Unnao Case : खरपतवार नाशक रसायन बना दलित लड़कियों की मौत का कारण, खेतों में काम के दौरान 78% महिला किसानों को करना पड़ता है यौन दुर्व्यवहार का सामना

उन्नाव केस में दो नाबालिग लड़कियों की मौत की वजह जो खरपतवार नाशक रसायन बताया जा रहा है, वो बाजार में आसानी से मिल जाता है जो हर किसान परिवार में उपलब्ध रहता है। एक रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि खेतों में काम के दौरान 78% महिलाओं को यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। लड़कियां और महिलाएं आखिर कब तक खेतों में असुरक्षित रहेंगी?

Neetu SinghNeetu Singh   28 Feb 2021 7:44 AM GMT

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खेतों में काम के दौरान 78% महिला किसानों को करना पड़ता है यौन दुर्व्यवहार का सामनाउन्नाव केस में ये है वो जगह जहाँ तीन दलित नाबालिग बच्चियां संदिग्ध अवस्था में मिली थीं जिनमें दो की मौत हो चुकी है. फोटो : नीतू सिंह

बबुरहा (उन्नाव)। फसल सुरक्षा के लिए किसान जिन रसायनों को बाजार से खरीदते हैं उस वक़्त उन्हें इस बात का अंदेशा भी नहीं होता होगा कि इसका उपयोग किसी को मारने के लिए भी किया जा सकता है?

दो दलित नाबालिग लड़कियों की हत्या में आरोपी ने जिस खरपतवार नाशी दवा (सल्फोसल्फ्यूरॉन) का इस्तेमाल किया था यह दवा ज्यादातर किसान परिवारों में उपलब्ध रहती है। किसान इस दवा का ज्यादातर छिड़काव गेहूं की बुवाई के एक महीने के भीतर सकरी (छोटी) पत्ती के खरपतवार को नष्ट करने के लिए करते हैं।

बाजार में यह दवा 250 से 350 रुपए के बीच में 13.5 ग्राम का एक दानेनुमा पाउडर होता है, साथ में 500 एमएल का स्टीकर (तरल पदार्थ) होता है। इन दोनों को मिलाकर पांच बीघे खेत में छिड़काव किया जाता है।

उन्नाव मामले में हुई दो दलित बच्चियों की हत्या का जो कारण बताया जा रहा है वह अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है। हर किसी को सोचने के लिए मजबूर कर रहा है? क्या खेत में काम कर रही लड़कियों और महिलाओं को मारना अब इतना आसान हो गया है?

इन बच्चियों की तरह वो तीनों बच्चियां भी 17 फरवरी को खेत में जानवरों के लिए घास लाने गईं थीं. फोटो : नीतू सिंह

उन्नाव के असोहा थानाक्षेत्र से लगभग तीन किलोमीटर दूर बबुरहा गाँव में 17 फरवरी को तीन दलित लड़कियाँ खेत में चारा लेने गईं थीं जहाँ देर शाम तीनों संदिग्ध अवस्था में मिलीं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर ने दो बच्चियों को मृत घोषित कर दिया अभी एक युवती का कानपुर में इलाज चल रहा है। मुख्य आरोपी विनय और उसका एक साथी गिरफ्तार कर लिया गया है। जिस बच्ची का कानपुर में इलाज चल रहा था उसके मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज हो चुके हैं।

पीड़िता ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को बताया, "पानी का न रंग बदला था न ही गंध आ रही थी। जिस हैंडपंप से पानी लाया गया था, वह पास में ही लगा है और उसका पानी पहले से ही खराब है। इसलिए हमें किसी तरह का शक नही हुआ और हमनें पानी पी लिया।"

उन्नाव एसपी आनन्द कुलकर्णी ने बताया कि पीड़िता के बयान के साथ विसरा रिपोर्ट भी आ गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों को खरपतवार नाशक दवा सल्फोसल्फ्यूरॉन को पानी में मिलाकर आरोपियों द्वारा पिलाया गया था। इसे पानी में मिलाने पर पानी का न रंग बदलता है न गंध आती है।"

ये भी पढ़ें : उन्नाव से ग्राउंड रिपोर्ट: परिजनों की चीखें रात के सन्नाटे में रह-रहकर चीत्कार मारती रहीं, दो लड़कियों की मौत की वजह तलाशता बबुरहा गांव

उन्नाव केस में ये है उस बच्ची का घर, जो अब अस्पताल से घर पहुंच चुकी है. फोटो : नीतू सिंह

खुलेआम बिक रही मौत देने वाली दवा

कृषि विज्ञान केंद्र सीतापुर-2 के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं, "बाजार में मिलने वाला कोई भी रसायन बहुत की खतरनाक होता है। सल्फोसल्फ्यूरॉन एक ऐसा रसायन है जिससे खेत की घास नष्ट हो जाती है तो आप अंदाजा लगाइये कि इंसान इससे कैसे बच सकता है? इन रसायनों के प्रयोग, बिक्री और भंडारण में हर स्तर पर सावधानी बरतने की बहुत आवश्यकता है। सही दिशा निर्देशन में अगर किसान इन दवाइयों द्वाइयों का छिड़काव अपनी फसल में नहीं करते हैं तो किसान से लेकर पर्यावरण तक हर किसी के लिए बहुत घातक है।"

देशभर में महिला किसानों के हक और अधिकारों के लिए काम वाली संस्था महिला किसान अधिकार मंच (MAKAAM) की सदस्य सीमा कुलकर्णी गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "उन्नाव केस में जिस तरह से दो बच्चियों की हत्या की गयी है, यह एक गंभीर चिंता का विषय है। ये नये-नये टूल्स हैं जो अब आरोपी बिना किसी डर से बच्चियों को मारने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इस केस में एक बात तो स्पष्ट हो रही है कि आरोपी पर किस तरह से पितृसत्तात्मक सोच हावी है। दूसरा बच्चियों को हैरेसमेंट करने का उसने जो नया तरीका अपनाया है इससे वो यह साबित करना चाहता है कि लड़कियों को मारना अब कितना आसान है?"

ये हैं एक मृतका बच्ची की माँ, जो रह-रह कर अपनी बच्ची को याद कर रही हैं. फोटो : नीतू सिंह

"जिस तरह से पहले एसिड खुलेआम मिलता था पर एसिड से बढ़ती घटनाओं के बाद कुछ नियम कानून बने जिससे कुछ रोक लगी है। फसलों में डालने वाले ये ऐसे रसायन भी बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं। अब कम्पनियां इसमें स्पष्ट तौर पर लिख देती हैं कि यह नुकसानदायक है तो आप उन्हें ब्लेम भी नहीं कर सकते। ऐसी कई रिपोर्ट्स आयी हैं जिसमें किसानों ने आत्महत्या इन कीटनाशकों को पीकर की हैं, क्योंकि यह घरों में बहुत आसानी से उपलब्ध रहती है। यवतमाल में फसल छिड़काव के दौरान इन कीटनाशकों से हुई किसानों की मौतें किसी से छिपी नहीं हैं," सुनीता कुलकर्णी ने कहा।

खेतों में काम करने के दौरान महिलाओं का शोषण

खेत में काम के दौरान उन्नाव में दो दलित बच्चियों की हत्या का उत्तर प्रदेश में कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी यूपी के बाराबंकी जिले के सतरिख थाना क्षेत्र के एक गाँव में लगभग 17 वर्षीय दलित लड़की के साथ भी ऐसी घटना हो चुकी है।

देश में छह करोड़ से ज्यादा महिला किसान और खेतिहर मजदूर हैं। महिलाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं। लेकिन खेतों में काम करने वाली ये महिलाएं चाहें वो किसान हों या खेतिहर मजदूर, उन्हें अक्सर शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार होना पड़ता है।

कोरटवा एग्रीसाइंस के वर्ष 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक़ क़रीब 78 फ़ीसदी महिला किसानों को यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है और यहीं से उनकी चिंताओं की शुरुआत होती है। ये स्थिति तब है जब दुनियाभर में महिलाओं का कृषि क्षेत्र में योगदान 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है। यानि पूरे विश्व के खाद्य उत्पादन में से आधे उत्पादन का योगदान ग्रामीण महिलाओं का है। खाद्य और कृषि संगठन (Food & Agriculture Organization) के आंकड़ों की मानें तो कुछ विकसित देशों में यह आंकड़ा 70 से 80 प्रतिशत भी है। बावजूद इसके ये अपने ही कार्य स्थल पर सुरक्षित महसूस नहीं करतीं।

ये है एक मृतका बच्ची के घर के पीछे का हिस्सा, घर की स्थिति देखकर आप इनकी गरीबी का अंदाजा लगा सकते हैं. फोटो : नीतू सिंह

उन्नाव की बच्चियों को मारने के लिए जिन दवाओं का प्रयोग किया गया, उन्नाव से सटे बाराबंकी जिले में वह दवा प्रतिबंधित है। गाँव कनेक्शन के कम्युनिटी जर्नलिस्ट वीरेन्द्र कुमार सिंह ने बाराबंकी जिले की 10 दुकानों पर जाकर इसकी पड़ताल की। पड़ताल में यह सामने आया कि मेथा की फसल में यहाँ के किसान इस कीटनाशक का छिड़काव करते थे जिससे फसल को कुछ नुकसान हुआ तो जिले में इस दवा पर बैन लगा दिया गया।

सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एसी कुलबे ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "हर पेस्टीसाइड नुकसानदायक होता है। मुझे नहीं लगता पर्टिकुलर सल्फोसल्फ्यूरॉन दवा को लेकर किसी ने रिसर्च किया हो। अगर इसका कोई सैम्पल मिले तब इसके बारे में डिटेल बताना आसान होगा पर हर पेस्टीसाइड नुकसानदायक है।"

खेत में प्रयोग होने वाले रसायनों को लेकर क्या कोई सरकारी नियम कानून है?

फसल में इस्तेमाल होने वाले जितने भी खरपतवार और कीटनाशक रसायन हैं जो बहुत घातक होते हैं, ये सब बाजार में बहुत आसानी उपलब्ध हैं इनकी बिक्री को लेकर कोई नियम कानून है? इस सवाल के जवाब में इस विभाग से संबंध रखने वाले उत्तर प्रदेश के एक सीनियर अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "बाजार से दवा लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है पर जो दवा बेच रहा है वो बिना लाइसेंस के नहीं बेच सकता। भारत सरकार द्वारा अभी जिन्हें लाइसेंस दिया जा रहा है वो बीएससी एग्री या बीएससी केमेस्ट्री की योग्यता रखता हो।"

"बाजार में चार ट्रेड की दवाइयां मिलती हैं। हर पैकेट पर तिकोने आकार का एक ट्रेड लगा होता है जिसमें लाल, पीला, नीला और हरे रंग का ट्रेड रहता है। जिसमें लाल ट्रेड की सबसे खतरनाक रसायन होती है फिर पीले और नीले घातक होते हैं। इसमें सबसे सुरक्षित और इको फ्रेंडली हरे ट्रेड का माना जाता है जिसमें सल्फोसल्फ्यूरॉन भी आता है।"


   

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