उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन: बरसों से वीरान पड़े पहाड़ों के गांव एक बार फिर हुए गुलज़ार

उत्तराखंड में Covid 19 के चलते हुए Lockdown के बाद रिवर्स पलायन करके 59360 लोग अपने घर-गाँव वापस लौटे हैं। बरसों वीरान पड़े गाँवों में एक बार फिर से रौनक लौट आयी है।

Divendra SinghDivendra Singh   3 July 2020 1:29 PM GMT

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उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन: बरसों से वीरान पड़े पहाड़ों के गांव एक बार फिर हुए गुलज़ार

दिल्ली के एक होटल में काम करने वाले ललित जीना कई साल बाद नैनीताल के बैरोली गाँव में अपने बंद पड़े घर में वापस लौटे हैं, ललित की तरह ही उत्तराखंड के गाँवों में कई सालों से बंद घरों के ताले खुल गए हैं।

उत्तराखंड के ज्यादातर जिलों पिछले कुछ वर्षों में रोजगार और बेहतर सुविधाओं की तलाश में लोगों का पलायन हुआ था, लेकिन पिछले चार महीने में लोग एक बार फिर अपने गाँव में लौट आए हैं।

बैरोली गाँव के ललित बताते हैं, "यहां गाँव में कोई काम नहीं था तो कई साल पहले दिल्ली चला गया, वहां पर एक होटल पर काम करने लगा था। लेकिन जब कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा तो होटल भी बंद हो गया, ये भी नहीं पता था कितने दिनों तक बंद रहेगा। इसलिए अपने गाँव लौट आए, ऐसे समय में गाँव ही काम आया। अब तो कोशिश है कि अगर सब कुछ ठीक हो गया तो यही पर कोई काम ढूंढ लूंगा।"

उत्तराखंड सरकार के ग्राम्य विकास और पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अल्मोड़ा- 9303, बागेश्वर- 1541, चमोली-3214, चंमावत-5707, नैनीताल- 4771, पौड़ी-12039, पिथौरागढ़-5035, रुद्रप्रयाग-4247, टिहरी-8782, उत्तरकाशी-4721 में लोग रिवर्स पलायन में वापस लौटे हैं। रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य में कुल 59360 लोग अपने घर-गाँव वापस लौटे हैं।

इतनी संख्या में लोग वापस आ रहे है, तो वो खाली तो बैठ नहीं सकते हैं, इनके लिए मनरेगा जैसी योजनाएं भी काफी मददगार साबित हुईं हैं। टिहरी-गढ़वाल जिले के जौनपुर ब्लॉक की थान ग्राम पंचायत में दो दर्जन से ज्यादा दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों से वापस लौटे हैं, यहां पिछले कुछ महीनों में मनरेगा का काम भी तेजी से हुआ है।

टिहरी-गढ़वाल जिले के जौनपुर ब्लॉक की थान ग्राम पंचायत में मनरेगा के तहत काम करते मजदूर

थान पंचायत के ग्राम प्रधान मनोज पंवार कहते हैं, "हमारे गाँव की जनसंख्या 571 के करीब है, जिनमें से ज्यादातर लोग लॉकडाउन के पहले तक दिल्ली जैसे बड़े शहरों में कोई न कोई काम करते थे, लेकिन मार्च के बाद से लोग वापस आना शुरू हुए। पिछले तीन महीनों में मनरेगा का काम भी हुआ है, जिससे वापस आए लोगों को रोजगार भी मिला है। आगे भी कोशिश रहेगी की लोगों को कोई न कोई काम मिलता रहे।"

मनोज आगे बताते हैं, "गाँव में जो काम बहुत दिनों से पड़ा हुआ था वो भी हो गया, लोग एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे हैं।"

जितनी संख्या में लोग वापस आए हैं, अगर उन्हें काम मिलता रहेगा तो वापस जाने की नौबत ही नहीं आएगी। उत्तराखंड में करीब 3.80 लाख श्रमिक मनरेगा में शामिल हुए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा संख्या टिहरी जिले की ही है, जहां पर करीब 73 हजार लोग मनरेगा से जुड़े हुए हैं।

पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा रिवर्स पलायन पौड़ी जिले में हुआ है (12039), इसके बाद अल्मोड़ा जिले में सबसे ज्यादा लोग 9303, लोग वापस लौटे हैं। इन्हीं जिलों में पलायन भी सबसे अधिक था, यहां पर सबसे ज्यादा गाँव खाली हुए थे।

टिहरी-गढ़वाल जिले के जौनपुर ब्लॉक की थान ग्राम पंचायत में मनरेगा के तहत बन गई सड़क

पौड़ी गढ़वाल जिले के रिखणीखाल ब्लॉक के जेठों गाँव के विकास देवरानी बताते हैं, "हमारे गाँव के कई लोग दिल्ली, नोएडा, गुड़गाँव जैसे बड़े शहरों में काम करते हैं, इनमें से कोई होटल व्यवसाय से जुड़ा हुआ है तो कोई ट्रैवल एजेंसी तो कोई फैक्ट्री में काम करता था, मार्च-अप्रैल में बहुत से लोग गाँव लौटे हैं। अगर इन्हें यहीं पर काम मिल जाए तो लोग बाहर ही क्यों जाएंगे।"

उत्तराखंड पलायन रिपोर्ट के अनुसार, 20-30 प्रतिशत लोग उत्तराखंड के विभिन्न शहरों, जैसे कि देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, रुद्रपुर, रामनगर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पौड़ी से गाँव लौटे हैं, जबकि 60-65 प्रतिशत लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाग, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से वापस आए हैं। दुबई, ओमान, चीन, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से वापस लौटे लोगों की संख्या तीन से पांच प्रतिशत है।

दिल्ली में होटल में शेफ का काम करने वाले नैनीताल के खरेदा गाँव वापस लौटे दिनेश चंद्र स्थिति सुधरने पर वापस लौटना चाहते हैं। वो कहते हैं, "वहां होटल में काम करता था, अब यहां दूसरा काम तो शुरू नहीं कर सकता, इतने साल से खाना बनाने का काम कर रहा था। अगर स्थिति सुधरती है मैं वापस चला जाऊंगा लेकिन परिवार को गाँव में ही रहने दूंगा।

वापस लौटे लोगों की उम्र 30 से 45 वर्ष के हैं, इनमें से तीस प्रतिशत लोग हैं जो अब यहीं रुकना चाहते हैं, बाकी बचे लोग स्थिति सुधरने पर वापस लौटना चाहते हैं।

जब लोग अपने गाँव वापस लौटे रहे हैं, ऐसे में पहले से गाँव में रह रहे लोग वापस लौटे लोगों की मदद के लिए भी आगे आ रहे हैं। उत्तरकाशी जिले के असी गंगा घाटी में अगोड़ा गाँव के ग्राम प्रधान भी लोगों की मदद के लिए आगे आए हैं। उनके गाँव में देश-विदेश से लोग यहां ट्रैकिंग के लिए आते हैं। इस बार यहां पर भी कोरोना की वजह से पर्यटक नहीं आए। लेकिन यहां पर भी देश के दूसरे गाँवों की तरह ही बाहर नौकरी कर रहे लोग वापस आए हैं।


देश के अलग-अलग राज्यों से लोग वापस तो आ गए, लेकिन उन्हें घर नहीं भेजा जा सकता था, क्योंकि उन्हें कुछ दिनों के क्वारंटाइन सेंटर पर रखना जरूरी होता है। लेकिन अब ग्राम प्रधान मुकेश पंवार के सामने समस्या आयी कि दो कमरे के सरकारी स्कूल में दस से ज्यादा लोगों को सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए क्वारंटाइन कैसे कर सकते हैं।

अगोड़ा में ज्यादातर लोगों का मुख्य रोजगार पर्यटकों को ट्रैकिंग पर ले जाना है। ग्राम प्रधान मुकेश भी लोगों को ट्रैकिंग पर ले जाते हैं, इसके लिए उन्होंने लाखों की कीमत का जरूरी सामान, जैसे टेंट, स्लीपिंग बैग वगैरह भी खरीद रखा है। उन्होंने सभी लोगों को इन्हीं टेंट में अलग-अलग सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए रखा था। आगे भी मुकेश वापस लौटे लोगों की मदद करना चाहते हैं। वो कहते हैं, "अब लोग गाँव में वापस आ गए हैं, सरकार और एक-दूसरे की मदद से हमें कुछ ऐसा करना है, जिससे लोगों को बाहर ही न जाना पड़े।"


     

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