कच्ची शराब की सच्ची कहानी...जानिए कैसी बनती है जहरीली शराब?

देश की बड़ी आबादी कच्ची शराब (अवैध) पीती है लेकिन, जो कई बार जानलेवा भी साबित होती है, आखिर ऐसा क्या मिलाया जाता है कि ये शराब जिंदगी छीन लेती है...

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कच्ची शराब की सच्ची कहानी...जानिए कैसी बनती है जहरीली शराब?

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, सहारनपुर और उत्तराखंड के हरिद्वार में जहरीली शराब से एक हफ्ते में 150 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में ज्यादातार दिहाड़ी मजदूर और ग्रामीण हैं। इनमें से ज्यादातर लोग लगभग रोज शराब पीते थे, ऐसे में आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ कि शराब उनके लिए जानलेवा साबित हुई।

इन तीन इलाकों से पहले यूपी के आजमगढ़ और करीब तीन साल पहले लखनऊ के मलिहाबाद इलाके में ६५ लोगों की मौत हुई थी। ये वो शराब थी जो घरों और जंगलों में बनाई जाती है। गुड़, शीरे आदि से मिलाकर बनाई जाने वाली इस शराब में ज्यादा नशे के लिए जो दूसरे तत्व मिलाए जाते हैं वो ही जानलेवा साबित होते हैं।

ऐसे बनती है कच्ची शराब

पिछले कई वर्ष से कच्ची शराब बनाने वालों ने नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि एक लीटर शराब को बनाने में सड़ा-गला गुड़, शीरा, नौसादर, यूरिया, धतूरे के बीज, आक्सीटोसिन इंजेक्शन और यीस्ट को आपस मे मिलाया जाता है। शराब के कारोबारियों ने भी कहा कि जब ग्राहक नशा कम होने की बात करते हैं तब मिश्रण में कुछ तत्वों जैसे नौसादर, धतूरे के बीज और आक्सीटोसिन (वो इंजेक्शन जो गाय-भैंस का दूध उतारने के लिए दिया जाता है) की मात्रा बढ़ा दी जाती है। एक शराब बनाने वाले ने मौत की वजह पूछने पर बताया, "जब तक ये तत्व एक निश्चित मात्रा में रहते हैं नशा बढ़ता है लेकिन कई बार कोई तत्व ज्यादा हो जाता है, तो शराब जहरीली हो जाती है। इसके सेवन से जान जाती है।" इस विक्रेता ने ये भी बताया कि कई बार कुछ लोग ज्यादा पैसा कमाने के लिए भी नशा ज्यादा करना चाहते हैं जो जानलेवा साबित होता है।"

यूपी के फैजाबाद में सरयू नदी के किनारे पिछले वर्ष भारी पैमाने पर पुलिस ने पकड़ा था लाहन, और बरामद की थी सैकड़ों लीटर कच्ची शराब। फाइल फोटो



ऑक्सिटोसिन जैसे कैमिकल मिलाने की वजह से शराब में मिथाइल एल्कोहल की मात्रा आ जाती है। मिथाइल एल्कोहल शरीर में जाते ही शरीर के अन्य रसायनों से मिलकर रिएक्शन करने लगता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से आदमी की कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कई बार यह स्लो पॉइजन की तरह भी काम करता है, डॉ. सारिक खान, भूतपूर्व चिकित्सक

डॉक्टरों की क्या है राय?

डॉ राम मनोहर लोहिया मेडिकल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, लखनऊ के भूतपूर्व चिकित्सक डॉ. सारिक खान कहते हैं कि कच्ची शराब में धतूरा, थिनर, आक्सीटोसिन, यीस्ट, यूरिया आदि मिलाया जाता है। कच्चे शराब के कारोबारी इसकी किसी निर्धारित मात्रा का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

डा. सारिक बताते हैं कि ऑक्सिटोसिन जैसे कैमिकल मिलाने की वजह से शराब में मिथाइल एल्कोहल की मात्रा आ जाती है। मिथाइल एल्कोहल शरीर में जाते ही शरीर के अन्य रसायनों से मिलकर रिएक्शन करने लगता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से आदमी की कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कई बार यह स्लो पॉइजन की तरह भी काम करता है।

आजमगढ़,लखनऊ,आगरा,ऐटा, फतेहपुर सीकरी में भी जा चुकी है जानें

कठिना के कछार से लेकर गंगा पार तक फैले इस जहरीले शराब के कारोबार में इसके पहले भी कई जाने जा चुकी हैं। इन मौतों से प्रदेशभर में खलबली मचती है। आबकारी विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर गाज गिराया जाता है। पुलिस अभियान चलाकर अवैध शराब बेचने वालों को गिरफ्तार भी करती है। लेकिन कुछ समय तक सख्त रहने के बाद जब शासन-प्रशासन ढीला पड़ता है, तो गांवों में अवैध शराब की बिक्री फिर बढ़ जाती है।

यूपी से लेकर उत्तराखंड तक करीब ड़ेढ सौ घर के चिरागों को बुझा चुकी कच्ची शराब का कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार ने निर्देशों के बाद पुलिस और आबकारी विभाग ने हादसे के बाद रोजाना कई जिलों में सैकड़ों लीटर शराब बरामद की है। दर्जनों लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसे आरोपी कुछ दिन की जेल के बाद छूट जाते हैं।

कच्ची शराब का यह कारोबार सीतापुर, हरदोई, लखीमपुर, उन्नाव, फर्रूखाबाद, कन्नौज और कानपुर में नदियों के किनारे फैला हुआ है। गन्ने के खेतों में यह कारोबार बहुत ही आसानी से फलता फूलता रहा है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि यहां पर पुलिस और आबकारी विभाग आसानी से नहीं पहुच सकता है।

इन शराब की फैक्ट्रियों का रास्ता इतना खराब और दुर्गम होता है कि वहां तक बहुत ही कठिनाई से ही पहुंचा जा सकता है। बीहड़ और तराई क्षेत्र कच्ची शराब बनाने के लिए पारस साबित हो रहे हैं। कच्ची शराब पीने वाले लोग जान की परवाह किए बगैर इसे घूंट दर घूंट गले से नीचे उतारते रहते हैं।

कच्ची शराब की अनुमानित लागत





शीरा ₹15 प्रति लीटर, धतूरे का बीज ₹100 किलो, आक्सीटोसिन इजेक्शन ₹10 और लकड़ी ₹300 प्रति कुंतल आती है। इससे करीब 20 लीटर जहरीली शराब तैयार होती हैं,जो ₹80 रुपये से लेकर ₹100 प्रति लीटर के हिसाब से बिक्री की जाती है। पीने वालों के मुताबिक कच्ची शराब की तुलना में पक्की शराब में पैसा ज़्यादा खर्च करना पड़ता है और उसमें नशा कच्ची के मुकाबले कम होता है। ये शराब ज्यादातर ग्रामीण और मजदूर पीते हैं। कच्ची शराब का एक पैव्वा करीब २० रुपए में मिलता है।

सीतापुर के स्कूलों में पकड़ी गई थी कच्ची शराब

राजधानी लखनऊ से सटा हुआ जिला सीतापुर भी कच्ची शराब से अछूता नहीं रहा है। यहां के कचुरा, भुडिया, बरगावा, देवरिया, बांसी,फखरपुर, बीहट गौड़, रामकोट, आर्थना, गड़ासा, बढ़ेया और कैथागाजीपुर जैसे गांवों में खुलेआम शराब की बिक्री हो रही है।

20 अक्टूबर 2018 को सीतापुर के खैराबाद थाना क्षेत्र में स्थित नेपाल सिंह महिला महाविद्यालय से भारी मात्रा में नकली शराब के रैपर, शराब की बोतलें और भारी मात्रा में अल्कोहल पकड़ी गई थी।

इससे पहले 29 अगस्त 2015 में थाना रामकोट के निवासी कोटेदार दिलीप सिंह के घर से 2521 बोतल नकली शराब की बरामदगी हुई थी। 27 अगस्त 2015 को सिधौली में भारी मात्रा में नकली शराब की खेप बरामद की गई थी। यह नकली शराब लखीमपुर, लखनऊ और हरदोई के जिलो में भेजी जानी थी। 16 मार्च 2018 को थाना रामकोट के मधवापुर गाव में घर के अंदर बने तहखाने से हजारों लीटर नकली शराब की पेटियां बरामद हुई थी।

(मोहित शुक्ला की रिपोर्ट)

   

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