125 साल पहले की वो घटना, जिसने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा बना दिया
Shefali Srivastava 2 Oct 2018 6:42 AM GMT
लखनऊ। ज्यादातर लोग अभी भी मानते हैं कि ब्रिटिश सरकार के नमक कानून के विरुद्ध दांडी यात्रा महात्मा गांधी का पहला सविनय अवज्ञा का पहला आंदोलन था लेकिन इसके 37 साल पहले कुछ ऐसा हुआ था जिसने भारत और अफ्रीका का इतिहास बदल दिया।
सात जून 1893 में गांधी जी- एक नौजवान अभ्यासरत वकील- को रंगभेद के चलते अफ्रीका में एक ट्रेन में यात्रा करने से मना कर उन्हें रेलगाड़ी से उतार दिया गया।
गांधी जी कुछ आधिकारिक काम के लिए फर्स्ट क्लास टिकट पर डरबन से प्रिटोरिया यात्रा कर रहे थे। जब वह फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में बैठे थे तो एक यूरोपियन व्यक्ति ने रेलवे अधिकारियों को बुलाकर कहा कि ये कुली की तरह दिखने वाले आदमी को कोच से हटाओ।
जब गांधीजी ने अपना टिकट दिखाते हुए उस कोच से उतरने से मना कर दिया तो रेलवे के लोगों ने उन्हें उनके सामान सहित पीटरमैरिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर जबर्दस्ती उतार दिया।
गांधी जी एक महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर वकालत के अभ्यास के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे लेकिन जब उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हुआ तो इस घटना ने उनके दिमाग में इस कदर घर कर लिया कि वापस न जाने का फैसला लिया और वहीं अश्वेतों के अधिकारों के लिए रुक गए।
माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ में गांधी जी ने लिखा, क्या मुझे अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए या भारत वापस जाना चाहिए या फिर मुझे अपमान पर ध्यान न देकर प्रिटोरिया जाना चाहिए और फिर केस खत्म कर भारत वापस चले जाना चाहिए? यह कायरता भरा कदम होगा अगर मैं अपने नैतिक कर्तव्यों को पूरा किए बिना भारत चला गया।
गांधी के नाम पर स्टेशन का नाम
वह दक्षिण अफ्रीका में ही रुके और गोरों के खिलाफ कई आंदोलन चलाए। उन्होंने अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ नताल इंडियन कॉन्ग्रेस की स्थापना की। जब उन्होंने 1914 में दक्षिण अफ्रीका छोड़ा तो पीटरमेरिट्सबर्ग ने उनके 142 वें जन्मदिन पर 2011 में उनके नाम पर स्टेशन को नाम दिया।
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