स्वर्ग के खतरे: मानव और वन्यजीवों के मुठभेड़ का रणक्षेत्र बना कश्मीर

जम्मू-कश्मीर के वन्यजीव विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2006 से 2019 के बीच घाटी में मानव-वन्यजीव मुठभेड़ में लगभग 3,390 लोग घायल हुए, जबकि 229 लोग मारे गए।

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
स्वर्ग के खतरे: मानव और वन्यजीवों के मुठभेड़ का रणक्षेत्र बना कश्मीरजम्मू-कश्मिर के शोपियां स्थित हिरपोरा वन्यजीव अभ्यारण्य में भालू।

इश्तियाक वानी/राशिद हसन

श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर)। बीते 9 सितंबर को 35 वर्षीय फारूक अहमद गोज्जर जब अपने दैनिक कामों में मशगूल थे तब एक हिमालयी भालू ने उन पर अचानक हमला बोल दिया। जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर से 40 किलोमीटर दूर बांदीपोरा ज़िले में पहाड़ों और शंकुधारी वनों से घिरे अजस इलाके में घात लगाकर भालू द्वारा किए गए हमले में फारूक गंभीर रूप से घायल हो गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल के दिनों में इस इलाके में मानव और वन्यजीवों में मुठभेड़ के मामलों में काफी तेजी आई है।

लगभग 100 किलोमीटर दूर, बडगाम जिले के खग में दो महीने पहले एक दूसरे ग्रामीण ग़ुलाम क़ादिर शेख पर भी भालू ने हमला किया था। क़ादिर अपनी जान बचाने में तो सफल हुए, लेकिन इस दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके ठीक चार दिन बाद, गांदरबल जिले में भी एक ऐसा ही वाकया सामने आया, जब 38 वर्षीय अब्दुल राशिद को अपने घर के सामने भालू से सामना हुआ। और फिर एक हफ्ते बाद ही जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में भालू ने एक चरवाहे को मार डाला।

ये बस कुछ मामले हैं जिसे रिपोर्ट किया गया है, जो दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर के कश्मीर इलाके में मानव और वन्यजीवों में संघर्ष की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है; जिसका विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं।

कश्मीर विश्वविद्यालय के ज़ूलॉजी विभाग में वन्यजीवों पर शोध का कार्य कर रहे अक़लीम-उल-इस्लाम गांव कनेक्शन से कहते हैं, "खेती और निर्माण कार्य वन-भूमि को निगलते जा रहे हैं जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ा है। जंगली जानवर जैसे-भालू और तेंदुए, भोजन की तलाश में भटकते हुए मानव बस्तियों में चले आते हैं जिससे संघर्ष होता है।"

वन्यजीव अधिकारियों ने इस साल सर्दियों में पिनजुरा शोपियां में एक भालू को पकड़ा।

शोपियां जिले में वन्यजीव संरक्षक इंतिसर सुहेल गांव कनेक्शन से कहते हैं, "गर्मियों में घने पत्ते वाले पर्णसमूह बाग जंगली जानवरों खासकर काले भालू के छिपने के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में, आस-पास के क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समूदायों द्वारा मक्का की खेती के जगह बागवानी में दिलचस्पी बढ़ी है, जो भालुओं को अधिक लूभा रहा है।"

जगह को लेकर संघर्ष

जम्मू-कश्मीर के वन्यजीव विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2006 से 2019 के बीच घाटी में मानव-वन्यजीव मुठभेड़ में लगभग 3,390 लोग घायल हुए, जबकि 229 लोग मारे गए; ठंड के महीनों में इस प्रकार की घटनाएं ज्यादा हुई हैं। इसका मतलब है कि प्रत्येक साल कम से कम 17 लोगों की मौत हो गई और अन्य 261 लोग मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण घायल हो गए।

इस बीच, 2008 से 2018 के बीच दस सालों में अकेले शोपियां और पुलवामा जिलों में 144 जानवर हताहत हुए। सड़कों का निर्माण, ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना और खेती के तहत भूमि में वृद्धि ने जंगली जानवरों के आवास पर अतिक्रमण किया है जो उन्हें मानव बस्तियों में भटकने के लिए मजबूर करता है।

हमलो ने परिवारों को आतंकित किया है और उनके आजीविका को नुकसान पहुंचाया है।

यह भी पढ़ें- एक शिक्षक का सपना : 'जब आस-पास कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, तब मेरा विद्यालय ऑक्सीजन चैम्बर बनेगा'

तीन महीने पहले, जब अब्दुल रशीद एक सुबह अपने काम से बाहर जा रहे थे तो भालू ने उन पर हमला कर दिया; हमले में उनके चेहरे और सिर पर चोटें आई थीं। जब से यह हमला हुआ है मजदूरी करने वाले अब्दुल बाहर जाने में असमर्थ हैं। वे अपनी अंधी बूढ़ी मां को लेकर चिंतित रहते हैं, जिनकी वे देखभाल करते हैं। वे बताते हैं कि वह इन महीनों में अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनमें बहुत कुछ सुधार नहीं हुआ है, और वह अब भी बीमार हैं।

75 वर्षीय बशीर मलिक शोपियां जिले के सेदोव में रहते हैं, जो दक्षिणी कश्मीर में दक्षिणी वन्यजीव प्रभाग के अंतर्गत आता है। 2018 में बशीर को अपने घर के सामने ही भालू से सामना होता है। पड़ोसियों द्वारा बचाए जाने के बाद उन्हें लगभग 45 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। दर्दनाक प्रकरण को याद करते हुए वे गांव कनेक्शन से कहते हैं कि, "मानव-वन्यजीव मुठभेड़ में तेज़ वृद्धी हुई है।"

बशीर उन लोगों में हैं, जिनका नाम दक्षिणी कश्मीर वन्यजीव प्रभाग में 2008 से 2018 के बीच घायल हुए 1,108 व्यक्तियों की सूची में दर्ज है। वे गांव कनेक्शन से कहते हैं, "मक्के की फसल के बीच जानवर छिपा हुआ था। मैंने यह तब तक नहीं देखा जब तक उसने मुझ पर हमला नहीं कर दिया।" जम्मू-कश्मीर वन्यजीव विभाग ने दक्षिणी कश्मीर वन्यजीव प्रभाग में 60 लोगों की मारे जाने की पुष्टि की है।

प्राचीन मुग़ल सड़क का एक खंड सेदोव के तरफ कुछ किलोमीटर दूर आगे बढ़ाया गया है, जैसा कि दावा किया गया था इसके लिए सैकड़ों देवदार के पेड़ काट दिए गए। गांव हिरपोरा वन्यजीव अभ्यारण्य से कुछ किलोमीटर पर की दूरी पर स्थित हैं। इस क्षेत्र में बढ़ते निर्माण गतिविधि ने क्षेत्र के नाज़ुक पारिस्थितिकी को परेशान कर दिया है। भूस्खलन और मानव-वन्यजीव मुठभेड़ में वृद्धि हुई है।

बशीर उनलोगों में हैं, जिनका नाम दक्षिणी कश्मीर वन्यजीव प्रभाग में 2008 से 2018 के बीच घायल हुए 1,108 व्यक्तियों की सूची में दर्ज है।

बागवानी भी मुठभेड़ का एक कारण

वाइल्ड लाइफ एसओएस से जुड़ी श्रीनगर की आलिया मीर गांव कनेक्शन से कहती हैं, "वन क्षेत्र की कमी और आस-पास के क्षेत्रों में मक्का, सेब और अन्य फलों की बढ़ती खेती ने हिमालयी भालुओं के खाद्य आदतों को बदल दिया है। फलों के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा है।"

इस्लाम के अनुसार, सिमटते जंगल के कारण काले भालू और तेंदुए अब मानव बस्तियों के पास ज्यादा देखे जाते हैं, जिससे जानवर अधिक संख्या में मारे जा रहे हैं। ग्रामीणों की भी शिकायत है कि जंगली जानवर फल के पेड़ों और सर्दी के मौसम में फलों को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

अनंतनाग स्थित वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के Markhor Conservation Project के प्रोजेक्ट हेड रियाज़ अहमद कहते हैं, "जैव विविधता हॉटस्पॉट से छेड़छाड़ और उसका ध्वंस ने इलाके के अल्पाइन प्राकृतिक निवासों को प्रभावित किया है।"

अहमद गांव कनेक्शन से आगे कहते हैं, "सड़क के कारण चरागाहों को नुकसान उठाना पड़ा है, जिससे प्रवासी ख़ानाबदोशों के पशुधन पर दबाव बढ़ा है। साथ ही फसल कटाई के मौसम में सड़क पर फलों से लदे सैकड़ों ट्रक अनियंत्रित ढंग से चलते हैं, जो पारिस्थितिकी पर अतिरिक्त बोझ डालते हैं।"

यह भी पढ़ें- संवाद: कृत्रिम जंगलों के निर्माण में कैसे पिलाएं पेड़ों को पानी, कैसे करें वाटर मैनेजमेंट?

पावर ट्रांसमिशन लाइन ने प्राकृतिक आवासों को और अधिक विखंडित और ख़राब कर दिया है। अहमद के मुताबिक, निर्माण कंपनी ने मजदूर और कंस्ट्रक्शन मटीरियल को आने और ले जाने के लिए मौजूदा रास्ते का इस्तेमाल करने के बजाय लिंक रोड बनाने के लिए अवैध रूप से बुल्डोज़र का इस्तेमाल किया।

अहमद आगे कहते हैं, "इससे मनुष्यों और जंगली जानवरों के बीच जगह और भोजन के लिए संघर्ष शुरू हो गया है। हाल के वर्षों में, वन क्षेत्रों के साथ स्थानीय निवासियों ने अपने घरेलू जानवरों के लिए चरागाहों की तलाश में वन भूमि पर अतिक्रमण किया है या कृषि गतिविधियों को बढ़ाया है।"

पुलवामा जिले के बुचू त्राल में तेंदुआ पकड़ा गया

जंगलों में पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाने के कारण जानवर बाहर निकलते हैं और स्थानीय लोगों के हमले के शिकार हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर, इस साल अप्रैल के पहले हफ्ते में, कुलगाम जिले के दमहाल हांजीपोरा में कुछ निवासियों द्वारा एक तेंदुए की खाल खींचे जाने की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई। जानवर ने कई लोगों को घायल कर दिया था जिससे निवासियों का गुस्सा उस पर फूट पड़ा। वन्यजीव अधिकारियों द्वारा इसे हटाकर जंगलों में छोड़ने से पहले ही जंगली बिल्ली को मार दिया गया था। मीर बताते हैं कि "कई बार यह सोशल मीडिया पर अपनी 'वीरता' दिखाने वाले लोगों का भी मामला होता है,"

मुआवज़े का संकट

2006 में, तत्कालीन राज्य सरकार ने मानव-पशु मुठभेड़ों में मारे गए या घायल लोगों को मुआवजा देने के लिए एक योजना की घोषणा की थी। इससे मामलों की उचित रिपोर्टिंग और दस्तावेजीकरण को बढ़ावा मिला। इस योजना के तहत, मुठभेड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को तीन लाख रुपये और घायलों को एक लाख रुपये मिलते हैं। 2006 से, क्षति पूर्ति योजना के तहत, सरकार ने 203 मामलों का निपटारा किया है, जिसमें मृतक के परिजनों को लगभग 2.85 करोड़ रुपये और घायलों को 5.06 करोड़ रुपये दिए गए।

लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगता है, और कभी-कभी पीड़ितों तक मुआवज़े के लिए महीनों लग जाते हैं। शोपियां जिले में 2018 में एक भालू द्वारा घायल हुए बशीर को एक साल बाद मुआवजा मिला। वो भी अपने चिकित्सा दस्तावेज़ों और प्राप्तियों के साथ वन्यजीव कार्यालय में बार-बार चक्कर लगाना पड़ा था।

इस बीच, रशीद, जो इस साल की शुरुआत में गांदरबल जिले में अपने गांव में घायल हो गया था, अभी भी मुआवज़े का इंतजार कर रहा है। राशिद ने कहा कि उनके पड़ोसियों ने उनकी मदद की थी, "मैंने अब तक अपने इलाज के लिए लगभग 90,000 रुपये खर्च किए हैं। मुझे सरकार से कुछ नहीं मिला है।"

अरू त्राल में इस साल अगस्त में जाल बिछाते वन्यजीव अधिकारी।

2006 की क्षतिपूर्ति योजना की सबसे बड़ी कमी है कि वो पशुधन के नुकसान को अपने शर्तों के अंदर नहीं लेता। उदाहरण के लिए, पिछले मार्च में शोपियां जिले के चक मस्जिद रेशनगरी के निवासी बशीर अहमद के 40 भेड़ों के झुंड पर एक तेंदुआ हमला कर देता है, जिसमें उन्हें 6 लाख रुपए का सीधा नुकसान पहुंचता है।

मलिक गांव कनेक्शन को कहते हैं, "एक रात में मेरे जीवन की सारी बचत पूंजी खत्म हो गई।" वे बताते हैं कि शुरुआत में अधिकारियों ने मुआवज़े का वादा किया था, लेकिन बाद में उन्हें बताया गया कि पशुधन के नुकसान का कोई मुआवज़ा नहीं मिलता है। वे बहुत दुखी हुए।

घाटी के जंगलों में राजनीतिक उथल-पुथल का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है। जंगल का चरमपंथियों ने अपना ठिकाना बनाया है तो कई सुरक्षा बल के शिविर भी यहां स्थापित हुए हैं। इन शिविरों से निकलने वाले कचरों ने जंगली जानवरों को आकर्षित किया है।

दिलचस्प है कि विशेषज्ञों का दावा है कि कश्मीर क्षेत्र में वन क्षेत्रों में वृद्धि हुई है, जिससे मानव-वन्यजीव मुठभेड़ों की अधिक घटनाएं होती हैं। आधिकारिक रिकॉर्ड केंद्र शासित प्रदेश के वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाते हैं। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया की स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश का 56 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र वनों के अंतर्गत है। फॉरेस्ट रिपोर्ट 2015 की तुलना में 253 वर्ग किलोमीटर जंगल में वृद्धि हुई है। 2017 की रिपोर्ट में इस वृद्धि को "वृक्षारोपण और संरक्षण गतिविधियों के साथ-साथ हाल ही के उपग्रह डेटा के बेहतर रेडियोमेट्रिक रिज़ॉल्यूशन के कारण व्याख्या में सुधार के रूप में दिखाया गया है।"

अनुवाद: दीपक कुमार

इस खबर मूल रूप से अंग्रेजी में आप यहां पढ़ सकते हैं

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.