सफाई कर्मचारी दिवस : सीवेज सफाई में हर वर्ष हजारों मजदूरों की हो जाती है मौत

Basant KumarBasant Kumar   30 July 2017 10:01 PM GMT

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सफाई कर्मचारी दिवस : सीवेज सफाई में हर वर्ष हजारों मजदूरों की हो जाती है मौतबिना किसी व्यवस्था और सुरक्षा के नाला साफ़ करने उतरा मजदूर।       फ़ोटो - बसंत कुमार

लखनऊ। मुख्यमंत्री आवास से महज़ सौ मीटर की दूरी पर सुरेश कुमार (55 वर्ष) नाले की सफाई करने के लिए बिना किसी सुरक्षा उपकरण के नाले में उतरे। सुरेश नगर निगम के कर्मचारी भी नहीं हैं। महज़ कुछ पैसों के लिए वो नाले में उतरते हैं। मिर्गी जैसी बीमारी से पीड़ित सुरेश की पत्नी की नजर जब उन पर पड़ती है तो वे नाराज़ होकर उन्हें निकालती हैं। नगर निगम के कर्मचारी नाले की सफाई नहीं करते, जिसके कारण स्थानीय दुकानदार सुरेश से काम करा रहे थे।

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा अभियान केंद्र में चतुर्थ श्रेणी में काम करने वाले कर्मचारी सुरेश की पत्नी मालती देवी गुस्से में कहती हैं, "इनको मिर्गी है। कभी भी चक्कर खाकर गिर जाते हैं। नाले में अगर गिर जाते तो मिलते भी नहीं हमें। निगम के कर्मचारी सफाई तो करते नहीं है तो यहां के दुकानदारों ने पैसे की लालच देकर इनसें काम करवा रहे थे।" नियम अनुसार सीवेज की सफाई करते समय कर्मचारी के पास सूट, मास्क और गैस सिलेंडर होना चाहिए। इनका सूट स्पेसिफिक होता है जो गंदे पानी से कर्मचारियों की सुरक्षा करता है।

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पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली के घिटोरनी इलाके में सेप्टिक टैंक की सफाई करने उतरे चार सफाईकर्मियों की मौत हो गई थी। टैंक की सफाई के लिए उतरे कर्मचारी वहीं बेहोश हो गए, बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से निकाला गया। बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सफाई करने उतरे कर्मचारियों की मौत जहरीली गैस की वजह से हो गयी। देशभर में हर साल हजारों की संख्या में कर्मचारियों की मौत सुरक्षा उपकरण की कमी के कारण हो जाती है।

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देश में हर साल मर जाते है हजारों मजदूर

लखनऊ के ऐशबाग स्थित सुपर कॉलोनी में ज्यादातर परिवार सफाई का काम करते हैं। स्थानीय निवासी जीतेन्द्र कुमार बताते हैं, ‘‘हमें बिना किसी टोपी या जूते के नाले में उतार दिया जाता है। मेरे ही एक साथी की मौत पिछले साल हजरतगंज में नाले की सफाई के दौरान हो गयी थी। तब तो प्रशासन एक्टिव हुआ था, लेकिन फिर प्रशासन शांत है। हम बिना किसी सुरक्षा इंतजार के नाले की सफाई करने उतारना पड़ता है।"

सुरक्षा के इंतजार सभी कर्मचारियों को दिए गए है। हमारे यहां कर्मचारियों को आदत पड़ गयी बिना सुरक्षा इंतजार के जाने की तो वो सुरक्षायंत्र लगाते नहीं है। हम उनको बार-बार हिदायत देते है कि बिना सुरक्षा कवच के वो सीवर में ना उतरे। इससे उनकी जिंदगी को ही खतरा होगा।
जनरल मैनेजर एसके वर्मा, जलकल विभाग, लखनऊ

द हिन्दू अख़बार में छपे पत्रकार एस आनंद के लेख ‘देथस इन द ड्रेंस’ के अनुसार 2007 में सीवेज की सफाई करने वाले मजदूरों में हर साल करीब 22,327 (महिला व पुरुष) की मौत होती है। देश में रोज दो से तीन मजदूर की मौत मेनहोल की सफाई के दौरान होती है।

सफाई कर्मचारी आन्दोलन से जुड़े राज वाल्मीकि बताते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी हालत में किसी व्यक्ति को सीवर में न भेजा जाए। इसके लिए देश में मैनुअल स्कैंवेंजर एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 भी पास किया है। इस अधिनियम के तहत किसी भी सफाई कर्मचारी को किसी भी रूप में मैला साफ नहीं करवा सकता। ऐसा करने पर सज़ा हो सकती है।

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राज वाल्मीकि आगे बताते हैं कि हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 के अनुच्छेद 6 के अनुसार सीवर सफाई के लिए किसी भी प्रकार का ठेका अमान्य है। किसी भी व्यक्ति को किसी मज़बूरी में अगर नाले में उतारा जाता है तो उन्हें तमाम सुरक्षा उपकरण दिया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जो व्यक्ति काम कराएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। लेकिन हम ज़मीनी हकीकत देखे तो स्थिति बिल्कुल उलट है। हमने हाल ही में सौ दिन का डाटा एकत्र किया जिसमें देश बहर में 43 लोगों की मौत हुई हैं।

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सुरक्षा इंतजाम नहीं होने के कारण मर जाते है मजदूर

2014 लोकसभा चुनाव में मुज़फ्फनगर लोकसभा क्षेत्र से मजदूर किसान यूनियन के उम्मीदवार रहे मांगे राम कश्यप इस सम्बन्ध में कहते हैं, ‘नाले के अंदर सफाई के दौरान सुरक्षा यंत्र देना अनिवार्य है, लेकिन सरकार लापरवाही के कारण गरीब लोगों की असमय मौत हो जाती है। सरकार को अपने कर्मचारियों की रक्षा करनी चाहिए।

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जलकल विभाग, लखनऊ के जनरल मैनेजर एस के वर्मा बताते हैं, "सुरक्षा के इंतजार सभी कर्मचारियों को दिए गए है। हमारे यहां कर्मचारियों को आदत पड़ गयी बिना सुरक्षा इंतजार के जाने की तो वो सुरक्षायंत्र लगाते नहीं है। हम उनको बार-बार हिदायत देते है कि बिना सुरक्षा कवच के वो सीवर में ना उतरे। इससे उनकी जिंदगी को ही खतरा होगा।"

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