गांधी की राह पर चलकर हिंसा से बाहर निकलने का रास्ता खोजने निकलेंगे आदिवासी

माओवादी हिंसा से जूझ रहे मध्य भारत के आदिवासी 2 अक्टूबर को आंध्र के चट्टी गांव से चलेंगे। यह यात्रा 10 दिन चलेगी और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में आकर रुकेगी।

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गांधी की राह पर चलकर हिंसा से बाहर निकलने का रास्ता खोजने निकलेंगे आदिवासी

सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 20 वर्षों के दौरान मध्य भारत में 12,000 से भी ज्यादा लोग माओवादी हिंसा में मारे गए हैं। जहां एक और 2700 सरकारी सुरक्षा कर्मियों ने अपनी जान गंवाई है वहीं दूसरी ओर दोनों तरफ की हिंसा में मारे जाने वालों की संख्या 9,300 है जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं।

लम्बे समय से चलने वाली इस हिंसा में आदिवासी सबसे ज्यादा परेशान हुआ है। इस वजह से 150 आदिवासी और उनके साथी सभी पक्षों से शान्ति की मांग करने के लिए एक पदयात्रा पर निकलेंगे। यह पदयात्रा आंध्र, तेलंगाना, ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित चट्टी गांव से शुरू होकर छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में आकर रुकेगी। आदिवासी सांकेतिक रूप से उसी रास्ते पर चलेंगे जिस रास्ते से माओवादी 40 साल पहले आंध्र से दंडकारण्य जंगल के रास्ते बस्तर आए थे।

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यह पदयात्रा 2 अक्टूबर से शुरू होगी जो महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती की शुरुआत है। यात्री प्रतिदिन 15-20 किलोमीटर चलेंगे और गांव-गांव में जाकर शांति की अपील करेंगे। 12 अक्टूबर को ये यात्री बस्तर के जगदलपुर में आकर रुकेंगे और अगले दिन एक महासभा का आयोजन किया जाएगा।

इस पदयात्रा को निकालने का निर्णय जून 8-10 में टिलडा, छत्तीसगढ़ में आयोजित एक विकल्प संगम में लिए गया था। इस विकल्प में कई एनजीओ, कम्युनिटी लीडर्स और मानव अधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने हिस्सा लिया था। इसमें इस बात पर गंभीर चर्चा हुई थी कि मध्य भारत में किस तरह से शांति लाई जाए।

"अब तक 150 आदिवासी इस यात्रा में भाग लेने के लिए आगे आए हैं आगे और भी जुड़ेंगे। पदयात्रा के अंत में, 13 अक्टूबर को, जगदलपुर में एक मीटिंग बुलाई जाएगी जिसमें उन आदिवासी साथियों को भी बुलाया जायेगा जो इस पदयात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे। इस मीटिंग को 'बस्तर डायलॉग 1' का नाम दिया गया है। इसमें सभी से यात्रा के अनुभव के बारे में पूछा जायेगा और भविष्य के लिए रणनीति बनाई जाएगी। ऐसी उम्मीद है कि यात्रा की यह प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी," एनजीओ सीजीनेट के प्रमुख शुभ्रांशु चौधरी ने ये कहा।

भान साहू कई बरसों से आदिवासियों के साथ काम कर रही हैं और इस यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका निभा रही हैं। भान का कहना है, "छत्तीसगढ़ के बस्तर में अगर शांति आएगी तो वहां के आदिवासियों के जीवन जीने के तरीके में सुधार आएगा और आने वाली पीढ़ी को शांति वाले माहौल में रहने का मौका मिलेगा।"

रमेश कुंजुम (21) जो दंतेवाड़ा से हैं, उन्होंने अपने इलाके में होने वाली हिंसा को ध्यान में रख कर इस पदयात्रा में हिस्सा लेने का निर्णय लिया। रमेश कहते हैं, "अगर सभी पक्ष मिलकर इस समस्या का समाधान निकाल पाए तो वे दंतेवाड़ा में रहने वाले आदिवासी बिना किसी डर से अपनी खेती और मजदूरी कर सकते हैं।"

(स्वाति सुभेदार अहमदाबाद से हैं, कई बड़े मीडिया संस्थानों के साथ जुड़ी रही हैं, फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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