मिट्टी बेचकर होता है परिवार का भरण पोषण
गाँव कनेक्शन 15 April 2017 3:53 PM GMT
सुखवेन्द्र सिंह परिहार, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
ललितपुर। एक ओर मोदी सरकार किसानों की आय दो गुनी करने के प्रयास में लगी है, वहीं दूसरी ओर घुमन्तू प्रजाति के लिए कोई सुविधायें नहीं मिल रही। ऐसे में इनकी आय बढ़ने के लिए क्या उपाय है, किसी को नहीं पता।
मप्र० सागर रजवास लाल पठार में रहने वाले राम सिंह बंजारे (45 वर्ष) का कहना है,"मिट्टी बेचकर हमारी रोजी रोटी चलती है, 40 से 50 किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्रों में घूम कर पुतनयाऊ मिट्टी बैलगाड़ी पर रखकर बेचते हैं। यह काम केवल बरसात के दिनों में बंद रहता है। गर्मियों में जो कुछ कमाते है, वही बरसात के दिनों में घर बैठकर खा लेते हैं।
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बैलगाड़ी में हमारी पत्नि व दोनों बच्चे है। बच्चों को किसके सहारे छोड़े इसलिए साथ लेकर चलते है" वो आगे बताते है, "इस बार महरौनी क्षेत्र में मिट्टी बेचने आये हैं। ललितपुर के मदनपुर सीमा में आने पर 100 नम्बर पुलिस वालों ने परेशान किया, कह रहे थे कि इस मिट्टी को चोरी से लाये हो, उनको सौ रुपए देने पड़े तब जाकर मिट्टी बेच पाए।"
वहीं शांति बंजारे (42 वर्ष) बताती हैं कि " पीली मिट्टी का उपयोग कच्चे घरों में लीपने व पोतने के काम आती है, साथ ही साथ मिट्टी के चूल्हे में रोज उपयोग होता है।
सागर मप्र से उत्तर दिशा में रजवास लाल पठार पर लगभग 24 परिवार रहते हैं। ये सभी आवास, शिक्षा, मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं इनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है। जिस वजह से बैलगाड़ी के सहारे मिट्टी बेचकर परिवार का पेट भरते हैं।
सीता बंजारे (35 वर्ष) बैलगाड़ी चलाते हुए बताती है " हम लोग दो - तीन दिन में पाँच कुन्तल मिट्टी बेचकर एक कुन्तल गेहूं खरीद लेते हैं। वो आगे बताती हैं कि यह मिट्टी आस पास में नहीं मिलती, जिसको सागर मप्र० के बन्डा छावरी से मंगाते हैं। जहां से 20 हजार में एक ट्रक मिट्टी खरीदते है। फिर बैलगाड़ी से रखकर बेचते हैं। वो आगे बताती हैं कि यही मेरी आय का श्रोत है।
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