झारखंड के इस आईएएस ऑफिसर ने बनाया अनूठा फोन बूथ, अब कोविड-19 के सैंपल के लिए नहीं पड़ेगी पीपीई किट की जरूरत

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के इस आईएएस अफसर आदित्य रंजन ने कोविड-19 की लड़ाई में कई ऐसे इनोवेशन किये हैं जिसे अगर देशभर में लागू किया जाए तो स्वास्थ्य विभाग की तमाम मुश्किलें आसान हो सकती हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   15 April 2020 1:38 PM GMT

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इस आईएएस अफसर ने कोविड-19 से लड़ाई आसान करने के लिए कई अविष्कार किये हैं। अगर इनके बनाये उपकरणों को देशभर में लागू किया जाए तो करोड़ों रूपये की बचत हो सकती है।

झारखण्ड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के अपर आयुक्त आदित्य रंजन ने हाल के दिनों में कोविड-19 की सैंपल टेस्टिंग के लिए एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिसमें सैंपल टेस्टिंग के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई ) किट पहनने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

इस कलेक्शन सेंटर को आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। कम पैसे में और कम समय में एक बड़ी आबादी का संक्रमण टेस्ट करने में यह सेंटर कारगर साबित होगा। इन्होंने एक रिमोट से चलनी वाली को-बोट नाम की एक ट्राली भी बनाई है जिससे संक्रमित मरीज के पास दवा, खाना बिना स्वास्थ्यकर्मी की मदद से पहुंच जाएगा।

फोन बूथ कोविड-19 सैम्पल कलेक्शन सेंटर के सामने टेस्टिंग कराते आदित्य रंजन

"देश में इस समय पीपीई किट की बहुत कमी है। दिन-प्रतिदिन संदिग्ध लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। कई जगह तो सैम्पल टेस्टिंग के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला हुआ है। टेस्टिंग की प्रक्रिया को कैसे आसान किया जाए इसके लिए विदेशों के कुछ वीडियो देखे थे। वहीं से आईडिया आया। 'फोन बूथ कोविड-19 सैंपल कलेक्शन सेंटर' स्थानीय इंजीनियर्स की मदद से तीन दिन में अपने घर में ही बनाकर तैयार कर लिया," आदित्य रंजन ने बताया।

बोकारो के एक छोटे से कस्बे चास में जन्मे और एक सरकारी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने वाले आदित्य रंजन ने रांची के बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान मेसरा (बीआईटी) संस्थान से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। इंजीनियरिंग बैकग्राउंड होने की वजह से इन्होंने इस लॉकडाउन के दौरान कई नवाचार किये हैं जिसे अगर हर जगह अपनाया जाए तो स्वास्थ्य की कई समस्याएं हल हो सकती हैं।

'फोन बूथ कोविड-19 सैंपल कलेक्शन सेंटर' एल्युमीनियम शीट से तैयार किया गया पूरी तरह से 'एयर टाइट' है, इसमें हवा अंदर-बाहर नहीं जा सकती। स्वास्थ्यकर्मी इसके अंदर बैठकर ग्लब्स पहनकर कोरोना से संदिग्ध मरीज का सैंपल बड़ी आसानी से ले सकता है। इस कैबिन में एक स्वास्थ्यकर्मी के 20 मिनट तक रहने की व्यवस्था की गई है। एक मिनट में एक व्यक्ति का सैम्पल लिया जा सकता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि स्वास्थ्यकर्मी को संदिग्ध मरीज के सैंपल लेते समय पीपीई किट पहनने की आवश्यकता नहीं है।

ये है वो सेंटर जहाँ से स्वास्थ्यकर्मी बिना पीपीई किट पहने मरीजों के सैम्पल ले सकता है.

डब्लूएचओ की गाइडलाइन्स के मुताबिक पीपीई यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट में ग्लव्स, मेडिकल मास्क, गाउन और एन95, रेस्पिरेटर्स शामिल होते हैं। जिसे सैम्पल लेने वाले हर स्वास्थ्यकर्मी को पहनना पड़ता है। एक पीपीई किट की लागत 600-3,000 रुपए तक होती है जिसमें एक व्यक्ति का सैम्पल लेने के बाद इस पीपीई किट को बदलना पड़ता है।

"देश में बढ़ते हुए संदिग्ध मामलों को देखते हुए ये पीपीई किट बहुत महंगी पड़ेगी। इसमें करोड़ों रूपये खर्च होगा। फोन बूथ सैम्पल में केवल एक बार लागत लगती है, इसके बाद एक बड़ी संख्या में जांच बिना किसी खर्च के होते रहेगी। सैम्पल लेने वाला स्वास्थ्यकर्मी संदिग्ध मरीजों से दूर रहेगा। जिससे उनमें संक्रमण का खतरा कमसेकम होगा ," आदित्य रंजन ने फोन बूथ सैम्पल कलेक्शन के फायदे बताये।

एक फोन बूथ कोविड-19 सैंपल कलेक्शन सेंटर को बनाने में 15,000-20,000 रूपये की लागत आती है जिसमें हजारों लोगों का सैम्पल कम समय में लिया जा सकता है। पश्चिमी सिंहभूम जिले में चार अप्रैल को इसकी शुरुआत हो गयी है।'फोन बूथ कोविड-19 सैंपल कलेक्शन सेंटर' में मरीज के खांसने व छींकने के दौरान ड्रॉपलेट्स से फैलने वाले संक्रमण को रोकने के लिए इसे चारों तरफ से ग्लास से कवर किया गया है। अंदर बैठे स्वास्थ्य कर्मी की आवाज मरीज सुन सके इसके लिए कैबिनेट के अंदर माइक लगाया गया है।

ये है को-बोट नाम वो उपकरण जिससे संक्रमित मरीजों के पास रिमोट के द्वारा दवा और खाना पहुंच सकता है.

इसका नाम फोन बूथ सेंटर रखने के पीछे की कोई ख़ास वजह इस पर आदित्य रंजन ने कहा, "इसे बिलकुल फोन बूथ की तरह बनाया गया है। इसे चारों तरफ कांच से घेरा गया है जिसके अंदर डॉक्टर बैठकर बाहर में खड़े व्यक्ति का सिर्फ एक मिनट में मुंह और नाक के सैम्पल ले लेंगे। इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसे किसी छोटे वाहन में रखकर गांव-कस्बों में जाकर कहीं भी जांच की जा सकती है।"

जिन जगहों पर ज्यादा सैम्पल लेने हैं वहां पर इस बूथ के जरिये सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए कम समय में ज्यादा सैंपल लिए जा सकते हैं।

आदित्य के द्वारा 'फोन बूथ कोविड-19 सैंपल कलेक्शन सेंटर' के अलावा एक इनोवेशन 'को-बोट' नाम के एक उपकरण का किया है जो रिमोट से चलता है। ये ट्राली नुमा एक गाड़ी के आकार का रोबोट होता है जिसमें 30 लोगों का नाश्ता, खाना और दवा संक्रमित मरीजों के पास बिना स्वास्थ्यकर्मियों की मदद से पहुंच जाएगा। इससे संक्रमित व्यक्ति के पास कम से कम आना-जाना होगा। केवल एक व्यक्ति रिमोट से उसे कण्ट्रोल करता है, इसमें एक माइक और कैमरा भी लगा है जिससे मरीज और रिमोट चलाने वाला व्यक्ति आपस में बात कर सकते हैं और मरीज की स्थिति को कैमरे से देख सकते हैं।

सभी लोगों अपने चहरे पर लगाये हैं फेश शील्ड, इससे संक्रमण फैलने की संभावना बहुत कम.

"दुनियाभर में सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी मरीज की देखभाल करते हुए इस वायरस की चपेट में आये हैं। कुछ की तो जाने भी गयी हैं इसलिए ये 'को-बोट' संक्रमण से बचाने में काफी कारगर साबित होगा। मरीजों को दवा, खाना देते समय भी पीपीई किट पड़ती है इससे उसकी भी बचत होगी," आदित्य रंजन ने बताया।

इस 'को-बोट' की कीमत लगभग 25,000 रुपए है। इसे बनाने में आदित्य को महज तीन दिन लगे।

देश में अगर सबसे ज्यादा इस संक्रमण के फैलने की संभावना है तो वो डॉ, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, आशा कार्यकर्ता और सफाईकर्मी में हैं क्योंकि ये वो लोग हैं जो लगातार अपनी ड्यूटी कर रहे हैं और संदिग्धों के बीच रह रहे हैं। ये लोग अपने काम के दौरान हमेशा सुरक्षित रह सकें इसके लिए आदित्य रंजन ने 'फेस शील्ड' बनाया है। इस फेस शील्ड (विशेष प्रोटेक्शन) को स्वास्थकर्मी मास्क के ऊपर हेलमेट की तरह पहन सकते हैं। इस कवर से इनमे संक्रमण होने की संभावना काफी कम है। जिले में स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस विभाग को ये नि:शुल्क दिए गये हैं।

हर बेड को किया गया है आइशोलेटेड जिससे एक मरीज दूसरे मरीज के संपर्क में न आये.

इतने कम समय में आपने इतने सारे इनोवेशन करने का ख्याल कैसे आया? इस सवाल के जवाब में आदित्य कहते हैं, "मेरा इंजीनियरिंग बैकग्राउंड होने की वजह से इन सब कामों में हमेशा से दिलचस्पी रही है। ये सब करना बहुत कठिन नहीं था। अगर इसे हर जगह लागू किया जाए तो मुझे लगता है स्वास्थ्यकर्मियों के लिए काफी उपयोगी होगा।"

एक फेस शील्ड को तैरान कराने में लगभग 110 रुपये की लागत आयी है। इसे तैयार करने में विशेष प्रकार के पारदर्शी प्लास्टिक का उपयोग किया गया है। इसे कैप की तरह सिर में आसानी से फिट किया जा सकता है। वहीं पसीने को सोखने के लिए इसके आगे सिर की ओर फोम लगाया गया है। फोम के कारण पहनने में यह आरामदायक लगता है।


झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम जिला नक्सल के लिए जाना जाता है और सुविधाओं के नाम काफी पिछड़ा हुआ जिला है। आदित्य रंजन के लिए प्रयास की राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी सराहना की है। इस प्रयास को राजस्थान, उत्तरप्रदेश, अरुणाचल, केरल जैसे कई राज्यों में कुछ-कुछ जगह लागू भी किया गया है।

आदित्य रंजन ने जिले में कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए अपनी तरफ से कहीं कोई कमी नहीं रखी है। स्वास्थ्यकर्मियों के लिए एक सैनेटाईजेशन रूम भी तैयार किया है जिसमें ये लोग पहले सैनेटाइज होते हैं फिर अस्पताल में जाते हैं। आइसोलेशन सेंटर में हर बेड को इन्होंने आइसोलेटेड किया है। हर बेड प्लास्टिक कवर से लेप है जिससे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के संपर्क में न आये।

  

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