#MenstrualHygieneDay: सिर्फ सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना ही लक्ष्य नहीं, इन मुश्किलों पर भी बात हो
Shefali Srivastava 28 May 2017 2:31 PM GMT

लखनऊ। मेंस्ट्रुअल हाइजीन के लिए महिलाओं को कपड़ा या राख की जगह डिस्पोजल सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
ऐसा बताया जाता है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं राख तक इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में उन तक सैनिटरी नैपकिन पहुंचना जरूरी है लेकिन लक्ष्य सिर्फ इतना ही नहीं होना चाहिए। मेंस्ट्रुअल हाइजीन के लिए सैनिटरी नैपकिन के साथ ही इसके सही इस्तेमाल की जानकारी भी महिलाओं को जानना जरूरी है।
आज हम आपको बता रहे हैं सैनिटरी नैपकिन के अलावा और क्या-क्या बातें हाइजीन के लिए ध्यान देने वाली हैं-
ज्यादा देर इस्तेमाल करने से कैंसर कारक उत्पन्न हो सकते हैं
महिलाओं अब सैनिटरी नैपकिन को अपना रही हैं लेकिन उन्हें कितने समय में और क्यों बदलना चाहिए इससे अंजान रहती हैं। वुमन्स वॉइस ऑफ द अर्थ के रिसर्च के मुताबिक सेंटेट (महक वाले) या अनसेंटेट पैड (बिना महक वाले) में केमिकल्स पाए जाते हैं जो टॉक्सिक या कैंसर उत्पन्न करने वाले कारक बना सकते हैं लेकिन मैन्युफेक्चरर इसे ग्राहक से नहीं बताते।
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साफ शौचालय और डस्टबिन की कमी
भारत में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने के साथ महिलाएं उसे लगातार बदल पाने में असमर्थ होती हैं। इसकी कई वजहें हैं जैसे पैड की ज्यादा कीमत, उसे बदलने या फेंकने के लिए वॉशरूम या डस्टबिन का न होना।
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चार से छह घंटे में पैड बदलना जरूरी
कई महिलाएं ऐसी होती है जो एक दिन में एक पैड ही इस्तेमाल करती है और इस वजह से उन्हें स्किन इंफेक्शन व रैशेज जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। पैड को ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने से उसमें बैक्टीरिया पनपने लगते हैं इसलिए चार से छह घंटे में उसे बदलना जरूरी है।
लागत कम करने की जरूरत
एक महिला को महीने में कम से कम आठ से दस पैड की आवश्यकता होती है जिसकी कीमत 80 से 100 रुपए हो सकती है या 900 रुपए सालाना। इसी तरह अगर एक घर में दो से तीन महिलाएं हैं तो उन्हें इस लागत में और सुधार करने की जरूरत है।
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