"उसने 'गलत काम' किया": बलात्कार की एफआईआर में शब्दों का हेरफेर दोषियों की आज़ादी का बड़ा कारण

पुलिस का कहना है कि हिचक के कारण अक्सर पीड़िता बलात्कार की शिकायत खुले शब्दों में नहीं करती; क़ानूनी सलाहकार कहते हैं कि पुलिस अक्सर जान बूझ कर या अनजाने में सही धाराएँ नहीं लगाती।

Neetu SinghNeetu Singh   28 Dec 2019 5:46 AM GMT

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उसने गलत काम किया: बलात्कार की एफआईआर में शब्दों का हेरफेर दोषियों की आज़ादी का बड़ा कारण

नीतू सिंह/मोहित शुक्ला

सीतापुर, उत्तर प्रदेश। तीन साल बाद पहली बार उसके घर कोई मिलने आया था।

इक्कीस साल की वो दुबली-पतली महिला हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहने रिपोर्टर को बड़ी उम्मीद से देख रही थी। उसे लगा आखिरकार कोई अधिकारी घर आया है। सवा तीन साल पहले उसने पुलिस को बताया था कि 14 अगस्त 2017 को खुले में शौच के दौरान एक पड़ोसी ने उसके साथ "गलत काम" किया था। लेकिन आरोपी आज तक पकड़ा नहीं गया।

"आप ही पढ़ लीजिए क्या लिखा है? हमने थाने में कहा था उसने मेरे साथ गलत काम किया है लेकिन सब कह रहे हैं धारा छेड़खानी की लिखी है। एफआईआर की कॉपी दिखाते हुए उसने कहा, "वो ऐसे ही घूम रहा है उसे न तो पुलिस ने पकड़ा और न ही कोई कार्रवाई की।"

जिला मुख्यालय से लगभग चालीस किलोमीटर दूर पिसावां ब्लॉक में रहने वाली महिला की कहानी रोज़ देश के अलग-अलग हिस्सों में थानों में दुहराए जाने वाली कहानी है। बलात्कार पीड़िता हिचक या जानकारी की कमी के कारण बलात्कार की एफआईआर खुले शब्दों में बता नहीं पातीं, और इसका लाभ दोषियों को मिलता है क्यूंकि इस वजह से उनके खिलाफ हल्की धाराएं लगाई जाती हैं।

न्याय की उम्मीद में बैठी पीड़िता

पीड़िता शहर की चकाचौंध से दूर एक गांव की रहने वाली है। माता-पिता ने बारह साल की उम्र में शादी कर दी, स्कूल जाने का उसे कभी मौका नहीं मिला। अब 21 साल की हो चुकी पीड़िता के दो बेटियां और एक बेटा है। घटना के समय वो 19 साल की थी।

पीड़िता की एफआईआर की कॉपी में छेड़खानी की आईपीसी की धारा 354, धमकी देने के लिए धारा 506 लगी है, जिसमें आरोप सिद्ध हो जाने पर दो से सात साल तक की सजा और आर्थिक दंड का भी प्रावधान है।

"क्या करूं, कहां जाऊं, किससे कहूँ कोई सुनने वाला नहीं? मन करता है खुदकुशी कर लूं पर बेटियों के चेहरे सामने आ जाते हैं। अपने छोटे-छोटे बच्चों से छिपकर बात करनी पड़ती है, कहीं उनपर गलत असर न पड़ जाए," धंस चुकी आँखों से देखते हुए वो परेशान स्वर में बोली।

एफआईआर में हल्की धाराएं लगने से आरोपी को मिलता है पूरा फायदा

जब इस केस के बारे में उस क्षेत्र के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, महोली थाने के प्रभारी निरीक्षक राजेन्द्र शर्मा से बात की तो उन्होंने पुराना रजिस्टर देखकर बताया, "एफआईआर लिखते समय पीड़िता ने छेड़खानी बताया था, वही लिखा गया। बाद में मजिस्ट्रेट के सामने बयान में रेप बताया तो धारा 376 बढ़ा दी गयी है। चार्जशीट लग गयी है, मामला कोर्ट में चल रहा है।"

राजेन्द्र शर्मा से पूछा गया कि पीड़िता ने ऐसा आरोप लगाया कि रेप बताने के बाद भी एफआईआर में छेड़खानी दर्ज की गयी। इस पर वो बोले, "ग्रामीण क्षेत्रों में कई बार महिलाएं संकोचवश रेप की घटना को छेड़खानी बता देती हैं। हम वही लिखते हैं जो वो बताती हैं। बाद में जब उन्हें आसपास के लोग सलाह दे देते हैं तो वो बयान में रेप बता देती हैं, हम धाराएं बढ़ा देते हैं। एफआईआर के समय जो धाराएं लगी थीं उसमें मुलजिम जेल नहीं जाता इसलिए उसकी गिरफ्तारी नहीं हुई।"

उत्तर प्रदेश में हर चौथे घंटे एक महिला के साथ रेप या हिंसा की वारदात होती है, जो देश में सबसे अधिक है। देशभर में अपराधों को दर्ज़ करने वाली संस्था राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में कुल 3.59 लाख महिलाओं पर हिंसा के मामले हुए। इनमे सबसे अधिक 56,011 मामले अकेले यूपी के हैं।

पीड़िता अपने छोटे बच्चे के साथ

"कई बार ऐसा होता है पीड़िता सीधे बलात्कार शब्द का इस्तेमाल न करके उसे 'गलत काम' हुआ या 'बद्तमीजी हुई' बोल देती है," महिलाओं को नि:शुल्क कानूनी सलाह प्रदान करने वाली गैर सरकारी संस्था 'आली' की संरक्षक और वकील रेनू मिश्रा इस केस के बारे में कहती हैं, "पुलिस वाले कई बार जानते हुए और कई बार अनजाने में छेड़छाड़ का मामला दर्ज कर लेते हैं। इसमें हल्की धाराएं लगती हैं जिससे आरोपी जमानत पर जल्दी छूट जाता है। जब पीड़िता अपने बयान में रेप बताती है तो धाराएं चार्जशीट में बढ़ा दी जाती हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "धारा बढ़ने के बाद आरोपी को पुन: गिरफ्तार किया जाता है और उसे दोबारा बेल लेनी पड़ती है। जमानत उसी शर्त पर आरोपी को मिलती है कि वो पीड़िता को डराएगा धमकाएगा नहीं। सबूत के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा, भागकर कहीं जाएगा नहीं।"

सीतापुर के गाँव में रहने वाली पीड़िता को न तो धाराएं पता हैं न ही कानून की समझ है। रेप आरोपी को क्या सजा मिलनी चाहिए इस बात से भी वो बेखबर है। वो तो बस इतना जानती है कि उसके साथ रेप हुआ है उसका आरोपी जेल जाना चाहिए और उसे सजा मिलनी चाहिए।


पीड़िता के परिवार को न्याय न मिलने की वजह अपनी गरीबी और रसूखदार न होना ही लगता है। पीड़िता के ससुर कहते हैं, "कई बार महोली थाने गये पर कोई ठीक से ये भी नहीं बताता है कि अभी मामले में हुआ क्या? तीन साल हो गये हैं इस मामले को, पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो हम भी चुपचाप बैठ गये।"

उन्होंने आरोप लगाया, "आरोपी का ग्राम प्रधान से रिश्ता है जिसकी वजह से प्रधान जी ने राशनकार्ड से मेरा और मेरे लड़के का नाम कटवा दिया है। घर के बाहर चारो तरफ नाली का पानी बह रहा है पर प्रधान जानबूझकर कुछ नहीं कर रहे हैं, शौचालय भी नहीं दिया। कह रहे हैं समझौता कर लो, हम करना नहीं चाहते तभी वो इस तरह से बदला ले रहे हैं।"

दुष्कर्म जैसी वीभत्स घटनाओं के बाद इन पीड़िताओं को ग्रामीण क्षेत्रों में काउंसलिंग जैसी सुविधाएं भी नहीं मिलती जो इन्हें ऐसी घटनाओं से उबरने की हिम्मत दें।

रेनू मिश्रा कहती हैं, "एफआईआर दर्ज हो ये हमारा मौलिक अधिकार है। कई बार यही नहीं दर्ज होती। काउंसलिंग की सुविधा का भी प्रावधान है पर जानकारी के अभाव में वो भी नहीं मिल पाती, इसलिए लड़कियों को पढ़ाना बहुत जरूरी है और उनकी शिक्षा तबतक अधूरी है जबतक उन्हें कानूनी शिक्षा न मिले। बारहवीं तक की जो भी किताबें हैं उसमें बेसिक कानूनी शिक्षा की जरूर जानकारी दी जाए जिससे उन्हें अपने अधिकार पता हों।"

पीड़ित परिवार इस बात से अंजान है कि अभी आरोपी पर जो धाराएं लगी हैं उसपर सजा का क्या प्रावधान है।

'मन करता है खुदकुशी कर लूं पर बेटियों के चेहरे सामने आ जाते हैं' पीड़िता अपनी बेटी के साथ

"सब मुझे ही गलत बता रहे हैं। पड़ोस के लोग कहते हैं उसकी (आरोपी) उम्र इतनी ज्यादा है वो ऐसा क्यों करेगा? मेरे साथ गलत भी हुआ और लोगों से नजरे भी मुझे ही चुरानी पड़ रही हैं," पीड़िता ने कहा।

"ये शुरू से ही बहुत सीधी है, कम बोलती है, अपनी बात भी सही से नहीं कह पाती है, "पीड़िता की सास ने बताया, "हम गरीब लोग हैं कितनी बार कामकाज छोड़कर थाने के चक्कर लगाएं? हमें तो ये भी नहीं पता इस मामले में अभी चल क्या रहा है?"

पीड़िता के दरवाजे नालियों का गंदा पानी भरा है जिसकी वजह से आसपास कीचड़ है। मिट्टी के चूल्हे के बगल के एक कोने में पुआल पर कुछ बिस्तर बिछे थे जिस पर उनके छोटे बच्चे उछल कूंद कर रहे थे। जिस आधे कमरे में भूसा भरा था वहीं खड़े होकर वो हमसे बात कर रहीं थीं जिससे उनकी बेटियां बातचीत को सुन न सकें।

"हमारी छोटी नातिनें हैं उन्हें भी बाहर अकेले नहीं जाने देते। स्कूल भेजते समय भी बहुत फिकर लगी रहती है, कबतक डर के साथ जिएंगे," उन्होंने कहा, "वो ग्राम प्रधान का चचेरा भाई है उसे किस बात का डर?"

एनसीआरबी की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार जितने भी बलात्कार के मामले दर्ज किए गए उनमें से 93.1% मामलों में पीड़िता के जानने वाले थे, जिन्हें पीड़िता की हर हरकत पर नजर होती है।

"उसको ऐसे घूमते देखती हूं तो बहुत गुस्सा आता है," पीड़िता ने कहा, "ऐसा लगता है वो मुझे चिढ़ा रहा हो कि हमने तुम्हारे साथ सबकुछ किया पर तुम कुछ नहीं कर पायी।"

बलात्कार के बाद सीरीज के सभी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें---

भाग-1 कैसी है उस बच्ची की जिंदगी जो 12 साल की उम्र में रेप के बाद मां बनी थी?

भाग-2 रेप के बाद घर पहुंची नाबालिग के लिए भाई ने कहा- इसे मार डालो, मां ने नहीं की हफ्तों बात

भाग-3 बलात्कार के बाद सीरीज पार्ट-3 'बिटिया जब घटना को याद करती है तो रोने लगती है'

भाग-4 "गैंगरेप की घटना के बाद लोग मेरे ही साथ अछूतों सा व्यवहार करते हैं..."

भाग-5 गैंगरेप हुआ है इसके साथ, अब कौन करेगा तुम्हारी बेटी से शादी' ?

भाग-6 बलात्कार के बाद गर्भवती बनी मूक-बधिर नाबालिग लड़की के पिता ने कहा- इसे जहर दे दो


   

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