बजट 2020: बजट से क्या चाहती हैं ग्रामीण महिलाएं?

किसी ने पहली बार 'बजट' शब्द का नाम सुना तो कोई महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है। कइयों ने लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा पर चिंता जताई।

Neetu SinghNeetu Singh   28 Jan 2020 11:00 AM GMT

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बजट 2020: बजट से क्या चाहती हैं ग्रामीण महिलाएं?

लखनऊ। "हमें न तो आवास मिला न विधवा पेंशन। महंगाई भी छप्पर फाड़कर बढ़ गयी। अब तो आलू-प्याज खाना भी मुश्किल है। बजट से गरीबों को क्या लेना-देना?" यह बात जंगल से लकड़ी लेने गयी फूलमती रावत (55 वर्ष) ने नाउम्मीदी से कही।

"बजट निकलने से पहले हमारी भी समस्या पूछी जाएगी, ये आज पहली बार आपसे पता चला। हमने तो नाम भी इसका पहली बार सुना है। एक समस्या हो तो आपको बताई जाये।" फूलमती रावत ने कहा। फूलमती लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर गोसाईगंज ब्लॉक के नूरपुर बेहटा गांव की रहने वाली हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को 2020-21 का आम बजट पेश करेंगी। जब गांव कनेक्शन ने आने वाले बजट को लेकर ग्रामीण भारत की महिलाओं और लड़कियों से बात करके उनकी राय जननी चाही तो कई तरह के जवाब मिले। किसी ने पहली बार 'बजट' शब्द का नाम सुना तो कोई महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है। कइयों ने लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा पर चिंता जताई। किसी ने रोजगार की मांग की तो किसी ने 12वीं तक नि:शुल्क शिक्षा की। पात्रों को सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने पर भी निराशा व्यक्त की।

महिला हेल्पलाइन 181 की कार्यकताओं को जून 2019 से नहीं मिला मानदेय.

जब बजट पर उत्तर प्रदेश में 181 महिला हेल्पलाइन में काम करने वाली महिला कर्मचारियों से उनकी राय जाननी चाही तो एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "सरकार की ये महत्वपूर्ण योजना है फिर भी हमें कई महीने से वेतन नहीं मिला। बिना पैसा के हम लोग कैसे महिलाओं की मदद करें। इस बार के बजट में सबसे पहले हमें वेतन दिया जाए।" यहां काम कर रहे 350 महिला कर्मचारियों को विभाग की तरफ से जून 2019 से मानदेय नहीं मिला है।

जबकि उत्तर प्रदेश में निर्भया फंड का 119 करोड़ रुपए का बजट है जिसमें अभी तक मात्र तीन करोड़ 93 लाख रुपए ही खर्च हुए हैं इसके बावजूद महिला सुरक्षा की यह महत्वपूर्ण योजना बंद होने के कगार पर है। यहां काम करने वाले कई कार्यकताओं ने बजट में सबसे पहले अपने रुके हुए मानदेय मिलने की बात कही।

वहीं नूरपुर बेहटा गांव की ही मुन्नी देवी (40 वर्ष) ने कहा, "मनरेगा का जॉब कार्ड तो है हमारे पास, पर 365 दिन काम कहां मिलता? साल में 100 दिन काम और पैसे भी बहुत कम। इतने से काम नहीं चलता। सरकार अगर हम लोगों को कोई ऐसा काम शुरू करा दे जिसमें हर महीने पैसा मिले तो बहुत अच्छा रहेगा।" मुन्नी की तरह देश की लाखों महिलाएं हर दिन काम की मांग सरकार से चाहती हैं।


मुन्नी देवी को उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर तो मिला है पर महंगे गैस की वजह से ये सिलेंडर नहीं भरा सकीं। ये चाहती हैं इस बजट में गैस के दाम कम किए जाएं।

उज्ज्वला योजना की शुरुआत से लेकर अब तक घरेलू सिलेंडर के दाम में करीब 30% से ज्यादा का इजाफा हुआ है। मई 2016 में नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर (14.2 किग्रा) का दाम 550 रुपए के करीब था। वहीं, दिसंबर 2019 में घरेलू सिलेंडर का दाम 750 रुपए के करीब था।

अपनी ही धुन में हाथ में हंसिया लिए 17 वर्षीय नेहा जंगल की तरफ चली जा रही थी। दसवीं के बाद पढ़ाई क्यों छोड़ दी? नेहा कहती हैं, "पैसा होता हो आगे पढ़ती। पढ़ने का किसका मन नहीं करता? आठवीं तक ही फ्री पढ़ सकते हैं। अगर 12वीं तक फ्री पढ़ने का इंतजाम होता तो हम जैसी कई लड़कियां पढ़ना बंद नहीं करती।" नेहा की तरह देश की लाखों लड़कियां पैसे के अभाव में पढ़ाई नहीं कर पातीं हैं।

जबकि वित्त मंत्री सीतारमण ने वर्ष 2019-2020 में 280.00 करोड़ रुपए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के लिए आवंटित किये थे।

वो लड़कियां जिनकी पैसे के अभाव में पढ़ाई बंद हो गयी है.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार महिलाओं के लिए जारी बजट में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। अगर पिछले तीन साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो जहां वर्ष 2017-2018 में बजट राशि 20396.36 करोड़ थी, वहीं वर्ष 2018-2019 में 24758.62 करोड़ हो गयी और वर्ष 2019-2020 में 29164.90 करोड़ है।

बजट में महिलाओं के लिए निरंतर ये राशि बढ़ना एक अच्छा संकेत हैं लेकिन अगर धरातल पर इसकी बढ़ोतरी का असर दिखे तो महिलाओं के सशक्तिकरण के दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

नेहा के साथ गांव की कुछ लड़कियां और माएं साथ में लकड़ियां बीनने जा रही थीं। नेहा की मां मुन्नी देवी बोलीं, "लड़कियों को अकेले भी तो नहीं छोड़ सकते। जमाना देखो कितना खराब है? सुरक्षा के नाम पर क्या दिया है हमें सरकार ने? कहीं ऊँच-नीच हो गयी, हमारी तो कोई सुनेगा भी नहीं।" ये चिंता सिर्फ मुन्नी देवी की नहीं है बल्कि इनकी तरह देश की सवा अरब आबादी महिलाओं की सुरक्षा का बड़ा मुद्दा है।


पिछले वर्ष बजट 2019-2020 आने से पहले गांव कनेक्शन ने महिला सुरक्षा को लेकर देश के 19 राज्यों के 18267 लोग से बात की। ग्रामीण भारत के इस सर्वे में लोगों से पूछा गया कि क्या आपकी घर की औरतें और लड़कियां घर से बाहर निकलते वक्त खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं?

इस सर्वे में 63.8 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके घर की महिलाएं दिन के वक्त तो बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस करती हैं लेकिन दिन ढल जाने के बाद असुरक्षा बढ़ती जाती है। जबकि 11.8 फीसदी लोगों ने कहा कि वे कभी सुरक्षित नहीं महसूस करतीं।

इन ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों को 1 फरवरी 2020 को आने वाले बजट की न तो समझ थी न ही ज्यादा लेना देना था, पर बातों-बातों ये सभी बातें बता गईं जिनकी बजट में जगह होनी चाहिए थी।

झारखंड के रांची जिले के सिल्ली ब्लॉक की रहने वाली लक्ष्मी देवी (25 वर्ष) गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "सरकार महंगाई कम करे। जो लोग जितना पढ़े हैं उस हिसाब से उन्हें काम दिया जाये। शराब बंद हो। पीने और खेतों में पानी का इंतजाम किया जाए। हमारे यहां पानी की बहुत समस्या है।" झारखंड में शुद्ध पीने के पानी की एक गम्भीर समस्या है। जबकि यहां की 85 फीसदी जमीन बरसात के पानी पर निर्भर है।


गांव कनेक्शन के सर्वे में पानी भी एक अहम मुद्दा था। इस दौरान 19 राज्यों के लोगों से सवाल पूछा गया था कि उनके लिए पानी का स्त्रोत क्या है? दूसरा सवाल था कि उनके घरों की महिलाएं पानी कितनी दूर लेने जाती हैं? इस सर्वे के अनुसार लगभग 39.1 प्रतिशत महिलाओं को पानी के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। इनमें से भी 16 प्रतिशत यानी लगभग 3000 महिलाएं ऐसी हैं, जिनके लिए पीने के पानी का स्त्रोत कम से कम एक किलोमीटर से पांच किलोमीटर दूर है।

झारखंड के पलामू जिले की रहने वाली वीना देवी बताती हैं, "बजट में मानव तस्करी को रोकने के लिए पैसा दिया जाए। बाल-विवाह खत्म किये जाएं। सेनेटरी पैड सस्ते मिलें। हर गरीब को रहने के लिए घर मिले। सब्जी, मसाला और दाल सस्ती हो जिससे गरीब भी पेटभर खाना खा सके।"

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जुलाई 2019 में बजट पेश करते हुए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ये कहा था कि वर्ष 2022 तक 1.95 करोड़ गरीब परिवारों को घर उपलब्ध करवाए जाएंगे जिसमें एक मकान बनने में मात्र 114 दिन लगेंगे। इससे पहले एक आवास बनवाने में 314 दिन लगते थे। वित्त मंत्री की इन बातों से लाखों बेघरों को घर मिलने की उम्मीद बढ़ी थी।


पिछले साल वित्त मंत्री की इन बातों से लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर माल ब्लॉक की मसीड़ा रतन गांव की रहने वाली कुमकुम देवी (33वर्ष) काफी खुश थीं। उन्होंने कहा था, "दो साल से आवास योजना का हमारा पैसा फंसा है, जो किस्तों में आ रहा है। अभी तक घर पूरा नहीं हुआ है। अगर इतने कम दिनों में घर बन जाएगा तो सबको फायदा होगा। अभी तो एक आवास बनवाने के लिए सालों चक्कर काटने पड़ते हैं तब भी पैसा नहीं मिलता है।" पर अभी भी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 114 दिन में मकान बनकर तैयार नहीं हो रहे हैं।

वहीं 65 वर्षीय लक्ष्मीं देवी ने कहा, "हम लोग पढ़े-लिखें नहीं हैं। सरकार की क्या योजना है? बजट क्या है इसकी कोई खबर हमें नहीं होती। हम तो बस इतना जानते हैं कि हमें किसी भी योजना का लाभ लेने में बहुत मुश्किल होती है। बाकी चीजें तो छोड़ दो जिन चीजों की रोज जरूरत होती है उसका भी लाभ नहीं मिलता।"

लक्ष्मी देवी को अभी तक स्वच्छ भारत मिशन के तहत न तो शौचालय मिला और है न ही प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर। उन्होंने कहा, "जब तक हमें किसी योजना का लाभ नहीं मिलेगा तो हमें कैसे लगे कि ये योजना हमारे लिए बनाई गई। बातें बहुत बड़ी-बड़ी होती हैं पर हकीकत में ज्यादा कुछ काम नहीं होता।"

"सरकारी अस्पताल में भी पर्चे पर दवा लिख देते हैं, बाहर से दवाइयां बहुत महंगी पड़ती हैं। कमसेकम अस्पतालों में गरीबोँ को तो फ्री में दवा मिले। कभी डॉ मिलते तो कभी नहीं, कोई नहीं हमारी सुनने वाला।" राजकुमारी (44 वर्ष) बताती हैं, "सरकार घर बैठे कोई काम दे जिससे हमारी रोजी-रोटी चल सके। गरीबों के लिए बहुत मुश्किलें हैं, क्या करें?'


   

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