अरुणाचल प्रदेश के जंगलों में वैज्ञानिकों ने खोजी अदरक की दो नई प्रजातियां
अदरक की इन दोनों प्रजातियों को अमोमम निमके और अमोमम रिवाच नाम दिया गया है। इन दोनों प्रजातियों में से एक अमोमम निमके को लोहित जिले और दूसरी प्रजाति अमोमम रिवाच को डिबांग घाटी जिले में पाया गया है।
Divendra Singh 6 July 2018 11:16 AM GMT
नई दिल्ली। अदरक का उपयोग खाने के साथ कई तरह से दवाइयों में भी होता है, वैज्ञानिकों ने अरुणाचल प्रदेश में दो नई प्रजातियों का पता लगाया है, जिनका अपना अलग औषधीय महत्व है।
अदरक की इन दोनों प्रजातियों को अमोमम निमके और अमोमम रिवाच नाम दिया गया है। इन दोनों प्रजातियों में से एक अमोमम निमके को लोहित जिले और दूसरी प्रजाति अमोमम रिवाच को डिबांग घाटी जिले में पाया गया है।
ये भी पढ़ें : सिर्फ अस्थमा ही नहीं डायबिटीज भी दे रहा है वायु प्रदूषण: रिसर्च
इनमें से पहली प्रजाति का नाम लोहित नदी के किनारे स्थित मिश्मी समुदाय से जुड़े पवित्र स्थान के नाम पर रखा गया है। जबकि, अदरक की दूसरी प्रजाति को डिबांग घाटी जिले में जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत रिसर्च इंस्टीट्यूशन ऑफ वर्ल्ड ऐन्शन्ट, ट्रेडिशन, कल्चर ऐंड हेरिटेज (रिवाच) के नाम पर नामित किया गया है।
केरल के कालीकट विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग से जुड़े शोधकर्ता मैमियिल साबू ने बताया, "अदरक की इन प्रजातियों की यह अप्रत्याशित खोज उस समय की गई है, जब हम लोहित जिले के जंगलों में खोजबीन कर रहे थे। इससे पहले इन प्रजातियों को कहीं नहीं देखा गया है और स्थानीय लोग भी इसका उपयोग नहीं करते हैं।"
ये भी पढ़ें : रिसर्च : वातावरण में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा फसलों में बढ़ा सकती है कीटों का प्रकोप
अमोमम अदरक कुल का एक औषधीय पौधा है, जिसकी 22 प्रजातियां देश के उत्तर-पूर्व हिस्से, प्रायद्वीपीय भारत, अंडमान निकोबार और पूर्वोत्तर भारत में फैली हुई हैं।
साबू आगे बताते हैं, "अदरक का औषधीय और व्यवसायिक उपयोग काफी अधिक है। यह आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ तथा एक परिचित जड़ी बूटी है और इसका उपयोग भोजन, दवा व सजावट के लिए किया जाता है। इसके बावजूद लगभग 125 वर्षों से इस पर कोई प्रमुख अध्ययन नहीं किया गया है।"
शोधकर्ताओं के अनुसार, "अदरक की ये प्रजातियां 2100 से 2560 मीटर की ऊंचाई पर समशीतोष्ण सदाबहार वनों में बांस और अन्य झाड़ियों के साथ बढ़ रहे थे। अभी इन नई प्रजातियों पर किसी भी गंभीर खतरे की पहचान नहीं की जा सकी है, लेकिन सड़क के विस्तार से इनकी आबादी प्रभावित हो सकती है।इन नई प्रजातियों का दायरा बेहद सीमित है।इनका संरक्षण नहीं किया गया तो ये भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं या फिर मानवीय छेड़छाड़ से ये नष्ट हो सकती हैं।"
ये भी पढ़ें : रिसर्च : मधुमेह रोगियों के घावों को जल्द भरेगी ये पट्टी
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से अनुदान प्राप्त इस अध्ययन को दो अलग-अलग शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)
More Stories