बत्तख को लेकर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री का मजाक उड़ाने वालों, वैज्ञानिकों के तर्क भी सुन लो
तालाब में बत्तख के तैरने से जहां ऑक्सीजन का स्तर सही रहता है वहीं बत्तख का मल सीधे तालाब में जाकर समान रूप से उर्वरक बनाता है जिसमें आवश्यक पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा होती है।
Diti Bajpai 29 Aug 2018 12:44 PM GMT
लखनऊ। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देब का एक और बयान सुर्खियों में है। इस बयान को लेकर सोशल मीडिया में उनका मजाक तक उडाया जा रहा है। लेकिन उनकी बातों को हवा में उड़ाने से पहले वैज्ञानिकों के तर्क पढ़ लीजिए। वैज्ञानिकों के मुताबिक बिप्लव देव की बातों का वैज्ञानिक आधार है। त्रिपुरा में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि जलाशयों में बत्तखों के तैरने से पानी में ऑक्सीजन का स्तर अपने आप बढ़ जाता है।
#WATCH 'Aaj maine ghoshna ki hai 50,000 desi hans (ducks) aas pass ke logon ko de diye https://t.co/JnlsyO3SZd jalasai(Neermahal Lake) mein jab 50,000 safed ducks ghumegi toh kitna sundar lagegi aur use oxygen bhi recycle hoti hai' says Tripura CM Biplab Deb (27.8.18) pic.twitter.com/1pLzb5dsHi
— ANI (@ANI) August 28, 2018
मुख्यमंत्री बिप्लव देब झील के आसपास रहने वाले मछुआरों को बत्तख बांटने की योजना बना रहे हैं। त्रिपुरा की कृत्रिम झील रुद्र सागर में नौका दौड़ के आयोजन में उन्होंने कहा कि, "नीरमहल के आसपास बनी कृत्रिम झील रुद्र सागर के किनारे रहने वाले मछुआरों को 50 हजार बत्तखों के बच्चे बाटंगे। जब बतख पानी में तैरती हैं तो जलाशय में ऑक्सीजन का स्तर अपने आप बढ़ जाता है। इससे ऑक्सीजन रिसाइकिल होता है। पानी में रहने वाली मछलियों को ज्यादा ऑक्सीजन मिलता है। इस तरह मछलियां तेजी से बढ़ती हैं और ऑर्गनिक तरीके से मत्स्यपालन को बढ़ावा मिलता है।"
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गांव कनेक्शन ने त्रिपुरा के सीएम के दावे को लेकर मछली और पशुपालन से जुड़े कई वैज्ञानिकों से बात की। उत्तर प्रदेश में बरेली के आईवीआरआई-केवीके के प्रधान वैज्ञानिक डॉ बी़पी सिह ने बताया, "मछलियों को ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए कई बार मछलीपालक तालाब के पानी को हिलाते हैं। इसके लिए मजदूर तक लगाए जाते हैं। इसलिए हम किसानों को सलाह देते हैं कि मत्स्य पालन के साथ बत्तख पालन करें, क्योंकि बत्तख के पानी में तैरने से ऑक्सीजन का स्तर बना रहता है अौर मछलियों को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है, जिससे उनकी बढ़वार अच्छी होती है। इसके साथ ही लेबर कास्ट भी बचती है।"
तालाब में बत्तख के तैरने से जहां ऑक्सीजन का स्तर सही रहता है वहीं बत्तख का मल सीधे तालाब में जाकर समान रूप से उर्वरक बनाता है जिसमें आवश्यक पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा होती है और मछलियों का विकास भी अच्छा रहता है। "तालाब में कुछ पैरासाइड होते हैं, जिनसे मछलियों को नुकसान होता है। बत्तख के रहने से वो उसे खा जाते हैं। साथ ही इनकी जो बीट होती है वो मछलियों के लिए एक बेहतर आहार है। बत्तखों को 25 से 30 प्रतिशत आहार तालाब से ही मिल जाता है। इसलिए मछली पालन के साथ बत्तख पालन करने से फायदा होता है।" सीतापुर जिले के केवीके कटिया के पशु वैज्ञानिक डाँ आनंद सिंह।
एकीकृत कृषि प्रणाली (इंटीग्रेटेड फार्मिंग) में भी मछलियों के साथ बतख पालन पर जोर दिया जाता है।
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