यौन शोषण के खिलाफ 24 हज़ार महिलाओं ने की 'गरिमा यात्रा'

दो महीने तक चली 'गरिमा यात्रा' 22 फरवरी 2019 को दिल्ली में समाप्त हुई। ये यात्रा यौन उत्पीड़न के शिकार लोगों को समर्पित थी। यात्रा के अंतिम दिन लगभग पांच हज़ार लोग इसमें शामिल हुए। पूरी यात्रा के दौरान 24 राज्यों से गुज़री इस रैली में लगभग 25 हज़ार लोग शामिल हुए जिसमें एक हज़ार पुरुष भी शामिल थे।

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यौन शोषण के खिलाफ 24 हज़ार महिलाओं ने की गरिमा यात्रा

लखनऊ। देश की राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 22 फरवरी 2019 को एक ऐतिहासिक रैली समाप्त हुई। 'गरिमा यात्रा (Dignity March) नाम की ये रैली बलात्कार, यौन उत्पीड़न और शोषण की शिकार महिलाओं को समर्पित थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दो महीने के दौरान इस रैली में लगभग 25 हज़ार लोग शामिल हुए, इनमें से एक हज़ार पुरुष भी थे।

'गरिमा यात्रा' के संयोजक आसिफ गांव कनेक्शन से फोन पर बात करते हुए औरतों की स्थिति के बारे में कहते हैं, "जब भी कभी किसी औरत का बलात्कार होता है तो सबसे पहले वो अपने परिवार के पास मदद मांगने जाती है लेकिन कई बार देखा गया है कि परिवार मदद करने के बजाए उन्हें ही बॉयकोट कर देता है। परिवार उन्हें ही अछूत मानने लगता है जैसे उन्होंने कोई अपराध किया हो।"

"हमारी यात्रा का मुख्य उद्देश्य इस धारणा को तोड़ना ही था कि जिसने बलात्कार किया है गलती उसकी नहीं है। हम चाहते हैं कि समाज ये मानना शुरू करे कि जो अपराधी है, जिसने बलात्कार किया है गलत वो है न कि वो जिसके साथ बलात्कार हुआ है," - वो आगे बताते हैं।

दिल्ली के रामलीला मैदान में गरिमा यात्रा के समापन समारोह में बॉलीवुड अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह शामिल हुईं। साभार- फेसबुक/https://www.facebook.com/dignitymarchindia/

ये यात्रा 20 दिसंबर 2018 को मुंबई से शुरू हुई थी और 22 फरवरी 2019 को 10 हज़ार किमी का सफर तय कर दिल्ली में खत्म हुई। कुछ समय पहले 'मी टू मूवमेंट' के ज़रिए हज़ारों औरतों ने अपने साथ हुए उत्पीड़न के बारे में बताया लेकिन कहा गया कि ये केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित रहा है। इस यात्रा ने औरतों को हिम्मत दी कि वो आगे आएं और अपने साथ हुए उत्पीड़न के बारे में बता सकें, इसमें लगभग सभी आम औरतें शामिल हुईं।

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24 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में आयोजित इस यात्रा में हज़ारों औरतें और बच्चे शामिल हुए। उन्हें विश्वास और हिम्मत मिली कि उन्हें छुप कर रहने की ज़रूरत नहीं है।

इन राज्यों में गरिमा यात्रा 2 महीनों के दौरान गुज़री। साभार- https://dignitymarch.org/

औरतों को यौन शोषण का शिकार होने पर समाज के रूखे रवैये का भी शिकार होना पड़ता है ऐसा आसिफ बताते हैं, वो कहते हैं-

"गाँव में बहुत बार लोग कहते हैं कि उसकी इज़्ज़त लुट गई लेकिन जिस महिला के साथ ये गलत हुआ है उसकी इज़्ज़त क्यों जाएगी, जिस व्यक्ति ने ये किया है इज़्ज़त तो उसकी जाना चाहिए लेकिन हमारे यहां मुश्किल होता है लोगों को ये समझाना। इस ही को लेकर हमने ये यात्रा की थी कि पीड़ित के साथ जो शर्म जुड़ी है वो खत्म हो और लोग उनका साथ दें। लोग अगर उनका समर्थन करना शुरू करेंगे तो ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग आगे आकर अपनी आपबीती सामने रख सकेंगे।"

आसिफ की बात आप यहां सुन सकते हैं-

इस यात्रा के आखिरी दिन 21 फरवरी को रामलीला मैदान में पांच हज़ार से ज़्यादा महिलाएं आईं। पूरी यात्रा के दौरान 25 हज़ार से ज़्यादा लोग इससे जुड़े थे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 83 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2007 में एक लाख 85 हज़ार 312 केस महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज़ हुए थे तो वहीं साल 2016 में इनकी संख्या 3 लाख 38 हज़ार 954 रही। इनमें से 12 प्रतिशत केस बलात्कार के दर्ज़ हुए। साल 2016 में हर दिन बलात्कार के 106 केस दर्ज़ हुए और इस ही साल अपराधियों को सज़ा होने का आंकड़ा सबसे कम था, मात्र 18.9 प्रतिशत।


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जितनी देर में आप खाना खाते हैं उतनी देर में एक बच्चे का उत्पीड़न होता है। भारत में हर 15 मिनिट में एक बच्चा शोषण का शिकार होता है। साल 2014 से 2016 के बीच पोक्सो (Protection of Children from Sexual Offences Act) एक्ट के तहत एक लाख चार हज़ार नौ सो 76 मामले दर्ज़ हुए।

कई बार महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनका बलात्कार हुआ है। गरिमा यात्रा के संयोजक ये कहते हैं-

"बहुत सारे केसस में लोग बलात्कार मानते ही नहीं हैं। बहुत सारी लड़कियों को देह व्यपार में उतारा जाता है, सुप्रीम कोर्ट ने भी पिछले साल कहा कि अगर15 साल से छोटी लड़कियों की शादी हो रही है तो वो बलात्कार का केस होगा। लड़कियों को 100-200 रुपयों में कुछ घंटों के लिए खरीदा जाता है और सबको लगता है कि यह वेश्यावृत्ति है लेकिन ये बलात्कार है। दक्षिण के राज्यों में देवदासी प्रथा के नाम पर, राजस्थान राज्य के किशनगढ़ जिले में राजगढ़ समुदाय की लड़कियों और बच्चों के साथ ऐसा होता है, बेड़िया समुदाय की, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी यही हालत है।"

     

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