न आवास-न राशन कार्ड, पुत्तनलाल की कहानी बताती है सरकारी योजनाओं का सच
Ranvijay Singh 24 Sep 2019 1:29 PM GMT
हरदोई (उत्तर प्रदेश)। एक खंडहर से मिट्टी के घर पर नीले रंग की तिरपाल पड़ी है। तिरपाल इसलिए पड़ी है क्योंकि घर पर छत नहीं है। कुछ मिनटों पहले हुई बारिश से घर की जमीन भीग गई है और यह कीचड़ में तब्दील हो गई है। यह घर जो कि घर जैसा दिखता नहीं, इसमें पुत्तनलाल अपने तीन बच्चों के साथ रहते हैं। हाल ही में उनके 7 साल के बेटे नैना को घर में ही सांप ने काट लिया था, जिसकी मौत हो गई थी।
गरीबी और बदनसीबी की यह कहानी हरदोई जिले के लालपालपुर गांव के रहने वाले रिक्शा चालक पुत्तनलाल की है। पुत्तन लाल को समाज के उस आखिरी व्यक्ति के तौर पर देखा जा सकता है, जिसके उत्थान के लिए तमाम सरकारी योजनाएं बनाई जाती है। लेकिन यह योजनाएं उन लोगों तक कितनी पहुंच पाती हैं इसकी पोल पुत्तन लाल की कहानी खोलती है।
पुत्तनलाल के शब्दों में- ''मैं सरकारी आवास के लिए तीन साल से प्रधान के चक्कर लगा रहा था, लेकिन मुझे आवास नहीं मिल सका। मजबूरी में मैं इसी टूटे घर में अपने चार बच्चों के साथ रहता था। मेरे पास चौकी नहीं है, न ही नीचे बिछा कर सो सकता हूं। तो पटरे से एक मचान बनाया था। इसी मचान पर मैं और मेरे बच्चे सो रहे थे कि एक रात को सांप ने उसे काट लिया। जबतक पता चला देर हो गई थी और अस्पताल पहुंचते-पहुंचते उसकी मौत हो गई। अब मेरे तीन बच्चे ही बचे हैं।''
पुत्तन लाल को न ही उज्जवला योजना का लाभ मिला है, न ही उनका राशन कार्ड बना था। पुत्तन बताते हैं, ''पांच साल पहले मेरी पत्नी की भी मौत हो गई। मैं रिक्शा चलाकर अपने बच्चों को पाल रहा था। मेरी हालत इतनी अच्छी नहीं कि घर बनवा सकूं या बच्चों को पढ़ने के लिए भेज सकूं। मुझसे जो हो रहा था मैं कर रहा था। लेकिन मेरी किस्मत इतनी खराब निकली कि अब बच्चे की भी मौत हो गई।''
पत्तन अपने बेटे के सिर पर हाथ रखकर सोचते हुए कहते हैं, ''मेरी तबीयत भी अब अच्छी नहीं रहती, हर दिन बीमार रहता हूं। यही फिक्र रहती है कि मेरे बाद इन बच्चों का क्या होगा।'' पुत्तन लाल के बेटे की मौत के बाद कई सामाजिक कार्यकर्ता और प्राशासनिक अधिकारी गांव पहुंच कर पुत्तन लाल से मिलकर गए हैं। इन्हीं में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उसके घर में कुछ जरूरत का सामान रख दिया है, जिसमें एक चौकी, गैस चुल्हा और अन्य कुछ सामान है।
लालपालपुर ग्राम पंचायत की प्रधान हैं सरिता सिंह। हालांकि प्रधानी का पूरा काम उनके देवर और भतीजे ही देखते हैं। ग्राम प्रधान के भतीजे सौरभ सिंह बताते हैं, पुत्तन लाल ने दो तीन बाद हमसे आवास के लिए कहा था। हमने लिस्ट में उसका नाम भेजा भी है, लेकिन जब ग्राम पंचायत को आवास मिला ही नहीं तो हम कहां से देंगे।'' सौरभ बताते हैं कि ''गांव में अब तक सिर्फ आठ आवास आए हैं, वो भी 2017 में, दो साल पहले।''
सौरभ कहते हैं, ''एक यह भी बात है कि पुत्तन लाल इस गांव का रहने वाले नहीं है। यह उसके पत्नी का गांव है। वो करीब सात साल से यहां रहा है। हमने आधार कार्ड बनवा दिया है, अभी वोटर आईडी के लिए भी नाम गया है। जहां तक बात राशन कार्ड की है तो इस घटना के बाद अंत्योदय कार्ड भी बन गया है। इससे पहले हमने कोटेदार को कह रखा था कि पुत्तन लाल को राशन दे दिया करो। वो अपने पास से ही राशन देता भी था।''
सौरभ कहते हैं कि ''सिस्टम बहुत ही धीमे काम कर रहा है, इसकी वजह से बहुत से लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा। बात सिर्फ पुत्तनलाल की नहीं है। हमने ग्राम पंचायत से 39 लोगों का नाम आवास के लिए भेजा था। इसमें से एक का भी आवास नहीं आया है। गांव में बहुत से लोग अभी भी कच्चे मकान में रह रहे हैं, जिनके साथ कभी भी हादसा हो सकता है।''
इस मामले पर जब हरदोई की मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) निधि गुप्ता वत्स से बात की गई तो उन्होंने कहा, ''यह मामला संज्ञान में है। आवास क्यों नहीं मिला इस बारे में मैं पता करती हूं।''
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