लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पास, सभी संशोधन खारिज

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लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पास, सभी संशोधन खारिजफोटो साभार: इंटरनेट

नई दिल्ली (भाषा)। लोकसभा ने गुरुवार को एक बार में तीन तलाक को अवैध करार देने वाले मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 को मंजूरी दे दी, जिसमें इसे दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखते हुए तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

सियासत के चश्मे से नहीं, इंसानियत के चश्मे से देखते हैं

विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, “अगर गरीब और त्यक्ता मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में खड़ा होना अपराध है तो ये अपराध हम दस बार करेंगे। हम इसे वोट के तराजू में नहीं तोल रहे और सियासत के चश्मे से नहीं, इंसानियत के चश्मे से देखते हैं।“ प्रसाद ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “विपक्षी दल का पूरा स्वर भ्रम पैदा करता है, जहां वे समर्थन भी करते हैं और किंतु-परंतु भी करते हैं। वे एक तरफ विधेयक को हड़बड़ी में लाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ कहते हैं कि इसे पहले क्यों नहीं लाया गया।“

ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी

रविशंकर प्रसाद ने आगे कहा, “तीन तलाक का मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित था, इसलिए हम अपनी तरफ से कुछ नहीं कर सकते थे। जब उच्चतम न्यायालय ने इसे प्रथा को गैरकानूनी कह दिया तो हम विधेयक लेकर आए।“ मंत्री के जवाब के बाद सदन ने असादुद्दीन ओवैसी, एनके प्रेमचंद्रन, जॉइस जॉर्ज, बी. महताब, ए. संपत, अधीर रंजन चौधरी और सुष्मिता देव के संशोधनों को नकार दिया। सदन ने ध्वनिमत से मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 को मंजूरी दे दी।

इस तरह तीन तलाक अवैध और अमान्य

विधेयक को पारित कराने का विरोध करते हुए बीजद और एआईएमआईएम के ओवैसी ने सदन से वाकआउट किया। विधेयक की धारा 3 और 4 में प्रस्ताव किया गया है कि किसी व्यक्ति द्वारा उसकी पत्नी के लिये, शब्दों द्वारा, चाहे बोले गए हों या लिखित हों या इलेक्ट्रानिक रूप में हो या किसी अन्य रीति में हो... चाहे कोई भी हो, तलाक की उद्घोषणा अवैध एवं अमान्य होगी। जो कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को इस प्रकार से तलाक की उद्घोषणा करता है, उसे तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने से दंडित किया जायेगा।

आज बात करने की कोई वजह नहीं

रविशंकर प्रसाद ने मुसलमानों को डराने और जेल में डालने के लिए विधेयक लाने के ओवैसी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “यह आशंका बिल्कुल बेबुनियाद है और यह अपनी पत्नियों को भयभीत करने वाले पतियों के लिए है। इस विधेयक को समान नागरिक संहिता से जोड़ा जा रहा है, जबकि यह विषय विधि आयोग के सामने है और इस पर चर्चा चल रही है। इस पर आज बात करने की कोई वजह नहीं है।“

हमारे पर्सनल लॉ पर अतिक्रमण

इससे पहले सदन में प्रेमचंद्रन ने कहा, “इस विधेयक के साथ यह देश समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ रहा है।“ ओवैसी ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा, “सरकार इस विधेयक के साथ हमारे पर्सनल लॉ पर अतिक्रमण की ओर कदम उठा रही है।“ उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार निहित स्वार्थों के लिए विधेयक लाई है और चाहती है कि अधिक से अधिक मुस्लिम जेल में जाएं।

यह कानून ऐतिहासिक है

इससे पहले विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, “यह कानून ऐतिहासिक है और उच्चतम न्यायालय द्वारा तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानून घोषित किये जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए इस सदन द्वारा इस संबंध में विधेयक पारित करना जरुरी हो गया है।“ उन्होंने इस संबंध में कुछ सदस्यों की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा, “यह कानून किसी मजहब से जुड़ा नहीं, बल्कि नारी सम्मान से जुड़ा हुआ है।“

न्याय के बजाए अन्याय बढ़ाएगा विधेयक

इससे पहले विधेयक पेश किए जाने का एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, राजद के जयप्रकाश नारायण यादव ने विरोध किया और आईयूएमएल के सदस्य और अन्नाद्रमुक के ए. अनवर राजा ने भी विधेयक को गैरजरुरी बताते हुए कहा, “यह विवाहित मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय करने के बजाय उनके साथ अन्याय को बढ़ाएगा।“ बीजद के भर्तृहरि महताब ने विधेयक को पेश करने के तरीके पर सवाल खड़ा किया और कहा कि इसका मसौदा बनाने में खामियां हैं। कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खडगे ने विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की मांग की।

आज का दिन ऐतिहासिक दिन है

इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए कानून मंत्री प्रसाद ने कहा, “आज का दिन ऐतिहासिक दिन है जो इस सदन में मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए विधेयक पेश किया जा रहा है। यह कानून किसी पूजा, इबादत या मजहब से जुड़ा नहीं होगा, बल्कि नारी सम्मान और गरिमा के लिए है।“ मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि तलाक-ए-बिद्दत के कारण असहाय विवाहित मुस्लिम महिलाओं के लगातार उत्पीड़न का निवारण करने के लिये उन्हें जरुरी राहत प्रदान करने के वास्ते समुचित विधान की तुरंत आवश्यकता है। इसमें कहा गया है कि विधेयक में मुस्लिम पतियों द्वारा एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की उद्घोषणा को समाप्त करने एवं अवैध घोषित करने एवं इस अवैध कार्य को एक दंडनीय अपराध घोषित करने का प्रावधान किया गया है। यह इस प्रकार के विवाह विच्छेद का निवारण करने के लिये अनिवार्य है जिसमें पत्नी का वैवाहिक संबंध को समाप्त करने में कोई मत नहीं होता है।

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