विश्व की दस गिद्ध प्रजातियों में से तीन यूपी की गिद्ध प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा

Ashwani NigamAshwani Nigam   15 July 2017 5:39 PM GMT

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विश्व की दस गिद्ध प्रजातियों में से तीन यूपी की गिद्ध प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतराव्हाइट बैक्ड वल्चर (चील)

लखनऊ। संयुक्त राष्ट्र की हालिया जारी पर्यावरण संरक्षण रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में गिद्ध की जिन 10 प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है उसमें तीन भारतीय प्रजातियां है। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें, तो यहां पर पाई जाने वाली नौ प्रजातियों में से तीन प्रमुख प्रजातियां लांग बिल्ड वल्चर यानि सफेद चोंच वाले गिद्ध, व्हाइट बैक्ड वल्चर यानि सफेद चोंच वाले गिद्ध और राज गिद्ध विलुप्त होने की कगार पर हैं।

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लखनऊ विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान विभाग की प्रोफेसर और पिछले एक दशक से प्रदेश में गिद्धों के संरक्षण के लिए काम करने वाली प्रोफेसर डा. अमिता कन्नौजिया ने बताया '' प्रकृति के सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की संख्या उत्तर प्रदेश में लगातार घट रही है। साल 2012 में प्रदेश में गिद्धों की संख्या को लेकर गणना की गई थी जिसमें प्रदेश में 2070 गिद्ध पाए गए थे। अभी स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश में मात्र 1350 गिद्ध ही बचे हैं। यह आंकड़े उत्तर प्रदेश वन विभाग के हैं। ''

उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा इजिप्शन गिद्ध जिसको गोबर गिद्ध कहा जाता है पाए जाते हैं। प्रोफेसर डा. अमिता कनौजिया के अनुसार उत्तर प्रदेश में बूचड‍़खाने बंद होने से इन गिद्धों की संख्या में भी गिरावट आई है, क्योंकि इनको भोजन नहीं मिल पा रहा है। दो दशक पहले तक गावों और कस्बों में एक खास जगह हुआ करती थी जहां पर मरे हुए मवेशियों को रखा जाता था। वहां पर मवेशियों के मृत शरीर को भक्षण करते हुए गिद्ध दिख जाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं दिखता जिसका नतीजा है इन जगहों पर कई-कई दिनों तक मवेशियों की लाश पड़ी रहती है। जिससे दुर्गन्ध फैलता और वायुमंडल में प्रदूषण भी फैलता है। ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि प्रकृति के सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्ध विलुप्त होने की कगार पर है। हालांकि गिद्धों को बचाने के लिए पर्यावरणविद और राज्य सरकार काम कर रही है। गिद्धों की संख्या कम होने से सबसे ज्यादा नुकसान पर्यावरण पर पड़ रहा है। मरे हुए मवेशियों के अवेशष से फैलने वाली गंदगी से गांव और शहर हर जगह लोग परेशान हैं। उत्तर प्रदेश में गिद्धों को पर्याप्त भोजन मिल सके और उनका संरक्षण हो सके इसके लिए उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और ललितपुर जिले में वल्चर रेस्टोरेंट खोलने की घोषणा प्रदेश सरकार के वन विभाग की तरफ से साल 2012 में की गई थी। ललितपुर में वल्चर रेस्टोरेंट बनकर तैयार है लेकिन इसकी शुरूआत अभी नहीं हुई है, वहीं मिर्जापुर में अभी इसके लिए कोई काम ही नहीं हुआ है।

एक मरे हुए सांड़ को मात्र 30 मिनट में साफ कर देते हैं गिद्ध्

गिद्धों की पर्यावरण संतुलन और सफाई में बहुत बड़ी भूमिका है। खासकर ऐसे समय में जब मरे हुए मवेशियों को ठिकाने लगाने एक बहुत बड़ी समस्या है। मशूहर पक्षीविद डाक्टर सालिम अली ने अपनी पुस्तक इंडियन बर्ड्स में गिद्धों का वर्णन करते हुए इनको सफाई के लिए एक ऐसी कुदरती मशीन बताया है जिसकी जगह कभी मानव आविष्कार से बनी कृतिम मशीने नहीं ले सकती हैं। गिद्धों का एक दल एक मरे हुए सांड को केवल 30 मिनट में ही साफ कर सकता है। सिर्फ सफाई ही नहीं बल्कि गिद्धों की संख्या में तेजी से हो रही कमी पर्यावरण की खाद्य कड़ी के लिए भी खतरा है।

गिद्धों की संख्या कम होने से रेबीज का बढ़ा खतरा

गिद्धों का प्रकृति में अतुलनीय योगदान है। अगर गिद्ध हमारी प्रकृति का हिस्सा न हो तो हमारी धरती हड्डियों और सड़े मांस का ढेर हो जाती। गिद्ध प्रकृति का सफाईकर्मी होने के साथ ही समाज में कई प्रकार की सुविधा देते हैं। जिसमें सबसे बड़ा है मृत शरीर का भक्षण, गिद्ध हमे कई तरह की बीमारियों से बचाता है। गिद्धों की घटती संख्या से मृत शरीरों के निस्तारण की सबसे ज्यादा समस्या आ गई है। जिसके कारण आवारा कुत्तों और चूहों की संख्या बढ़ी है, ये मृत मवेशियों के मांस का भक्षण करते हैं जिनसे रेबीज रोग का खतरा फैलने की आशंका रहती है।

मनुष्य और और रासायिनक दवाएं हैं गिद्ध की घटती संख्या के जिम्मेदार

गिद्धों की संख्या कम हो रही है इसको लेकर सत्तर के दशक से लेकर अभी तक वैज्ञानिकों ने कई रिसर्च किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक एस.के. शर्मा के अनुसार पहले माना जाता था कि पशुओं के मृत शरीर में डीडीटी का अंश बढ़ेने के कारण यह गिद्धों के शरीर में पहुंच गया जिससे उनकी मौत हो जारी है लेकिन उसके बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि गिद्धों पर किसी वायरस का हमला हुआ है। जिस कारण वह सुस्त हो जाते हैं। गिद्ध अपने शरीर का तापमान कम करने कि लिए ऊंची उड़ान भरते हैं, ऊंचाई में वायुमंडल में ऊपर का तापमान कम होता है। वहां जाकर ठंढक प्राप्त करते हैं। वायरस के आक्रमण के कारण वह सुस्त हो गए और उड़ान नहीं भर पा रहे थे। जिससे बढ़ते तापमान के कारण उनके शरीर में पानी की कमी हो गई। इससे यूरिक एसिड के सफेद कण इनके हृदय, लीवर और किडनी में जम जाते हैं। जिससे उनकी मौत हो जाती है। रिसर्च में पता चला कि पशुओं में बुखार, सूजन और दर्द कम करने के लिए डायक्लोफेनेक दवाई दी जाती है। मृत पशु को गिद्ध जब खाते हैं तो उनके शरीर में यह दवा पहुंच जाती है। जिससे गिद्धों के किडनी में गाउट नामक रोग हो जाता है और गिद्धों की मृत्यु हो जाती है। इस रिसर्च के बाद 11 मई 2006 को सरकार ने इस दवा को बैन कर दिया। जिसमें इसका उत्पादन और बिक्री कोई नहीं कर सकता। इसके साथ ही पेड़ों की कटाई-छंटाई के कारण गिद्धों के घोंसले खत्म हो गए। साथ ही खनन में होने वाले धमाके कारण भी गिद्धों की संख्या कम हो गई।

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