बजट 2021: बच्चों और महिलाओं के पोषण के लिए बजट में 27% की कटौती, जबकि पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है

भारत में पांच साल से कम उम्र के 35% बच्चे कुपोषित हैं और 15 से 49 साल की उम्र की लगभग आधी महिलाएं एनीमिक हैं। लेकिन, महिलाओं और बच्चों की पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 2021-22 के बजट में 2,700 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है जबकि पिछले साल के बजट में यह राशि 3,700 करोड़ रुपए थी।

Shivani GuptaShivani Gupta   6 Feb 2021 2:00 PM GMT

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Union Budget 2021, 27% drop in funds for nutrition, Every third child, under the age of 5, is malnourished in India, budget, budget 2021-22विशेषज्ञों का कहना है कि पोषण संबंधी कार्यक्रमों के लिए बजट में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। (फोटो- Unisef)

एक फ़रवरी को वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की समस्या दूर करने के लिए 2,700 करोड़ रुपए का आवंटित किए है। यह राशि वित्त वर्ष 2020-21 के बजट अनुमान, 3,700 करोड़ रुपए की तुलना में 27% कम है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ बजट में की गई इस कमी से हैरान हैं। "पोषण के बजट में 27% की कमी एक भारी कटौती है," जन स्वास्थ्य अभियान, राजस्थान की सदस्य छाया पचौली ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बजट दस्तावेज़ 2019-20 में हुए वास्तविक ख़र्चों का भी ब्योरा दिया गया है, जिसके मुताबिक उस साल पोषण 1,880 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए थे। "इस साल का बजट ऐसा है कि कोई पिछले साल और इस साल के बजट में सीधे तौर पर तुलना नहीं कर सकता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि पोषण योजनाओं पर 2020-21 वास्तविक सरकारी खर्च कम हुआ है," आईआईटी, दिल्ली में अर्थशास्त्र की एसोसिएट प्रोफ़ेसर, रीतिका खेड़ा ने गाँव कनेक्शन को बताया।


बच्चों और महिलाओं के पोषण पर खर्च को कम करना चिंताजनक है क्योंकि देश में पांच वर्ष से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है और 15 से 49 साल तक की लगभग आधी महिलाएं एनीमिक हैं, व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वे 2016-18 के अनुसार।

"महिलाएं और बच्चे सबसे असुरक्षित जनसंख्या में से हैं। यहाँ तक कि सरकारी आंकड़ों भी कहते हैं कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उनके लिए आवश्यक सेवाएं, जैसे टीकाकरण और मातृत्व लाभ प्रभावित हुए थे। बजट में इन कटौतियों की कीमत हमें सालों तक चुकानी पड़ेगी," रीतिका खेड़ा ने आगे कहा।

कुपोषण का बोझ

कुपोषण देश पर बहुत बड़ा बोझ है। व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण, 2016-18 से पता चलता है कि देश में पांच साल से कम उम्र के 35% बच्चे छोटे कद के, 33% कम वज़न के हैं और 17% बच्चे वेस्टेड (कमजोर) हैं। बच्चों और महिलाओं में अधिक वजन, छोटा कद और वेस्टेड होना, लंबे समय से भोजन में पर्याप्त पोषक तत्वों की कमी का नतीजा है।

हाल ही में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5), 2019-20 में बताया गया है कि 22 में से 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया के मामले बढ़े हैं। इसी तरह का ट्रेंड 15 से 49 वर्ष की महिलाओं के बीच एनीमिया के मामलों में देखा गया। 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से 16 में, महिलाओं में एनीमिया के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

देश जहाँ पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञ पोषण सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए बजट में बढ़ोत्तरी की उम्मीद कर रहे थे।


"एनएफएचएस-5 महामारी शुरू होने से पहले ही पूरा किया जा चुका था। अगले सर्वे में आंकड़े और खराब होने के आसार हैं। इस संकट के बीच, पोषण का यह बजट बेहद निराशाजनक है," राइट टू फ़ूड कैम्पैन, ओडिशा के सदस्य, समीत पंडा ने गाँव कनेक्शन से कहा।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस साल स्वास्थ्य और पोषण के बजट में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी की उम्मीद कर रहे थे। "इस राशि से, पोषण सेवाओं और पोषण आहार की गुणवत्ता में आने वाले वर्षों में सुधार देखने को नहीं मिलेगा," छाया पचौली ने कहा।

"पोषण के लिए बजट दोगुना होना चाहिए था या कम से कम तीस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी तो इसमें होनी चाहिए थी," उन्होंने आगे कहा।

योजनाओं का नाम बदला या फिर विलय किया गया

केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत कई योजनाओं का या तो आपस में विलय कर दिया गया या फिर उनका नाम बदल दिया गया, पोषण कार्यक्रम के तहत सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0।

एक फरवरी को केंद्रीय बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था, "पोषण कार्यक्रम को मज़बूत करने के लिए हम सप्लीमेंट्री पोषण कार्यक्रम और पोषण अभियान का विलय कर और मिशन पोषण 2.0 की शुरुआत करेंगे।"

" पोषण सम्बन्धी कार्यक्रमों के लिए कुल बजट कम हो गया है, इसलिए दो योजनाओं का विलय करने का कोई मतलब नहीं है। यह केवल योजना का नाम बदलना है। अगर उन्होंने बजट बढ़ाया होता तो बेहतर परिणाम सामने आते," छाया पचौली ने कहा।

सरकार देश में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए प्रत्यक्ष लक्षित हस्तक्षेप के रूप में एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत कई योजनाएं और कार्यक्रम को चला रही है। आईसीडीएस के तहत, पूरक पोषण कार्यक्रम, 2009 में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और बच्चों (छः माह से छः साल) के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करने के लिए शुरु किया गया था। 2017-18 में, शून्य से छः वर्ष के बच्चों में छोटे कद की समस्या को कम करने के लिए पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) शुरू किया गया।

देश में पोषण परिणामों में सुधार के लिए, पूरक पोषण कार्यक्रम, पोषण अभियान, आंगनबाड़ी सेवाएं, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, किशोरियों के लिए योजना, जननी सुरक्षा योजना शुरू किये गए थे।

बजट 2021-22 के दस्तावेज़ों में सक्षम योजना के लिए आवंटित संयुक्त बजट 20,105 करोड़ रुपए दिखाया गया है, जिसमें चार कार्यक्रम, आईसीडीएस, पोषण, क्रेच और किशोरियों के लिए योजना शामिल हैं, जो 20,532 करोड़ रुपए से भी कम है, जो 2020-21 में अकेले आईसीडीएस को दिया गया था।

"बजट दस्तावेज़ों में आईसीडीएस के लिए रेखांकित बजट भ्रमित करने वाला है, यह सिर्फ़ गुमराह करता है," छाया पचौली ने कहा।

इसी तरह, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना को अन्य योजनाओं के साथ सामर्थ्य योजना के साथ जोड़ दिया गया है। वित्त वर्ष 2021-22 के सामर्थ्य को 2,522 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जबकि 2020-21 में अकेले मातृ वंदना योजना के लिए 2,500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। हालांकि संशोधित अनुमानों में इसे घटाकर 1,300 करोड़ रुपए कर दिया गया था।

"2020-21 के संशोधित अनुमानों में इस राशि को 2,500 करोड़ रुपए से घटाकर 1,300 करोड़ रुपए कर दिया गया। इससे यह भी पता चलता है कि कोविड महामारी में मातृ योजना के तहत महिलाओं को दी गई राशि में काफी अंतर था," समीत पांडा ने कहा।


आंगनवाड़ियों पर असर

पांच साल से कम उम्र के बच्चों और महिलाओं में पोषण सम्बन्धी परिणामों के अलावा, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि आंगनबाड़ी का बुनियादी ढांचा और आंगनवाड़ी श्रमिकों को दी जाने वाली सुविधाएं भी इससे प्रभावित होंगी।

"हमारे देश में आंगनबाड़ी केंद्रों का बुनियादी ढांचा वास्तव में खराब है। यहाँ तक कि इन केंद्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, इनमें से कई में बिजली, पानी और यहाँ तक कि शौचालय भी नहीं है। इस बजट से, आंगनबाड़ियों के लिए स्थिति चिंताजनक रहेगी," छाया पचौली ने कहा।

इसी बीच, रीतिका कहती हैं कि बजट की राशि हर वर्ष बढ़नी चाहिए, भले ही यह बढ़ोतरी कम हो। "इसके बजाय हमने कटौती देखी है। इसका मतलब यह है कि आंगनबाड़ी वर्कर्स को कम वेतन दिया जाता रहेगा, बच्चों को दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता को सुधारा नहीं जा सकता है," रीतिका खेड़ा ने कहा।

वित्त वर्ष 2021-22 के बजट भाषण के दौरान, वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि मिशन पोषण का लक्ष्य, 112 जिलों में पोषण की स्थिति को सुधारना होगा। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ इन ज़िलों तक ही क्यों सीमित रहेगा, इसका कारण स्पष्ट नहीं है। इन ज़िलों के अलावा दूसरे ज़िलों में भी कुपोषण बहुत अधिक है," समीत पांडा ने कहा।

  

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