लाभकारी संगठन ने अगले पांच वर्षों में 36 हज़ार पौधरोपण का निर्णय लिया और तब से यह काम जारी है।

2020 तक झरबगड़ा गाँव और उसके आस-पास के 387 एकड़ जमीन सघन जंगल से ढक गए। इस जंगल में विविध प्रजाति के वन्यजीव जैसे हाथी और प्रवासी पक्षी रहते हैं। भू-जल संरक्षण के लिए पौधरोपण के दौरान प्राकृतिक संरचनायें भी बनाई गईं। ऐसा ग्रामीणों को पानी निकालने के लिए सौर पंप स्थापित करने के लिए सक्षम बनाने के लिए किया गया है।

इसके अलावा ग्रामीण समुदाय के टैगोर समाज के अनुसार वनों के प्राकृतिक संसाधनों जैसे भूजल सौर पंप और ईंधन के लिए सूखी पत्तियों का प्रयोग कर के गाँववासियों ने लगभग 6 लाख रुपए की बचत की है। ऐसे सफल प्रयासों ने 21 गांवों के 30 हज़ार लोगों को लाभ पहुँचाया है।

आदिवासी महिलाओं द्वारा मुर्गी पालन परियोजना

जनवरी 2020 में, महाराष्ट्र के शाहापुर तलुका में स्थित पिछड़े गाँव खंडूचीवाड़ी में मा ठाकुर जनजाति की आदिवासी महिलाओं द्वारा जनवरी 2020 में गैर लाभकारी संगठन, "पॉप्युलेशन फर्स्ट" के माध्यम से पोल्ट्री या मुर्गीपालन परियोजना की शुरुआत की गई। पॉप्युलेशन फर्स्ट का मुख्य उद्देश्य लिंग और सामाजिक विकास के दृष्टिकोण से स्वास्थ्य और जनसंख्या जैसे विषय पर ध्यान केंद्रित करना है। जनवरी से ही आदिवासी महिलाओं को ट्रेनिंग दी जा रही है।

पोल्ट्री के अंडों को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और पड़ोसी गाँवों को बेचे जाते ताकि उन आदिवासी महिलाओं को स्थिर आय प्राप्त हो सके। यह परियोजना, सरकार द्वारा आदिवासी बच्चों के लिए, जिसमें बच्चों के खाने में अंडा देना अनिवार्य किया गया था, चलाई गई पूरक पौष्टिक योजना को सहायता दे रहा था।

महामारी ने जहाँ सम्पूर्ण देश की नींव को कमज़ोर कर दिया था तो ऐसे में कुछ साहसिक कदम, ज़रूरतमंदों का सहारा बने। जोखिम भरी राह किसी के लिए भी आसान नहीं होती फिर भी डट कर मुकाबला कर के देश के लिए आगे बढ़ने वाले, किसी फरिश्ते से कम नहीं होते। गाँव कनेक्शन ने ऐसे ही कुछ चुनिंदा स्टोरीज को सालाना रिपोर्ट 'दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020' के माध्यम से सामने लाने की एक कोशिश की है। तो आइये इन खबरों को एक बार फिर से पढ़ते हैं-

एक शिक्षक का सपना : 'जब आस-पास कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, तब मेरा विद्यालय ऑक्सीजन चैम्बर बनेगा'


अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए एक बार आलोक एक पौधरोपण कार्यक्रम में गए जहाँ उन्होंने अपनी समस्या लोगों के सामने रखी और यहाँ उनके मित्र ने उनकी मदद की।

Rural women in UP's Gonda employ male migrant workers who returned, emerge changemakers


Women associated with self-help groups in Uttar Pradesh's Gonda district provided employment to about 70 male migrant workers who returned from cities and were jobless. The acknowledgement has motivated more women to come forward.

A walk through the vanams or mini urban forests of Coimbatore in Western Tamil Nadu

Citizen initiatives have created mini forests in and around Coimbatore, Tamil Nadu. These urban vanams are set to expand with thousands of more saplings taking root in the coming months.


समाज के लिए उदाहरण बनीं महिलाओं की कहानी


मदर्स ऑफ़ इण्डिया' पार्ट-5: 'मैं एक ऐसा काम करती हूं जो सिर्फ अपनी बेटी को बता पायी हूं'
'मदर्स ऑफ़ इण्डिया' पार्ट-4: बच्चे भूखे न सोएं इसलिए ये माँ बनाती है ट्रकों के पंचर
'मदर्स ऑफ़ इण्डिया' पार्ट-2: उस मां की कहानी जो हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर अपने बच्चों की परवरिश करती है

गांव कनेक्शन की सालाना रिपोर्ट 'दी स्टेट ऑफ रूरल इंडिया, रिपोर्ट 2020' में कुल 12 चैप्टर शामिल किये गये हैं। हर चैप्टर अलग विषयों की बेहतरीन का एक दस्तावेज हैं। कुछ खबरें आप यहां भी पढ़ सकते हैं-

साल 2020: कृषि कानून, सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, लॉकडाउन और टिड्डियों का हमला, जानिए किसानों के लिए कैसा रहा ये साल

साल 2020 में चक्रवाती तूफान, सूखा, बाढ़, बढ़ते तापमान से जलवायु परिवर्तन ने दिखाया असर

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