हवाओं का न तो कोई मानचित्र होता है, और न कोई सीमा होती है 

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हवाओं का न तो कोई मानचित्र होता है, और न कोई सीमा होती है प्रतीकात्मक फोटो

ऋषि पाण्डेय

हरियाणा सहित पूरे उत्तर भारत को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए हरियाणा सरकार का अभियान स्वागत योग्य है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के तर्ज पर पर्यावरण भी एक राष्ट्रीय अभियान बने, इसके लिए हरियाणा सरकार ने सकारात्मक पहल की है। केजरीवाल और मनोहर लाल की मुलाक़ात से ‘आईडिया एक्सचेंज’ का जो सिलसिला शुरू हुआ है, वो हरियाणा को भी निश्चित तौर पर फायदा पहुंचाएगा क्योंकि दिल्ली के तीन तरफ से हरियाणा है और हरियाणा का 58 फीसदी हिस्सा एनसीआर में आता है।

जनाब हवाओं का कोई मानचित्र नहीं होता, कोई सीमा नहीं होती। दिल्ली के भयानक ट्रैफिक पॉल्यूशन का असर हरियाणा पर भी पड़ता है। दिल्ली से गुजरने वाली ट्रकों का धुआं हमारे फेफड़ों तक भी पहुंचता है। हरियाणा के लाखों लोग रोज दिल्ली सफर कर नौकरी या कारोबार करने जाते हैं। जितना जुड़ाव दिल्ली का हरियाणा से है, वो पंजाब या किसी और प्रदेश का नहीं हो सकता। हमारा भूगोल आपस मे जुड़ा है और आर्थिक हित भी।

दिल्ली का स्वस्थ रहना हरियाणा के हक में है। कोंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेस-वे 31 मार्च तक पूरा होगा, जिससे ट्रकों से होने वाला पॉल्यूशन तो घटेगा ही, पलवल और फरीदाबाद का इलाका नया बिज़नेस हब बनेगा। वेयर हाउसिंग इंडस्ट्री बढ़ेगी तो जमीनों की कीमत भी बढ़ेगी और हमारे लोगों को रोज़गार भी मिलेगा। कुल मिलाकर हरियाणा को इसका आर्थिक लाभ होगा। गुरुग्राम में 500 नई बसें चलाई जाएंगी, जो सीएनजी किट से लैस होगी।

हरियाणा के हित दिल्ली से जुड़े हुए हैं। दिल्ली देश की राष्ट्रीय राजधानी है। हरियाणा सरकार सतर्क और जागरुक है, जिसकी तस्दीक़ सैटेलाइट इमेजेस से भी हो रही हैं। सही मायने में हरियाणा ने पराली जलाने को लेकर ईमानदार प्रयास किया है। हरियाणा में प्रदूषण घटा है, लेकिन इसे अभी अभियान बनाने की जरूरत है। किसानों को जागरूक भी करना है और पराली जलाने के विकल्पों पर भी हरियाणा सरकार काम कर रही है।

विडंबना ये है कि अरविंद केजरीवाल चंडीगढ़ आकर पराली जलाने पर हो-हल्ला करते हैं और उधर फिरोजपुर में उनकी पार्टी से विधानसभा में नेता सुखपाल खैरा किसानों के साथ पराली स्वयं जलाते हैं। हरियाणा सरकार की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में फ्यूल सरचार्ज लगाकर 700 करोड़ रुपये पर्यावरण बचाने के नाम पर इकट्ठे किये हैं, लेकिन खर्च सिर्फ 93 लाख रुपये ही अब तक हुए हैं।

(यह विचार एक स्वतंत्र पत्रकार के हैं )

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