क्या सच में खुले में शौच मुक्त (ODF) हो सकेगा भारत?
Ranvijay Singh 9 Aug 2019 7:45 AM GMT
कमला देवी शौचालय का गेट खोलती हैं और वो धड़ाम से गिर जाता है। वो बिना सीट के शौचालय को दिखाते हुए कहती हैं, ''ये मिला है हमका, इसका हम क्या करें। चाहे बारिश हो या आंधी हम शौच के लिए बाहर ही जाते हैं।''
कमला देवी (46 साल) उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बजगहनी गांव की रहने वाली हैं। बजगहनी गांव में ज्यादातर शौचालय अधूरे बने हैं। किसी में सीट है तो टैंक नहीं और किसी में सीट, टैंक और छत तक नहीं है, बस ढांचा खड़ा कर दिया गया है। कमोबेश यही हाल आस पास के कई गांव का है।
बजगहनी के आगे ही दीनपनाह गांव पड़ता है। यहां भी शौचालय पूरी तरह से नहीं बन सके हैं। बाराबंकी में यह हाल तब है जब जिला खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित हो चुका है। यानि कागजी तौर पर कोई भी खुले में शौच नहीं करता, लेकिन असल हकीकत इन कागजों से कोसो दूर बैठी है।
कागजी तौर पर खुले में शौच मुक्त करने की कहानी लंबी है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की वेबसाइट पर अपलोड डेटा के मुताबिक, 2014 से लेकर अगस्त 2019 तक कुल 5 लाख 81 हजार 601 गांव ओडीएफ हो चुके हैं, इनमें से 5 लाख 17 हजार 679 गांव को सत्यापित भी किया गया है।
इसमें 2 लाख 53 हजार 949 ग्राम पंचायत, 6410 ब्लॉक और 639 जिले शामिल हैं। बता दें, भारत में कुल गांव की संख्या 6 लाख 28 हजार 221 है। वेबसाइट पर गांव को ओडीएफ करने के लक्ष्य का 96.62% काम पूरा होना बताया गया है, जबकि 2 अक्टूबर 2014 से पहले 38.70% घरों में ही शौचालय थे। यानि 2014 के बाद से तेजी से शौचालय बने हैं।
शौचालय के निर्माण की इस गति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शौचालय का निर्माण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी परियोजनाओं में से एक है और 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को ओडीएफ स्टेटस हासिल करना है। सितंबर 2018 में पीएम मोदी ने भी कहा था, "आज, 90 फीसदी से ज्यादा घरों में टॉयलेट की सुविधा मौजूद है, जो 2014 के पहले केवल 40 फीसदी घरों में थी।"
पीएम का यह दावा सही है कि उनकी सरकार में शौचालय के निर्माण में तेजी आई है। हालांकि वक्त वक्त पर ऐसी खबरें भी सामने आती रही हैं कि इन शौचालयों में से बहुत से खराब हैं, या अलग-अलग कारणों की वजह से इनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
बुंदेलखंड (मध्य प्रदेश) के टीकमगढ़ जिले के कौड़िया गांव का ही हाल देख लीजिए। इस गांव में बने शौचालय का इस्तेमाल लोग नहीं कर पाते। वजह है उनके पास नहाने के लिए पानी नहीं है तो शौच के लिए पानी कहां से लाएं। गांव की ही रहने वाली अंगूरी देवी (38 साल) बताती हैं, शौचालय बना है, लेकिन सूखा पड़ा हुआ है। उसका इस्तेमाल कोई नहीं करता। पानी है नहीं तो उसमें कैसे जाएं?''
अंगूरी देवी आगे कहती हैं, ''कई बार शिकायत की है। शिकायत जिनसे करो वो कहते हैं, कुएं से पानी लेते आओ, अब कुआं चार-पांच कोस दूर है, इतनी दूरी से पीने के लिए पानी लाएं या शौचालय के लिए।''
मध्य प्रदेश के सतना जिले के लोखरिहा गांव का भी हाल ऐसा ही है। गांव की रहने वाली सुनीता (19 साल) बताती है, ''हमारे यहां शौचालय बना, लेकिन उसमें गड्ढा नहीं खुदा है, उसका दरवाजा भी ठीक नहीं है। हम लोग शौच के लिए खेत में ही जाते हैं।''
यह तो हुई मध्य प्रदेश की बात, अब देखिए उत्तर प्रदेश का हाल, जहां के लोग शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बजगहनी गांव के रहने वाले रामचंद्र चौहान (38 साल) अपना आधा बना शौचालय दिखाते हुए कहते हैं, ''देखिए इसमें टैंक ही नहीं है। जब यह इस्तेमाल करने लायक ही नहीं तो क्या इस्तेमाल करें। अब मजबूरी में शौच के लिए बाहर ही जाना होता है।''
रामचंद्र ने गांव कनेक्शन की टीम को दो शौचालय दिखाए दोनों ही इस्तेमाल करने लायक नहीं थे। उनका दावा है कि गांव में 99 प्रतिशत शौचालय बेकार पड़े हैं। देखिए रामचंद्र चौहान का यह वीडियो-
मोदी सरकार के कार्यकाल में देश भर में कितने शौचालय बने इसपर कई अलग-अलग रिपोर्ट्स भी आई हैं। इनमें अलग-अलग दावे किए गए हैं। NARSS नाम की एक स्वतंत्र एजेंसी ने भी इसपर सर्वे किया है। नवंबर 2018 और फरवरी 2019 के बीच किए गए इस सर्वे में 93.1% फीसदी ग्रामीण घरों में शौचालय पाए गए और ये भी बताया गया कि भारत में 96.5% फीसदी लोग शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। NARSS के सर्वे में यह भी बताया गया कि सत्यापित किए गए ओडीएफ गांव में से 90.7% सही में ओडीएफ पाए गए। इस सर्वे में 6,136 गांवों के 92,040 घरों को शामिल किया गया है।
एक बात और समझने वाली है। यह बात कि ओडीएफ किस आधार पर घोषित किए जा रहे हैं। ओडीएफ बेस लाइन सर्वे के आधार पर किया जा रहा है। मतलब 2012 में किया गया एक सर्वे जिसमें पात्रों का चुनाव किया गया था। लेकिन इस सर्वे में तब से लेकर अब तक बहुत अंतर आ गया है।
बेस लाइन सर्वे के आधार पर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले को भी 2 अक्टूबर 2018 को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित कर दिया गया। हालांकि इसके बाद यह बातें उठने लगी कि बहुत से लोगों को शौचालय मिला ही नहीं है। जब इस मामले पर गांव कनेक्शन ने इसी साल जनवरी में मैनपुरी के जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) यतेंद्र सिंह से बात की थी तो उन्होंने कई चीजों पर अपनी बात रखी।
डीपीआरओ यतेंद्र सिंह ने बताया था, ''हमारे पर दबाव था कि 2 अक्टूबर तक जिले को ओडीएफ घोषित किया जाए। 2012 में एक सर्वे हुआ था। उसके आधार पर 1 लाख 84 हजार लोगों को शौचालय निर्माण के लिए चुना गया। यही वो बेस लाइन थी जो हमको पूरी करनी थी। यानि मैनपुरी में 1 लाख 84 हजार शौचालय 2 अक्टूबर 2018 तक बनाकर तैयार करने थे, ताकि जिले को ओडीएफ घोषित किया जा सके। हमने ऐसा ही किया है। बेस लाइन के मुताबिक जिले को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।''
यतेंद्र सिंह आगे कहते हैं, ''मेरे पास 1 लाख 5 हजार लोगों का हालिया सर्वे रखा हुआ है। ये सभी लोग पात्र हैं शौचालय के लिए। असल में जब 1 लाख 5 हजार शौचालय और बन जाएंगे तब जाकर मैनपुरी ओडीएफ होगा। सरकार की तरफ से 61 हजार शौचालय का पैसा मिल गया है, लेकिन तब भी 44 हजार शौचालय बच रहे हैं।''
मतलब साफ है कि बेस लाइन सर्वे के आधार पर मैनपुरी को खुले में शौच मुक्त तो घोषित कर दिया गया, लेकिन असल में बहुत से लोग हैं जिनके घरों में शौचालय है ही नहीं। ऐसा नहीं कि यह हाल सिर्फ उत्तर प्रदेश का है। कुछ ऐसा ही हाल अन्य कई राज्यों का है। 2018 में गुजरात के स्वच्छ भारत मिशन पर जारी की गई CAG (भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक) रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में शौचालय बनाने के टारगेट 2012 के सर्वे के आधार पर है। और तब से अब तक वहां जनसंख्या भी बढ़ गई है और परिवार की संख्या भी। ऐसे में इस सर्वे के आधार पर ओडीएफ करना नाकाफी है।
हालांकि इस सर्वे के आधार पर ही देश भर के 37 में से 33 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त हो गए हैं। जबकि 2015-16 में केवल सिक्किम ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जो खुले में शौच मुक्त था।
वहीं, ऐसी कई रिपोर्ट हैं जो खुले में शौच मुक्त हो रहे राज्यों के दावे की पोल भी खोलती हैं। जैसे गुजरात सरकार ने 2 अक्टूबर 2017 को राज्य को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया। लेकिन एक साल बाद आई कैग की रिपोर्ट में दावा किया गया कि गुजरात में 29.12% घरों में शौचालय है ही नहीं।
कैग की रिपोर्ट में भी बताया गया कि एसबीएम (ग्रामीण), गांधीनगर के सहायक आयुक्त ने मार्च 2018 में स्वीकार किया था कि राज्य ने 2012 के बेसलाइन सर्वे के आधार पर शौचालय निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। बेस लाइन सर्वे के आधार पर जिन घरों में शौचालय का निर्माण नहीं हुआ वहां कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) के तहत शौचालय बनाए जाएंगे। अंतर-जिला सत्यापन और क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा तीसरे पक्ष का सत्यापन पूरा हो चुका है और सभी गांव अब ओडीएफ हैं।
मतलब साफ है कि शौचालय पूरी तरह न बनने के बाद भी गुजरात को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया गया। ऐसे ही देश के कई गांवों, जिलों और राज्यों को भी ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।
इन तमाम रिपोर्ट्स और लोगों की बातें जान कर साफ होता है कि देश में शौचालय तो बहुत तेजी से बने हैं, लेकिन जिस आधार पर खुले में शौच मुक्त घोषित करने की कवायद चल रही है वो आधार ही कमजोर है। कई जगह शौचालय अधूरे बने हैं, कई परिवारों को शौचालय मिले नहीं है। वहीं जो शौचालय चल रहे हैं, उनके भी खराब होने की नौबत आ चुकी है। ऐसे में खुले में शौच मुक्त भारत फिलहाल कागजी तौर पर ही मुमकिन लगता है।
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