तानों के बावजूद आदिवासी महिलाओं ने किया मनरेगा में काम, पहली बार मिली ज्यादा मजदूरी

इन महिलाओं और मजदूरों को रोजगार गारंटी में काम दिलाने के लिए उजाला समूह सामने आया। कोरोना काल में समूह की महिलाओं को मिली सफलता के पीछे इनके संघर्ष की कहानी भी छिपी हुई है।

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तानों के बावजूद आदिवासी महिलाओं ने किया मनरेगा में काम, पहली बार मिली ज्यादा मजदूरीराजस्थान के डुंगरपुर जिले की खानन पंचायत में आदिवासी समाज की महिलाओं को मनरेगा में काम मिलने पर पहली बार मिली ज्यादा मजदूरी। फोटो : धर्मराज गुर्जर

धर्मराज गुर्जर

कोरोना काल में श्रमिक वर्ग सबसे ज्यादा परेशान हुआ। इस दौरान दक्षिणी राजस्थान से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक गुजरात और महाराष्ट्र से अपने घरों को आये। ऐसे में महिलाओं के ऊपर घर को भी चलाने की दोहरी जिम्मेदारी आ गई।

प्रवासी श्रमिकों का काम छिन गया और वो लगातार घर पर बिना काम के रहे तो इन पर भी आर्थिक दबाव बढ़ने लगा। कई प्रकार की हिंसाओं का सामना भी इस दौरान महिलाओं को करना पड़ा। कोरोना काल के समय में भी गांव स्तर पर मनरेगा यानी रोजगार गारन्टी ही एक ऐसा काम था जिसमें जाकर काम किया जा सकता है और कुछ आय घर में लाई जा सकती है।

इन सब समस्याओं के बीच एक महिला संगठन के काम ने ऐसी महिलाओं और मजदूरों के लिए उम्मीद की किरण जगाई। इस दौरान डुंगरपुर जिले की खानन पंचायत के श्रमिकों ने ऐसा उदाहरण पेश किया जिससे पूरी पंचायत और साबला ब्लॉक के सभी श्रमिकों को बड़ी राहत मिली। खानन पंचायत में सबसे अधिक आदिवासी समाज के लोग रहते हैं। ऐसे में मनरेगा में ऐसे मजदूरों को काम मुहैय्या कराया गया।

कोरोना काल में पूर्ण लॉकडाउन के बाद गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में अब तक का सबसे बड़ा सर्वे कराया। इसमें मनरेगा में ग्रामीणों को काम मिलने को लेकर भी कई आंकड़ें सामने आये। इस सर्वे में देश के 80 % ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें या उनके परिवार के किसी सदस्य को लॉकडाउन के दौरान एक भी दिन का काम मनरेगा में नहीं मिल सका। ऐसे में डुंगरपुर जिले की खानन पंचायत में आदिवासी समाज के लोगों को मनरेगा में काम मिल पाना अपने आप में अलग संघर्ष की कहानी है।

कोरोना काल में समूह की महिलाओं को मिली सफलता के पीछे इनके संघर्ष की कहानी भी छिपी हुई है। फोटो : धर्मराज गुर्जर

खानन ग्राम पंचायत में नपती यानी मजदूरों ने बाकायदा नाप-नाप कर गड्ढे खोदे और 205 रुपये प्रति दिन के हिसाब से भुगतान प्राप्त किया। इन परिवारों को पहली बार 200 रुपये से अधिक की मजदूरी मिली। यह सब संभव हो सका एक महिला संगठन की कोशिशों से।

इन महिलाओं और मजदूरों को रोजगार गारंटी में काम दिलाने के लिए उजाला समूह सामने आया। कोरोना काल में समूह की महिलाओं को मिली सफलता के पीछे इनके संघर्ष की कहानी भी छिपी हुई है।

पंचायत में रोजगार गारंटी के लिए आवेदन करने जाने पर सरपंच, सचिव और अन्य पदाधिकारियों से ताने सुनने को मिलते। अब तुम होशियार हो गई हो? पंचायत में महिलाओं का क्या काम, तुम क्यों आई हों? जिस समूह से इतना बोलना सीख गई हो वो तो कल बन्द हो जायेगा, ऐसे तानों से महिलाओं का उपहास उड़ाया जाता। फिर भी इन चुनौतियों से पार पाकर कर नरेगा में आवेदन करती हैं।

जनप्रतिनिधियों द्वारा लीडर महिला के घर में पुरुषों को बरगलाया जाता। तुम्हारी औरत होशियार हो गई। इसका तुम्हें ही नुकसान होगा, पंचायत का फायदा मिलना बन्द हो जायेगा। इन सब से समूह सदस्यों के घरों में झगड़े हुए। कई बार समूहों में सदस्यों का आना बन्द भी करवा दिया गया। अलग-अलग प्रकार से प्रताड़ित किया जाता। पंचायत में मिल रहे लाभ रोक दिये जाते और लीडर या समूह के सदस्यों का नाम काट दिया जाता।

रोजगार गारंटी योजना में मजदूरों को काम मस्टररोल के जरिये मिलता है। मस्टररोल जारी भी हो गया तो भी बरगलाया जाता कि विवाद वाली जगह पर काम देंगे। घर से बहुत दूर काम देंगे। ऐसा काम दिया जायेगा जो पूरा करना आसान नहीं होगा। काम पूरा नहीं कर पायेंगे तो मजदूरी कम आयेगी और फिर समूह का आत्मविश्वास कमजोर हो जायेगा।

पांच-पांच समूह में ग्रामीण मजदूरों ने किया मनरेगा में काम ।

आज भी रोजगार गारन्टी से जुड़े श्रमिकों को अपनी न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ता है। आये दिन अखबार मनरेगा में हुए फर्जीवाड़े की खबरों से भरे पड़े हैं। ऐसे में पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इस बार इस श्रमिक समूह उजाला ने अन्त तक संघर्ष किया और जीत हासिल की।

आजीविका ब्यूरो संस्थान द्वारा डुंगरपुर के साबला और आसपुर ब्लॉक की 15 पंचायतों में परिवार सशक्तिकरण कार्यक्रम के तहत महिलाओं को जागरूक करने का कार्य किया जा रहा है। हर पंचायत में 7 से 8 समूह बने हैं जिसे उजाला समूह के नाम से जानते हैं। उजाला समूह में महिलाओं के साथ में विभिन्न मुद्दों पर क्षमतावर्धन का कार्य किया जाता हैं। नरेगा, पीडीएस, सामाजिक सुरक्षा, हिंसा, पावर, जेण्डर और अन्य सरकार की योजनाओं और महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी दी जाती हैं।

नरेगा पर पिछले कुछ समय से उजाला समूहों के प्रयासों से काम के लिए आवेदन करना और रसीद प्राप्त करने की प्रक्रिया बखूबी महिलायें करने लगी हं् और काम भी समय से मिल जाता है। न्यूनतम मजदूरी की पूरी जानकारी लेने के बाद भी महिलाओं को पूरी मजदूरी प्राप्त करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पडता रहा है।

जैसे महिलाओं को कहा जाता है कि तुम पंचायत में क्यों आए, तुम्हारा काम नहीं हैं पंचायत में, तुमको काम मिल जाएगा। जब काम पर जाते तो वहा भी मेट के द्वारा फर्जी हाजरी भरी जाती हैं। हमेशा नरेगा में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सरकार की जो राय रही वो इस प्रकार से रही है कि श्रमिक काम को करना नहीं चाहते हैं और साइट पर बैठे रहते हैं।

इस प्रकार धारणा को तोड़ने का काम खानन पंचायत की महिला और पुरुष श्रमिकों ने मिलकर किया है। इस साइट को चलाने में इन श्रमिकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। ये श्रमिक काम करना चाह रहे थे पर उनको काम नहीं करने दिए जा रहा था।

काम के लिए आवेदन करने के बाद जब मस्टररोल जारी हुआ तो उसके तीन दिन तक लोगों को कोई सूचना नहीं मिली। जब चौथे दिन सूचना मिली तो श्रमिक कार्य स्थल पर पहुंचे मगर मेट को मस्टररोल नहीं मिला। मेट के द्वारा जब सरपंच को फोन कर के पूछा गया तो बताया गया कि मस्टररोल एलडीसी के पास हैं।


जब एलडीसी को फोन कर के पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मस्टररोल सरपंच के पास में हैं। सुबह 8 बजे से लेबर राह देख रहे थे कि कब मस्टररोल आए और काम पर लगे। उधर मेट सब से बात कर मस्टररोल मिल जाए तो काम करवाया जाए, उस राह में थे।

जब कुछ नहीं हुआ तो आजीविका ब्यूरो के कार्यकर्ता कल्पना ने भी फोन से सरपंच, सचिव और एलडीसी से बात की लेकिन नतीजा वही मिला, सब एक-दूसरे पर मस्टररोल होने की बात टाल रहे थे। जब मस्टररोल 11 बजे तक नहीं मिला तो बीडीओ से बात की गयी।

ब्लॉक विकास अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद भी दोपहर 1 बजे तक मस्टररोल का पता नहीं लग पा रहा था। सभी मेट और श्रमिक साईट से पंचायत में जाकर बैठ गये। तब जाकर दिन के 1.30 बजे मस्टररोल जारी होने के चौथे दिन हाथ में काम आया। कुछ श्रमिक साईट पर भी बैठ कर इन्तजार कर रही थीं।

जब मस्टररोल लेकर साइट पर पहुंचे तो सबको पढ़कर नाम सुनाये गये। उसमें 50 से ऊपर श्रमिक अपने नाम का इन्तजार कर रहे थे, लेकिन नाम आया सिर्फ 30 श्रमिकों का ही। जिन 20 श्रमिकों का नाम नहीं आया वे लोग उदास हो गए। उनको कार्यकर्ता द्वारा समझाया गया कि कोई बात नहीं, इस मस्टररोल में नाम नहीं है लेकिन हम फिर से आवेदन करेंगे तो आपका नाम आ जाएगा। इस आस के साथ में श्रमिक अपने घर को रवाना हो गए।

जिनके नाम मस्टररोल में आये उनमें कुछ बुजुर्ग लोगों के नाम भी थे। जिससे सब श्रमिकों ने मिलकर योजना बनाई कि इस कार्य को कैसे पुरा करना है। इसके बाद में सभी के साथ में बातचित की गयी अगर नरेगा में काम का पूरा पैसा चाहिए तो आपको नपती (नापतोल कर) से काम को करना पड़ेगा।

कोरोना के चलते सब को काम की जरूरत है। घर को चलाने के लिए पैसों की जरूरत सब को ही है। नपती से काम करने के लिए सब तैयार हो गये। मेट ने अपना काम चालू किया, सभी को नपती कर के 5 - 5 के ग्रुप में काम को दिया गया।


साइट पर एक महिला पानी पिलाने वाली व हाथ साबुन से धोने के लिए अलग रही। यहाँ बाकायदा बाल्टी व साबुन की व्यवस्था की गई। मेट के पास में नपती करने के लिए फीते की व्यवस्था की गई और सब को मास्क दिए गये। साइट पर दवाई के बॉक्स की व्यवस्था भी करवाई गई।

इसके बाद काम को लेकर श्रमिकों में जो उत्साह था वो देखकर ही बन रहा था। उसी प्रकार से सब ने मिल के तय काम किया कि हम सब नपती से काम को करेगें और पूरा पैसा लेंगे।

श्रमिक सुबह 7:30 बजे साइट पर पहुँच जाते। साइट पर जाने के बाद में मेट हाजरी भरते और फिर नपती से सब को 5 -5 के ग्रुप में काम को देते। सब अपने-अपने ग्रुप में काम पर लग जाते। सब को ये पता था कि काम को खत्म कर के अपने घर को जा सकते हैं। इसलिए सब को जल्दी रहती कि काम खत्म हो और घर कों जाए।

पहली बार सब को लगा कि हम अगर इस तरीके से काम को करेंगे तो हम घर का काम, खेती का काम व नरेगा का काम आसानी से कर पायेंगे। क्योंकि हर बार नरेगा के काम करते तो पूरा दिन हो जाता था। इसलिए सब को पूरा नपती से 5 के ग्रुप में काम करना अच्छा लगा। इस वजह से सब अपने-अपने ग्रुप में जल्दी से काम को करते और 3 से 4 घण्टे में काम को खत्म कर के 1 बजे तक घर को चले जाते थे।

इस नरेगा साईट के काम की चर्चा आस-पास में भी होने लगी। इनका काम दूर से ही दिखने लगा था। विकास अधिकारी ने भी साईट की विजिट की और सभी श्रमिकों की तारीफ की। इस प्रकार का काम उन्होंने पुरे ब्लॉक में नहीं देखा था। यह कार्य ग्रेवल सड़क निर्माण का था जिसमें पूरी नपती से काम करके पूरा पैसा लेना एक कठिन कार्य होता है।

फिर भी श्रमिकों ने लगन से काम किया और रोजाना अपने काम की नपती करवाई। जेटीए ने आकर जब काम की नपती की तब उन्हें भी इस कार्य को देखकर अच्छा लगा। 200 रुपये से ऊपर की मजदूरी मिलेगी ऐसी उम्मीद सबको थी।

काम खत्म होने के करीब सप्ताह भर बाद समूह की महिलाओं को 205 रुपये के हिसाब से मजदूरी मिली। ऐसा पूरे ब्लॉक में पहला अवसर था कि ग्रेवल सड़क के काम में 205 रुपये की मजदूरी मिली हो। इस समूह को पहली बार 200 रुपये से अधिक की रेट मिली है। इससे पहले औसतन 150 रुपये ही प्रतिदिन की मजदूरी रही।

ऐसे में 205 रुपये की रेट आने के बाद इन महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा। यह सन्देश आस-पास की पंचायतों में भी अब फैल रहा है और नपती से काम करने को अन्य समूह भी तैयार हो रहे हैं। आज इस समूह के सदस्य अन्य समूह के सदस्यों को भी प्रेरित कर रहे हैं और अपनी सफलता की कहानी सबको सुना रहे हैं।

(धर्मराज गुर्जर राजस्थान में आजीविका ब्यूरो संस्था से जुड़े हैं)

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