ये हैं आदिवासियों के मौसम विभाग : घड़े का जल देखकर करते हैं भविष्यवाणी
Ashwani Nigam 9 April 2018 2:57 PM GMT
पिछले कई दिनों से मौसम का रुख बदला हुआ है.. लेकिन मौसम विभाग ने इसके लिए पहले ही अनुमान जारी किया था, लेकिन सोचिए जब मौसम विभाग नहीं था, मानसून और मौसम के बारे में जानकारी कैसे मिलती होगी, एक तरीका ये भी है..
मौसम और आने वाले मानसून को लेकर सैटेलाइट और विज्ञान आधारित दूसरे साधनों के जरिए की जाने वाली भविष्यवाणी कभी-कभी गलत हो जाती है लेकिन अपने देश में सैकड़ों साल से परंपरागत तरीके से मौसम लेकर की जाने वाली आदिवासी समाज की भविष्यवाणी कभी गलत साबित नहीं हुई है।
हर साल की तरह गुरूवार को झारखंड में प्रकृति पर्व सरहुल मनाया गया और इसकी भव्य शोभायात्रा निकाली गई। रांची विश्विविद्यालय के पीछे स्थित हातमा बस्ती में रांची के मुख्य पाहन जगलाल पाहन ने सरई (सखुआ) वृक्ष की पवित्र छाया में चंडी बोंगा की विधिवत की। इसके बाद दो पवित्र घड़ों में रखे जल को देख कर इस साल के मौसम की भविष्यवाणी की। उन्होंने बताया कि इस बार मानसून ठीक रहेगा, अच्छी वर्षा होगी और फसल भी बढ़िया होगी।
घड़ों के जरिए की जाने वाली यह भविष्यवाणी हर साल कौतुहल का कारण रहती है और लोग इसका इंतजार करते हैं। पिछले तीन दशक से इसकी घोषणा करने वाले जगलाह पाहन कहते हैं '' आदिवासी समाज प्रकृति के निकट रहने वाला है। हमारी परंपरागत व्यवस्थाएं हैं। अभी तक मौसम को लेकर की जाने वाली हमारी भविष्यवाणी कभी गलत नहीं हुई है।''
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सरहुल झारखंड में मनाये जाने वाला एक बड़ा पर्व है, जिसको प्रकृति को समर्पित माना जाता है। चारों तरफ खुशहाली रहे, हरी-भरी धरती रहे, अच्छे मानसून के साथ बरसात इसी कामना के साथ आदिवासियों का यह पर्व सरहुल मनाया जाता है। दो दिन के इस पर्व में बुधवार की सुबह लोग सवेरे नाचते-गाते मछली और केकड़ा के शिकार पर निकल पड़े। सभी घरों के मुखिया दिन भर व्रत किए। इस दौरान शहर आदिवासी के पूजा स्थल जिसे सरना स्थल कहते हैं उसकी साफ-सफाई और सजावट की गई।
शिकार से लौटने के बाद सरना पूजा स्थल पर पाहन यानि आदिवासियों के पूजारियों की तरफ से पूजा स्थल पर दो घ़डों में पवित्र जला भरा गया। अपने देवताओं को खुश करने के लिए पांच मुर्गे और पांच मुर्गियों की बली दी गई। सरना पूजा स्थल पर सफेद और लाल मिश्रित झंडा भी लगाया गया। जिसे सरना झंडा कहते हैं। गुरुवार की सुबह सरना स्थल पर पाहन के नेतृत्व में फिर परंपरागत पूजा हुई। इसके बाद जिन घड़ों में पानी भरा गया था उसको देखकर मुख्य पाहन जगला पाहन ने मौसम और मानसून की भविष्यवाणी की। इसके बाद 12 प्रकार की नई सब्जियों और अरवा चावल का सखुआ के पत्तों में रखकर पूर्वजों का चढ़ाया गया। इसे बाद सभी लोग सरना पूजा स्थल पर एकत्रित होकर मांदर की थाप पर सरहुल के गीतों पर नाचते-गाते हाथों में सरना झंडा लेकर शोभायात्रा के लिए निकले।
सरहुल के पर्व में केकड़ा जिसे आदिवासी लोग अपनी भाषा में खखड़ा कहते हैं उसका बहुत महत्व है। इस पर्व जिस केकड़े का शिकार किया जाता है उसे घर के चूल्हे के पास टांग दिया जाता है। फिर जब धान की बुवाई की जाती है तो उसके साथ इसका चूरा बनाकर खेत में डालते हैं। मान्यता है कि इससे केकड़े की तरह धान में भी असंख्य बालियां होंगी और अच्छी धान की उपज होगी।
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