शादी के दो साल बाद दो मुल्कों की सरहद को पार कर ससुराल पहुंची दुल्हनें

शादी के दो साल बीत जाने और तमाम कोशिशों के बाद दो दुल्हनें पाकिस्तान से भारत अपने ससुराल पहुंच ही गईं, लेकिन अभी भी बहुत सी दुल्हनें वीजा न मिल पाने के कारण अपने ससुराल नहीं पहुंच पायी हैं।

Madhav SharmaMadhav Sharma   10 March 2021 9:40 AM GMT

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शादी के दो साल बाद दो मुल्कों की सरहद को पार कर ससुराल पहुंची दुल्हनेंदो साल के इंतजार के बाद दो दुल्हनें पाकिस्तान से भारत अपने ससुराल आ गईं, लेकिन अभी एक दुल्हन नहीं आ पायी। Photo: Arrangement

जयपुर (राजस्थान)। दो मुल्क, भारत और पाकिस्तान। 1947 में बंटवारा हुआ और एक जमीन दो हिस्सों में बंट गई। सरहदों पर तारबंदी भी हो गई। बंटवारा ऐसा था कि टेबल-कुर्सी और पंखे तक दोनों देशों के बीच बांटे गए। इतना बंटने के बाद भी भारत में थोड़ा पाकिस्तान और पाकिस्तान में थोड़ा भारत बचा रह गया। एक-दूसरे में बचे रहने के पीछे दोनों देशों में रोटी-बेटी के रिश्ते की भूमिका अहम है। इस रिश्ते को दोनों मुल्कों की तारबंदी में कैद करने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन मोहब्बत हर बार ये सीमा लांघकर इधर-उधर आती-जाती रही।

भारत और पाकिस्तान के बीच रोटी-बेटी के इसी रिश्ते की कहानी में अपना किस्सा दर्ज कराने बाड़मेर जिले के खेजड़ का पार गांव के महेन्द्र सिंह ने पाकिस्तान के अमरकोट जिले के सिनोई गांव की छगन कंवर से 16 अप्रैल 2019 को शादी की। महेन्द्र वीजा लेकर जनवरी, 2019 में ही अपनी छगन को ब्याहने गए थे।

महेन्द्र की तरह जैसलमेर के बइया गांव के नेपाल सिंह की शादी भी सिनोई में 22 जनवरी 2019 को कैलाश कंवर के साथ हुई। जनवरी 2019 में राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर से पाकिस्तान में सिंध के अमरकोट के सिनोई गांव में कुल तीन बरात पहुंची थीं। तीसरी बरात नेपाल के चचेरे भाई विक्रम सिंह की थी। जो 25 जनवरी को निर्मला बाई से हुई।

तीनों की शादी तो हो गई, लेकिन तभी 14 फरवरी को पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने हमारे सैनिकों के काफिले पर पुलवामा में हमला हुआ। इस हमले में 40 जवान शहीद हुए। हमले के बाद दोनों देशों के बीच सब कुछ बंद हो गया। आने-जाने के लिए वीजा पर भी पाबंदी लग गई। इसीलिए तीनों दुल्हनों को भी भारत आने का वीजा जारी नहीं हुआ। तीनों दूल्हे महेन्द्र सिंह, विक्रम सिंह और नेपाल सिंह बिना दुल्हनों की विदाई के अप्रैल महीने में वापस वतन आ गए।

नेपाल सिंह और विक्रम सिंह ने 2019 में पाकिस्तान जाकर शादी की थी। Photo: By Arrangement

इसके बाद दुल्हनों को भारत लाने की कई बार कोशिश की गई, तीन-तीन बार वीजा के लिए आवेदन किया लेकिन वीजा नहीं मिल पाया। आखिरकार 8 मार्च 2021 को नेपाल और महेन्द्र सिंह की पत्नी वाघा बॉर्डर के जरिए भारत पहुंचीं हैं। हालांकि विक्रम सिंह की पत्नी निर्मला भारत नहीं आ सकी हैं। परिवार के अनुसार उन्हें भारत आने की अनुमति मिल गई थी, लेकिन अंतिम चरण में किसी तकनीकी खामी के चलते उनका पासपोर्ट ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। विदेश मंत्रालय ने निर्मला-विक्रम के डेढ़ साल के बेटे राजवीर और उसे नाना-नानी को भारत आने की मंजूरी दी है। इस तरह कुल पांच लोगों को भारत आने की अनुमति दी गई है।

महेन्द्र सिंह ने खुशी जाहिर करते हुए गांव कनेक्शन को बताया, "पाकिस्तान के अटारी सीमा पर 7 मार्च को ही उनकी पत्नी आ गई थी। 8 मार्च को उन्हें दोपहर 12 बजे भारत में आना था, लेकिन कोविड रिपोर्ट निगेटिव नहीं होने से वक्त लगा और शाम 6 बजे उन्हें आने की अनुमति मिल सकी।"

महेन्द्र और नेपाल सिंह का पूरा परिवार वाघा बॉर्डर पर अपनी बहुओं की अगवानी के लिए पहुंचा हुआ था।

वाघा बॉर्डर पर महेन्द्र पीली शर्ट में। बच्चे राजवीर को गोद में लिए हुए विक्रम और नेपाल का भाई गोपाल सिंह। Photo: By Arrangement

नेपाल सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "दो साल का इंतजार सोमवार यानी 8 मार्च को पूरा हुआ है। अब मैं खुश हूं कि पत्नी मेरे साथ रहेगी। 22 जनवरी 2019 को मेरी शादी हुई और 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमला हो गया। इसके बाद दोनों देशों ने आने-जाने की पाबंदी लगा दी। मुझे इसी कारण वहां अप्रैल तक रुकना पड़ा। वीजा मिलने के बाद थार एक्सप्रेस से हम भारत आ गए। इसके बाद से ही मैं और मेरा भाई विक्रम सिंह अपनी-अपनी पत्नियों को भारत लाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सख्ती के चलते उन्हें वीजा नहीं मिला। 2019 का साल सरकारी वीजा के इंतजार में बीता और 2020 में कोरोना के कारण वीजा नहीं दिया गया।"

नेपाल आगे कहते हैं, "इसके बाद कुछ लोगों ने इस मामले को क्षेत्र के सांसद और कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी तक पहुंचाया। चौधरी ने दुल्हनों को भारत लाने के लिए विदेश मंत्रालय को पत्र लिखे। तब से अब जाकर वीजा की प्रक्रिया पूरी हुई है।'

बाड़मेर के सांसद और कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के सहायक निजी सचिव पंकज कड़वासरा भारत की बहुओं को यहां लाने की मुहिम की शुरूआत करने वाले शख्स हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "मंत्री कैलाश चौधरी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को नवंबर 2020 में ही पत्र लिखकर दुल्हनों को भारत के लिए वीजा देने की मांग की थी। तब से प्रक्रिया चल रही थी। अब जाकर सफलता मिली है।"

सांसद और कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी का एस. जयशंकर को पत्र। Photo: By Arrangement

पंकज आगे कहते हैं, "निर्मला के वीजा के लिए 5 मार्च को ही गृह मंत्रालय के अपर सचिव (विदेश) अनिल मलिक को पत्र लिखा गया है। उम्मीद है विदेश मंत्रालय जल्द ही निर्मला को भी अपने ससुराल आने के लिए वीजा दे देगा।"

बाड़मेर के सामाजिक कार्यकर्ता और इस मुहिम का हिस्सा रहे मनोज चौधरी पाकिस्तान से रोटी-बेटी के रिश्ते की बारीकियों को समझाते हैं। वे कहते हैं, "पाकिस्तान के सिंध में सोढ़ा राजपूतों के हजारों परिवार रहते हैं। ये परमार राजपूत कुल के वंशज हैं। परमार राजपूतों का नौवीं सदी में मध्य भारत के मालवा क्षेत्र में शासन था। 13वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी के मालवा पर आक्रमण के बाद ये राजपूतों का शासन भारत से खत्म हो गया। पाकिस्तान के सिंध में आज भी सोढ़ा राजपूत परिवार अपनी सदियों पुरानी परंपराओं को निभाता है। इसीलिए भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद भी वे भारत में राजपूतों से अपनी बेटियां ब्याहते रहे हैं।"

"महेन्द्र, विक्रम और नेपाल सिंह का मामला क्षेत्र में दो साल से काफी चर्चा में रहा है। स्थानीय मीडिया ने भी दुल्हनों को भारत लाने की मुहिम चलाई। अब जाकर तीन में से दो लड़कियां भारत आई हैं, "मनोज चौधरी ने आगे बताया।

हालांकि विक्रम और निर्मला का डेढ़ साल का बेटा राजवीर फिलहाल अपनी मां के बिना भारत में अपने घर वापस आया है। विक्रम के सास-ससुर मोर कंवर और तनेराज कुछ दिन बाद वापस अमरकोट, सिंध लौट जाएंगे।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी की शादी पाकिस्तान में हुई हो, यहां पर पाकिस्तान से बहुएं आती रहती हैं। फोटो: Francisco Ovies, Flickr

मनोज चौधरी कहते हैं, "रेगिस्तान के इन दोनों जिले जैसलमेर और बाड़मेर में सोढ़ा राजपूतों की कई बहुएं शादी के बाद एक बार भी अपने ससुराल यानी हिंदुस्तान नहीं आई हैं। वजह दोनों देशों के बीच वीजा बगैरह जैसी तकनीकी खामियां ही बनती हैं, लेकिन इसके बाद भी साल में 15-20 शादियां पाकिस्तान से भारत में की जाती हैं।"

मनोज एक बात और जोड़ते हैं। रोटी-बेटी के अलावा राजपूतों ने माटी का रिश्ता भी बचाया हुआ है। फेंसिंग के आर-पार रिश्तों की तांका-झांकी बदस्तूर चलती रहती है। रेगिस्तान की माटी के बारे में एक सुंदर कहावत भी है कि आप भले उसमें घंटों लेटे रहिए, लेकिन खड़े होते ही वह शरीर को छोड़ वापस धोरों में मिल जाती है। ये माटी का माटी के लिए प्यार है। विक्रम को भी यही उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच सख्तियों की माटी जल्द झड़ेगी और उसकी पत्नी निर्मला भी जल्दी भारत आएगी। जैसे महेन्द्र और नेपाल सिंह की पत्नी आईं हैं। क्योंकि माटी चाहे जैसलमेर की हो या अमरकोट की। वो रेगिस्तान की ही है।

    

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