अपने जीआई टैग तसर सिल्क के लिए मशहूर ओडिशा के गोपालपुर को क्राफ्ट क्लस्टर के रूप में विकसित किया जाएगा

ओडिशा के जाजपुर जिले में तसर पायलट प्रोजेक्ट सेंटर लगभग आधी सदी पुराना है और इन पांच दशकों में, इसने बड़ी संख्या में हैंडलूम रेशम बुनकरों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है।

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अपने जीआई टैग तसर सिल्क के लिए मशहूर ओडिशा के गोपालपुर को क्राफ्ट क्लस्टर के रूप में विकसित किया जाएगा

गोपालपुर के तसर सिल्क को खास बनाने के लिए 2009 में भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग दिया गया। सभी फोटो: गोवर्धन प्रधान

जाजपुर जिले के गोपालपुर गाँव की तसर रेशम की साड़ियों को पारंपरिक बुनकर बनाते हैं, जो अपनी खास बुनाई तकनीक की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है। इन्होंने इस शिल्प को अपने पूर्वजों से सीखा है और पीढ़ियों से ये लोग इसका काम कर रहे हैं।

बालुकेश्वर सिल्क बुनकर, सहकारी समिति गोपालपुर के सचिव नरेंद्र कुमार बेहरा ने बताया, "गोपालपुर में लगभग 500 रेशम बुनकर, तसर रेशम की साड़ियां बुनकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं और इसका श्रेय मंगलपुर के तसर पायलट प्रोजेक्ट सेंटर को जाता है।"

ओडिशा के जाजपुर जिले में तसर पायलट प्रोजेक्ट सेंटर आधी सदी पुराना है और इन पांच दशकों में, इसने बड़ी संख्या में हैंडलूम रेशम बुनकरों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है।

गोपालपुर के तसर स्किल को खास बनाने के लिए 2009 में भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग दिया गया, जिससे इसकी अहमियत और बढ़ गई। यह टैग उन उत्पादों पर उपयोग किया जाता है जिसका एक खास जियोग्राफिकल असलियत हो और इस असलियत की वजह से उसमें गुण या प्रतिष्ठा हो।


मंगलपुर में तसर पायलट परियोजना केंद्र के प्रभारी अधिकारी अचुतानंद बेहरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम सेंटर की 260 हेक्टेयर जमीन पर फैले आसन और अर्जुन के पेड़ों पर रेशम कीट पाल रहे हैं। किसान सेंटर से तीन महीने के भीतर लगभग तीन लाख कोकून का उत्पादन करते हैं और जाजपुर, कटक, मयूरभंज, क्योंझर सुंदरगढ़, ढेंकनाल और राज्य के अन्य जिलों में रेशम बुनकरों को बेच देते हैं।"

अधिकारी ने आगे बताया कि केंद्र में रेशमकीट और तसर कोकून पालने से 250 किसान तीन महीने के भीतर लगभग एक लाख रुपये कमाते हैं। जबकि, बुनकर कोकून से रेशम की वस्तुएं जैसे साड़ी, स्कार्फ, दुपट्टा आदि बुनते हैं और उन्हें बेचते हैं।

सेंटर रेशम के कीड़ों या पतंगों को पालता है और बुनकरों को तसर रेशम से सामग्री बनने के लिए कोकून की आपूर्ति करता है, और ग्रामीणों को आय का एक स्थायी स्रोत प्रदान करता है। सेंटर उन्हें वक्त-वक्त पर नई बुनाई की तकनीकों का प्रशिक्षण भी दिलाता है। बुनकर अब रेशम के कीड़ों के पालन पोषण के लिए जंगल में अर्जुन और आसन जैसे अधिक देशी पेड़ों की मांग कर रहे हैं। ताकि अपने कारोबार का विस्तार कर अपनी कमाई को बढ़ा सकें।

गोपालपुर का बुनाई शिल्प

गोपालपुर में रेशम की बुनाई लगभग 7 सदियों से हो रही है। पश्चिम बंगाल के बर्धवान जिले के कुछ बुनकर गोपालपुर नदी के किनारे बुनाई करके अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए बस गए। बुनाई एक हुनर है जिसको पूरी प्रतिभा के साथ किया जाता है और पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को आगे बढ़ाया जाता है।

गोपालपुर के एक बुनकर बेनुधर दास ने गाँव कनेक्शन को बताया, "चार दशक पहले, हम आसपास के जंगल में आसन और अर्जुन के पेड़ों से रेशम के कीड़ों को इकट्ठा करते थे। लेकिन आजकल नवीनीकरण के नाम पर पानी की खपत बढ़ाने वाले यूकेलिप्टस के पेड़ लगाए जा रहे हैं, इसलिए अब हम रेशम के कीड़ों को हासिल करने के लिए मंगलपुर केंद्र पर निर्भर हैं।" उन्होंने बताया, "हमें रेशम के कीड़ों को पाने और अपनी कमाई को और अधिक बढ़ाने के लिए जंगल में अधिक आसन और अर्जुन के पेड़ों की जरूरत है।"

प्रभारी अधिकारी अचुतानंद ने बताया, "एक कोकून की कीमत तीन रुपए होती है। रेशम के बुनकरों को रेशम की साड़ी बनाने के लिए 3000 कोकूनों की जरूरत होती है।" उन्होंने बताया, "हम साल में तीन बार कोकून इकट्ठा करते हैं।" बुनकर चरखों के माध्यम से कोकून से रेशम का रेशा निकालते हैं। ग्रामीणों के लिए, रेशम उत्पादन और हथकरघा बुनाई बड़ी संख्या में राज्य बुनकरों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत बना हुआ है।

ओडिशा के जाजपुर जिले में तसर पायलट प्रोजेक्ट सेंटर लगभग आधी सदी पुराना है और इन पांच दशकों में, इसने बड़ी संख्या में हैंडलूम रेशम बुनकरों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है।

रेशम उत्पादन कोकून के उत्पादन के लिए रेशम कीट पालन की एक कला है, जो रेशम के उत्पादन के लिए कच्चा माल है। करघे पर बुनाई के लिए कच्चे रेशम का सीधे उपयोग नहीं किया जा सकता है।

सुकिंडा में तसर किसान सहकारी समितियों के सचिव गोवर्धन प्रधान ने बताया, "हम किसानों और बुनकरों को सेंटर में रेशम पालन और बुनाई की तसर विधि और तकनीक में सुधार के लिए उचित प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। वर्तमान में लगभग 250 किसान तसर की कटाई के लिए सेंटर में पांच लाख तसर खाद्य पौधों का पालन कर रहे हैं।"

नरेंद्र कुमार बेहरा ने कहा, हम रेशम बुनाई गतिविधियों में शामिल हैं और इस केंद्र की बदौलत कई दशकों से कमा रहे हैं।

गोपालपुर की तसर सिल्क का प्रमोशन

कपड़ा विभाग और ओडिशा ग्रामीण विकास और विपणन सोसायटी (ओआरएमएएस) के वरिष्ठ अधिकारियों का हाल ही में गाँव का दौरा करने के बाद गोपालपुर के रेशम बुनकरों को बढ़ावा देने की कोशिशों में तेजी आई है। ओडिशा सरकार के सेरीकल्चर के एडिशनल डायरेक्टर सूर्य पटनायक ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हम गाँव में एक शिल्प क्लस्टर स्थापित करने के लंबे समय से लंबित प्रस्ताव को लागू करने का प्रयास कर रहे हैं।"

अपने तसर रेशम के लिए मशहूर गोपालपुर को पारंपरिक उद्योगों को अपग्रेड और री-जनरेशन के लिए कोष योजना (SFURTI) के तहत एक शिल्प क्लस्टर के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया है। SFURTI सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSMEs) द्वारा समूहों में विकास को बढ़ावा देने के लिए एक पहल है।

पटनायक ने कहा, "प्रस्तावित परियोजना के हिस्से के रूप में, हम बुनकरों के लिए निरंतर रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए गोपालपुर में चार सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) स्थापित करेंगे। हम रेशम बुनकरों को आसानी से रेशम के कीड़ों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए अर्जुन और आसन के पेड़ भी लगाएंगे।" अधिकारी ने बताया, "कार्यान्वयन एजेंसी जिला प्रशासन की मदद से एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करेगी।"

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी

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