Ground Report: लालच, दलाली और धोखे की कहानी है उन्नाव के किसानों का मामला
उन्नाव के किसान और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण के बीच का मामला दलाली, लालच और धोखे की कहानी बयान करता है।
Ranvijay Singh 19 Nov 2019 11:10 AM GMT
''2005 में जब मैं सरकारी दुकान पर खाद लेने गया तो जानकारी हुई कि मेरी जमीन मेरे नाम से ही नहीं है। जब मैंने इंतखाब (खतौनी) निकलवाया तो पता चला मेरी जमीन UPSIDA की हो गई है। यह बात मैंने जब गांव में बताई तो दूसरे लोगों ने भी इंतखाब निकलवाया और फिर पता चला कि उनकी जमीन भी UPSIDA के नाम कर दी गई है। आप बताइए यह धोखा है या नहीं?'' यह सवाल करते हुए 44 साल के किसान रामू रावत के चेहरे पर नाराजगी साफ देखी जा सकती थी।
उन्नाव के मुरलीपुर गांव के रहने वाले राजीव की नाराजगी 'उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण' (UPSIDA) से है। राजीव उन दो हजार किसानों में से एक हैं जिनकी जमीन पर यूपीसीडा की महत्वकांक्षी योजना 'ट्रांस गंगा सिटी' बसाई जा रही है।
ट्रांस गंगा सिटी के लिए वर्ष 2002-03 में उन्नाव के गंगाघाट थानाक्षेत्र के कन्हवापुर, शंकरपुर सरांय और मनभौना ग्राम पंचायत की 1152 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। उस वक्त उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और इस जमीन को स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) के तहत अधिग्रहित किया गया था। करीब 17 साल बाद जब 16 नवंबर 2019 को यूपीसीडा इस जमीन पर पूरे तरीके से कब्जा करने पहुंची तो किसान और पुलिस के बीच झड़प देखने को मिली। गांव कनेक्शन आपको इस 17 साल लंबे मामले की शुरू से लेकर अबतक की कहानी बता रहा है।
किसानों के धरने की शुरुआत
रामू बताते हैं, ''2002-03 में जब अधिग्रहण की शुरुआत हुई तो हमें किसी भी तरह का नोटिस नहीं दिया गया। वो तो 2005 में जब इंतखाब निकलवाया गया तो हमें जानकारी हुई कि हमारी जमीन अब हमारी नहीं रही है। हमने इसे लेकर अधिकारियों से बात की लेकिन कोई सुनने को तैयार ही नहीं होता। हमें इधर से उधर भगया जाता था। इसके बाद 2005 में ही हम गांव वालों ने शंकरपुर चौराहे पर धरना देना शुरू कर दिया।''
रामू की बात को बीच में काटते हुए 70 साल के बाल्मिकी यादव कहते हैं, ''अरे बहुत लंबी लड़ाई लड़ी गई। 2005 के बाद करीब डेढ़ साल से अधिक धरना दिए थे। लोग खेत में काम करते और फिर शंकरपुर चौराहे पर जाकर बैठ जाते। इसके बाद अधिकारी जागे और 2007 में करार किया। करार यह हुआ कि एक बीघे का 5 लाख 51 हजार दिया जाएगा।''
रिपोर्टर- तो 5 लाख 51 हजार मिल गए ना?
इस सवाल पर बाल्मिकी यादव तपाक से कहते हैं, ''अभी कहां! बताया तो 'करार' हुआ था। पैसे नहीं मिले।'' पास ही बैठे 24 साल के कुलदीप यादव कहते हैं, ''बाबा कमिश्नर के आदेश के बारे में तो बता दो।'' इसपर बाल्मिकी हां-हां कहते हुए बताने लगते हैं, ''करार के अगले ही साल अगस्त 2008 में कमिश्नर का एक आदेश भी आया था।''
''इस आदेश में जमीन अधिग्रहण को लेकर कहा गया था कि 'यह पता चला है कि बिना अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी किए ही किसानों की जमीन यूपीसीडा के नाम कर दी गई है। ऐसा किस आधार पर और क्यों किया गया? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इस बारे में जानकारी दी जाए। साथ ही यह निर्देश भी दिया गया कि किसानों की जमीन उनके नाम की जाए और इस बारे में कमिश्नर को फोन और फैक्स के माध्यम से सूचित किया जाए।' इतना आदेश कमिश्नर ने दिया था, लेकिन इसका क्या हुआ कुछ पता नहीं।'' यह बात कहते हुए बाल्मिकी यादव निराशा से भरे लगते हैं।
बाल्मिकी यादव की बात को आगे बढ़ाते हुए रामू कहते हैं, ''इस आदेश का पता नहीं क्या हुआ लेकिन हमें पैसा नहीं मिला था और हमारी जमीन भी यूपीसीडा की हो गई थी। ऐसे में हमने धरना देना जारी रखा। 2007 में हुए करार के बाद करीब 4 साल ऐसे ही बीत गए। इसके बाद 2011 में पैसा मिलना शुरू हुआ, एक बीघे के हिसाब से 5 लाख 51 हजार किसानों को मिलने लगे। लेकिन किसान खुश इस लिए नहीं थे कि 2007 में करार किया और पैसा 2011 में दिया जा रहा है। इसपर न कोई ब्याज, न कोई बढ़ा हुआ दाम। सब वैसे का वैसा।'' कुछ देर रुकने के बाद रामू कहते हैं, ''यह पैसा भी सभी किसानों को कहां मिला। यही कोई 70 फीसदी किसानों को मिला होगा, बाकी नहीं मिला।''
रिपोर्टर- आखिरकार आप लोगों को पैसा मिल गया, फिर क्या हुआ?
इस सवाल का जवाब पास ही बैठे 48 साल के रमेश कुशवाहा देते हैं। वो तेज आवाज में कहते हैं, ''फिर हमारी जिंदगी में एटा का रहने वाला अजय अनमोल आ गया! किसान नाखुश थे और यह आदमी आया और हमसे बताया कि वो अधिकारियों का बहुत करीबी है, हमें हमारी जमीन का उचित दाम दिलवा देगा। हमें बड़े-बड़े सपने दिखाए। कहता था कि हमारी जमीन सोना है। हमारे घर के बाहर दो-दो गाड़ियां होंगी। सबके गले में सोने की चेन होगी।''
रमेश कुशवाहा की इस बात को सुनते हुए पास ही बैठे 55 साल के राजकुमार लोधी खिलखिला कर हंसने लगते हैं। वो कहते हैं, ''मुझसे कहता था कि मेरे बेटे की शादी में मुंबई का आर्केस्ट्रा आएगा और अपनी बहू को इतना सोना दे सकूंगा कि गांव के लोग देखते रह जाएंगे।'' इस बात पर रमेश सवाल करते हैं, ''क्या आर्केस्ट्रा आया?'' और फिर बरामदे में ठहाकों की आवाज गूंज उठती है ...
रमेश कुशवाहा कहानी को आगे बढ़ाते हैं। वो कहते हैं, ''2012 में अजय अनमोल आया। उसने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से हमारा विश्वास जीत लिया था। उसपर किसानों का इस कदर का भरोसा था कि एक साल भी नहीं बीते और अप्रैल 2013 में एसडीएम के निगरानी में किसानों की एक कमेटी बनाई गई। इस कमेटी में 30 किसान थे और एक अजय अनमोल, जोकि हमारा नेता था। इस तरह 31 लोगों की एक कमेटी बनी। इस कमेटी में मैं भी शामिल था।''
रमेश बताते हैं, ''जनवरी 2014 में अजय अनमोल किसानों की कमेटी को लेकर यूपीसीडा के हेड ऑफिस कानपुर गया। यहां उसने हमें बाहर ही बैठा दिया और अकेले ही अधिकारियों से मीटिंग कर ली। मीटिंग के बाद वो बाहर आया और कहा- 'साहब को कहीं जाना था तो वो चले गए। मैंने जो बात की है उसके मुताबिक आप लोगों को एक बीघे पर '7 लाख रुपए चार बार' मिलेंगे। क्या मैं इस करार पर साइन कर दूं?' उस पर लोगों का इतना विश्वास था कि सबने हां कह दिया और उस अकेले ने करार पर साइन कर दिया।''
रमेश कहते हैं, ''2014 में ही किसानों के खाते में एक बीघे के हिसाब से 7 लाख रुपए आने लगे। किसान इतना खुश हुए कि पैसा जुटाकर अजय अनमोल को टॉप मॉडल स्कॉर्पियो गाड़ी दिला दी।''
रिपोर्टर- अरे यह तो बहुत अच्छा रहा। आपको जमीन का दाम मिल गया।
इस सवाल पर रमेश खीजकर कहते हैं, ''अरे अच्छा कहां? यहीं तो गलती हो गई थी। अजय ने हमें बातों में उलझा दिया था। उसने जो करार किया था उसके मुताबिक, '7 लाख रुपए 4 बार में' मिलते लेकिन उसने हमसे बताया कि '7 लाख रुपए चार बार' मिलेंगे, यानि कुल 28 लाख रुपए मिलेंगे। ऐसा हमें लगा रहा था। पर असलियत तो बहुत बाद में पता चली। साथ ही 2011 में करार हुआ था कि एक बीघे की 16 प्रतिशत जमीन हमें ट्रांस गंगा सिटी में मिलेगी, जिसे कम करके 6 प्रतिशत कर दिया। यानि जो एक बीघे पर 7 लाख रुपए मिले असल में वो हमारी जमीन रखकर ही दिया गया।''
रमेश की बात को दुरुस्त करते हुए बाल्मिकी यादव कहते हैं, ''करार जो भी हुआ लेकिन 7 लाख अगर चार बार में मिलने थे तो 1 लाख 75 हजार पहली बार आता। लेकिन पहली बार में ही 7 लाख रुपए के हिसाब से पैसे आने लगे। ऐसे में लगा कि बाकी के एक बीघे के हिसाब से 21 लाख और आएंगे। इसलिए तो किसान बेवकूफ बनते रहे।''
रिपोर्टर- अच्छा फिर क्या हुआ? और अब तक आप लोगों को कितना पैसा मिल गया?
इस सवाल का बाल्मिकी यादव जवाब देते हैं, ''2011 में एक बीघे का 5 लाख 51 हजार मिला था। इसके बाद 2014 में एक बीघे का 7 लाख रुपए मिला। कुल मिलाकर एक बीघे पर 12 लाख 51 हजार रुपए मिले। साथ ही पुर्नवास के लिए 50 हजार रुपए भी मिले थे।''
बाल्मिकी यादव कहते हैं, ''2014 में जब एक बीघे पर 7 लाख रुपए के हिसाब से पैसे मिल गए उसके बाद 2015 में यूपीसीडा के अधिकारियों ने हमसे कहा कि अब वे अधिग्रहित जमीन पर बाउंड्री बनाना चाहते हैं। लेकिन अजय अनमोल के हिसाब से बताए गए करार के मुताबिक किसानों को अभी एक बीघे पर 21 लाख रुपए मिलने का इंतजार था। इसलिए किसान फिर आंदोलन करने लगे।''
''इस बीच अजय अनमोल हर कुछ दिनों पर किसी न किसी किसान को अपनी गाड़ी में बिठाता और उसे बैंक ले जाकर एक लाख या 50 हजार रुपए निकलवा कर ले लेता। किसानों से वो कहता कि तुम्हें 7 लाख मेरी वजह से मिले हैं, अभी और आएंगे। अधिकारियों को पैसे देने हैं इसलिए पैसे दे दो, नहीं तो और पैसे नहीं आएंगे।'' बाल्मिकी यादव बताते हैं
बाल्मिकी की बात अभी खत्म ही होती तब तक पास ही बैठे राजकुमार बोल उठते हैं। वो कहते हैं, ''मुझे गाड़ी में बिठाकर उन्नाव ले गया था। 1 लाख रुपए निकलवा लिए। बताया कि अधिकारी मांग रहे हैं। अगर नहीं दूंगा तो मेरे पैसे नहीं मिलेंगे।'' यह बात खत्म होते ही बाल्मिकी यादव कहते हैं, ''गांव में ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे।'' इस बारे में जब अजय अनमोल से संपर्क करने की कोशिश की गई तो किसानों द्वारा दिए गया मोबाइल नंबर स्विचऑफ बताता रहा।
''खैर, 2015 में फिर से आंदोलन शुरू हुआ और यह 16 नवंबर 2019 तक चल ही रहा था। 16 नवंबर को हमारी फसलों पर ट्रैक्टर चलवा दिए गए। हमने विरोध किया तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसके बाद यह मामला सबसे सामने है। लेकिन 2015 से लेकर 16 नवंबर 2019 तक हमने कई बार अधिकारियों से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन कुछ नहीं हो सका। बीच में आया अजय अनमोल भी गायब हो गया। किसानों का यही हाल है, कोई साथ नहीं देता है।'' - बाल्मिकी यादव उदास मन से कहते हैं
इस मामले पर जब ट्रांस गंगा सिटी में बने यूपीसीडा के ऑफिस के कर्मचारियों से बात की गई तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ''गांव वाले यहीं आम के पेड़ के नीचे प्रदर्शन करते थे। कभी-कभी यहां ऑफिस में आकर गाली गलौच भी करते थे। हम उनसे कहते कि हम तो कर्मचारी हैं, अपना काम कर रहे हैं। वो अधिकारियों से बात करें। कई बार यह लोग हमारी छत पर ईंट भी फेंकते। यह सब हम सहते हुए यहां दिन काट रहे थे।''
ट्रांस गंगा सिटी के वरिष्ठ प्रबंधक बी.डी यादव कहते हैं, किसानों को पूरा मुआवजा दिया जा चुका है। किसानों का अब कुछ बकाया नहीं है। अब उन्हें सिर्फ डेवलप प्लाट देना है, जोकि डेवलप होते ही दे दिया जाएगा। जहां तक बात 2002-03 में जमीन के अधिग्रहण के वक्त जानकारी या नोटिस न देने की है तो सारी प्रक्रिया की गई थी। अब यह पूरी जमीन यूपीसीडा की है।
फिलहाल 16 नवंबर 2019 को किसानों और पुलिस के बीच हुए संघर्ष में दो एफआईआर की गई है। एक एफआईआर पुलिस की ओर से और दूसरी ट्रांस गंगा सिटी के वरिष्ठ प्रबंधक बी.डी यादव की ओर से। पुलिस ने एफआईआर में 30 लोगों को नामजद किया है, वहीं करीब 200 लोग अज्ञात हैं। वहीं वरिष्ठ प्रबंधक बी.डी यादव की एफआईआर में 10 लोगों को नामजद किया गया है, साथ ही 200 लोग अज्ञात हैं। बवाल के दिन ही 5 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। इसके अलावा पुलिस गांव में दबिश दे रही है।
वहीं, मामले में अब राजनीति भी शुरू हो गई है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट किया कि ''उत्तर प्रदेश में किसानों को ट्रांस गंगा सिटी प्रोजेक्ट की ज़मीन के उचित मुआवजे की जगह भाजपा की लाठी मिल रही है, गन्ने का मूल्य नहीं मिल रहा, खड़ी फसल आवारा पशु खा रहे हैं, देश में अन्नदाताओं की आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं। क्या भाजपा के राज में विकास की यही परिभाषा है।''
उत्तर की प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने ट्वीट किया, ''उप्र सरकार को उन्नाव में पिछले कई दिनों से चल रहे जमीन मुआवजे के विवाद/हिंसा के लगातार उलझते जा रहे मामले को जमीन मालिकों के साथ बैठकर जल्दी सुलझाना चाहिए ना कि उनके ऊपर पुलिस लाठीचार्ज व उनका शोषण आदि कराना चाहिये जो अति-निन्दनीय है। इसे सरकार को अति गम्भीरता से लेना चाहिये।''
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