टीबी से निपटने की तैयारी में सरकार ने कुबूल की कड़वी सच्चाई

मार्च में प्रकाशित हुई सरकार की अपनी रिपोर्ट के आंकड़े और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सरकार की ओर से दी गई जानकारियों से पता चलता है कि सरकार अब मान रही है कि टीबी को लेकर स्थिति बेहद चुनौती भरी है। टीबी के इलाज में एक समस्या मरीज़ों की पहचान न हो पाना रही है यानी सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक मरीज देश के भीतर हैं।

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   5 Oct 2018 9:03 AM GMT

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वर्ष 2025 तक टीबी के खात्मे का लक्ष्य तय करने वाली भारत सरकार अब उन कड़वी सच्चाइयों को स्वीकार कर रही है, जिन्हें मानने से वह अब तक बचती रही है।

मार्च में प्रकाशित हुई सरकार की अपनी रिपोर्ट के आंकड़े और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सरकार की ओर से दी गई जानकारियों से पता चलता है कि सरकार अब मान रही है कि टीबी को लेकर स्थिति बेहद चुनौती भरी है।

आज दुनिया के 27 प्रतिशत टीबी मरीज भारत में हैं, सरकार ने वर्ष 2025 तक इनसे छुटकारा पाने का लक्ष्य रखा है।

भारत में टीबी के कुल मरीजों की संख्या करीब 28 लाख है। साल 2017 में ही देश के भीतर करीब 4 लाख लोगों की मौत टीबी से हुई। टीबी के खतरनाक रूप मल्टी ड्रग रजिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) का प्रकोप भी भारत में ही सबसे अधिक है। एमडीआर-टीबी होने पर टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाले एंटीबायोटिक ड्रग फेल हो जाते हैं और मरीज़ के बचने की संभावना 50 से 10 प्रतिशत तक रह जाती है।

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आज दुनिया के 27 प्रतिशत टीबी मरीज भारत में हैं, वहीं एमडीआर-टीबी के भी 25 प्रतिशत मरीज भारत में ही हैं। सरकार ने वर्ष 2025 तक इस बीमारी से छुटकारा पाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में यह लक्ष्य हासिल कर पाना नामुमकिन लगता है।

स्वास्थ्य से संबंधित पत्रिका हीलियो में छपे एक लेख में मॉन्ट्रियल स्थित मेकगिल यूनिवर्सिटी के डॉ. मधुकर पाइ कहते हैं, "भारत में टीबी का प्रकोप सबसे अधिक है। यहां अधिकतर लोग निजी अस्पतालों में ही इलाज कराते हैं। प्राइवेट सेक्टर की सक्रिय भूमिका के बिना इस बीमारी का निदान मुश्किल है।"

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सच ये भी है कि सरकारी स्वास्थ्य का ढांचा बहुत लचर है और लोग निजी अस्पतालों में जाने के लिये मजबूर हैं। हालांकि भारत में टीबी के मरीजों और टीबी से होने वाली मौतों की संख्या में मामूली गिरावट हुई है, लेकिन यह इस बीमारी के खात्मे के लिए काफी नहीं है।

हर साल हर एक लाख लोगों में से 200 से अधिक लोग टीबी की पकड़ में आ रहे हैं। सरकार कहती है कि वह यह संख्या 200 से घटाकर 1-2 (प्रति लाख) लोगों तक लाएगी जो कि एक पहाड़ जैसा लक्ष्य है।

टीबी के इलाज में एक समस्या मरीज़ों की पहचान न हो पाना रही है यानी सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक मरीज देश के भीतर हैं। डॉक्टर्स विद आउट बॉर्डर यानी एमएसएफ की लीना मेंघाने कहती हैं, "सरकार ने अब आंकड़े प्रकाशित करने शुरू किये हैं और वह पारदर्शिता बरत रही है ये अच्छी बात है।"

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ज़रूरत से करीब 10 हजार करोड़ कम बजट

देश के ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाकों में इलाज न मिल पाना और मरीज़ों के लिये जांच की सुविधा न होना एक बड़ी समस्या है। मेंघाने के मुताबिक दुनिया भर में टीबी की बीमारी पर बड़ी कंपनियां रिसर्च नहीं कर रही क्योंकि उन कंपनियों को लगता है कि यह गरीबों को होने वालीबीमारी है। भारत ने इसके उपचार कार्यक्रम में अपना बजट बढ़ाया है और 2018 में इसके लिये करीब 4400 करोड़ रुपए दिये हैं, लेकिन इंडिया स्पेंड में छपी एक रिपोर्ट कहती है कि यह ज़रूरत से करीब 10 हज़ार करोड़ कम है।

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