विधानसभा चुनाव: गन्ना किसान किस पार्टी का मुंह मीठा कराएंगे और किसका स्वाद होगा कसैला?

पश्चिमी यूपी की सियासत और अर्थव्यवस्था दोनों गन्ने के आसपास घूमती हैं। गांव कनेक्शन ने पश्चिमी यूपी के कई जिलों में किसानों से बात कर जानने क्या इस बार भी उनके लिए गन्ना का मुद्दा है? या फिर दूसरे मुद्दे गन्ने पर भारी पड़ेगे। " क्या कहता है गांव?" सीरीज की अगली खबऱ

Arvind ShuklaArvind Shukla   9 Feb 2022 5:51 AM GMT

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बिजनौर/लखनऊ। लखनऊ से दिल्ली की ओर बढ़ने पर सीतापुर के बाद से गन्ने के ट्रक और ट्रालियां नजर आने लगती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर बरेली पार करने के बाद इनकी संख्या बढ़ने लगती है, मुरादाबाद से लेकर रामपुर, हापुड़ और गाजियाबाद तक गन्ने से भरे ट्रक, ट्रालियां और बुग्गियां नजर आती हैं। गन्ना और ये ट्रैक्टर-ट्रालियां, बुग्गी ही इस इलाके की सामाजिक और राजनीतिक धुरी हैं।

पश्चिमी यूपी की अर्थव्यवस्था और सियासत दोनों गन्ने के आसपास घूमती हैं। इसके अलावा भी प्रदेश में कई क्षेत्र हैं जहां गन्ना प्रमुख फसल है। ऐसे गन्ने के गढ़ पश्चिमी यूपी के शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, हापुड़, गाजियाबाद, सहारनपुर, बड़ौत, मुरादाबाद से लेकर बरेली और तराई में लखीमपुर- गोंडा तक करीब 100 सीटे हैं जहां गन्ने का मुद्दा अहम हो सकता है। सरकार और किसान नेताओं की माने तो यूपी में 45 लाख से ज्यादा किसान परिवार गन्ने की खेती से जुड़े हैं। अगर हर परिवार में 4-5 भी मतदाता भी हुए तो 2 करोड़ मतदाता गन्ना किसान के परिवारों से हैं, जिनके लिए गन्ना एक बड़ा मुद्दा है।

"बिजनौर ही नहीं पूरे पश्चिमी यूपी के गन्ना बहुत बड़ा मुद्दा है। गन्ना का भुगतान बड़ी समस्या है। हमारी मिल नजीबाबाद (Kisan Sehkari Chini Mill) है। पिछले साल का गन्ना भुगतान नवंबर महीने में हुआ था। कम रेट और देरी से भुगतान यही मुद्दा है।" ढाकी साधो गांव के बुजुर्ग किसान चौधरी रामफल कहते हैं।

गन्ने के गढ़ पश्मिमी यूपी के साथ ही यूपी की करीब 100 सीटों पर गन्ना किसान अपना प्रभाव रखते हैं। फोटो में मुरादाबाद की मिल में गन्ना ले जाता किसान। फोटो- मो. आरिफ

पिछले कुछ वर्षों में बिजनौर गन्ने का सबसे बड़ा गढ़ बना है। उत्तराखंड से सटे तराई के इस जिले में करीब 2.5 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती है। निजी और प्राइवेट को मिलाकर 9 चीनी मिले हैं जबकि 10वीं के लिए तैयारी जारी है।

किसान नेता दिगंबर सिंह कहते हैं, "बिजनौर की बात करूं तो तराई इलाका है, चारों तरफ गन्ना ही नजर आएगा। कुछ लोग खाने भर की गेहूं और सरसों उगाते हैं। कोई दूसरा उद्योग नहीं, गन्ने से ही घर चलता है तो गन्ना ही मुद्दा है। और सिर्फ यहीं नहीं पूरे पश्चिमी यूपी में गन्ना मुद्दा है। जरुरत है चीनी मिलों की क्षमता बढ़ाई जाए और किसानों को लागत के अनुसार दाम मिलें।"

पश्चिमी यूपी के नब्ज को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार अनिल चौधरी कहते हैं, "गन्ने का पेमेंट सबसे बड़ा मुद्दा है। लेकिन सरकार कोई भी रही हो किसी ने 14 दिन में पेमेंट नहीं कराया। बीजेपी ने कहा था कि 14 दिन में कराएंगे तो लोगों को भरोसा हुआ और यही वजह रही थी कि बीजेपी को यहां प्रचंड जीत मिली थी लेकिन किसान फिर छला गया। उनका वादा भी पिछली सरकारों जैसा ही रहा।"

बिजनौर के किसान विपुल चौधरी, जिनके मुताबिक उनके जैसे करोड़ों किसानों के परिवार सिर्फ गन्ने के सहारे हैं। गन्ना के रेट में कम बढ़ोतरी उनके लिए मुद्दा है। फोटो- मो. आरिफ

हर पार्टी के लिए गन्ना किसान महत्वपूर्ण

विधानसभा चुनाव( up election 2022) में गन्ना पश्चिमी यूपी के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि किसी पार्टी का कोई चुनावी कार्यक्रम बिना गन्ने के पूरा नहीं होता है। बीजेपी सरकार गन्ना भुगतान की प्रक्रिया में आई तेजी और भुगतान के आंकड़े गिनाती है तो गठबंधन के सहारे चुनाव जीतने की जुगत में लगे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी कई बार अपनी चुनानी बस में गन्ने के साथ नजर आ चुके हैं। कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में गन्ने का रेट 400 करने का वादा कर प्रदेश के करीब 5 करोड़ किसान परिवारों के 2 करोड़ मतदाताओं को साधने की कोशिश की है।

गन्ना किसान और किसान आंदोलन पर टिका सपा और रालोद का गठनबंधन। फोटो- ट्वीटर सपा

गन्ना भुगतान और गन्ना किसानों के मामले अपनी सरकार के कामकाज गिनाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, "बीएसपी और सपा के सरकार में 29 चीनी मिलें या तो बंद हुई थीं या औने-पौने दामों पर बेची गई थीँ हमारी पांच साल की सरकार में 2 साल कोविड ने व्यवधान डाला बावजूद इसके कोई मिल बंद नहीं हुई। किसानों को अब तक 1 लाख 57 हजार करोड़ रुपए दिए हैं। 3 नई मिलें लगाई हैं।"

सीएम योगी आदित्यनाथ आगे कहते हैं, "चौधरी चरण सिंह जो किसानों के मसीहा थे, उनकी कर्मभूमि छपरौली में रमाला चीनी मिल चालू हो चुकी है। बस्ती जिले के मुंडेरवा में जहां किसानों पर गोलियां चली थी वहां नई मिल चालू हो चुकी है। गोरखपुर की पिपराइच मिल भी नए सिरे सो चालू की गई है। इसके साथ 20 मिलों का आधुनिकीकरण पर राज्य सरकार काम कर रही है।"

चुनावी घमासान के बीच पश्चिमी यूपी के किसानों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने वर्चुअल कार्यक्रम में कहा, "गन्ना किसानों का बकाया सालों-साल चलता रहा, योगी जी की सरकार ने बीते पांच सालों में पुराने बकाए सहित करीब 1.5 लाख करोड़ का भुगतान किया है। पिछले सीजन का भी लगभग पूरा भुगतान हो चुका है और इस बार का भी बकाया तेजी से निपटाया जा रहा है।"

बरेली में ट्यूलिया गांव के किसान यशपाल गंगवार। डीजल से लेकर उर्वरक और बिजली की कीमतों बढ़ने से नाराज हैं लेकिन खुले तौर पर कहते हैं बीजेपी को देंगे। फोटो -मो. आरिफ

लेकिन किसानों की समस्या सिर्फ बकाए तक नहीं है। समस्या गन्ने की खेती की बढ़ती लागत है। डीजल, उर्वरक और पेस्टीसाइड के मुकाबले गन्ने के रेट के बढ़े रेट बेहद कम है। केंद्र सरकार ने पिछले साल गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य में 5 रुपए कुंटल की बढ़ोतरी की थी, जिसके बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य समर्थन मूल्य (SAP) में 25 रुपए कुंटल की बढ़ोतरी की। यूपी ए ग्रेड गन्ने का मूल्य अब 350 रुपए कुंटल है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इससे पहले 2017-18 में 10 रुपए की कुंटल की बढ़ोतरी की थी। वर्ष 2007 में बनी बसपा सरकार ने अपने कार्यकाल में सबसे अधिक गन्ने के रेट में कुल मिलाकर 115 रुपये का इजाफा किया था। अखिलेश यादव की सरकार में गन्ने का रेट 65 रुपये बढ़ा था। हालांकि दोनों ही सरकारों में मिलों में बंद, बेचे जाने और बकाए भुगतान का मुद्दा छाया रहा था।

बिजनौर में श्योतरा गांव किसान कुलवीर सिंह प्रधान कहते हैं, "गन्ने में सबसे ज्यादा डीजल का खर्च है। डीजल के दाम कहां से कहां पहुंच गए। यूपी में बिजली पूरे देश से महंगी है। गन्ने में घास खत्म करने के लिए एक दवा आती है, साल 2021 में 100 ग्राम की कीमत 170 रुपए थी जो 2022 में 270 रुपए की हो गई जबकि गन्ने के रेट में पिछले 5 वर्षों में 25-35 रुपए बढ़े हैं। इस पैसे में किसान क्या खाएगा, क्या खेती करेगा और क्या अपने बच्चों को पढाएगा।"

मुरादाबाद के किसान राजवीर सिंह कहते हैं, "गन्ने का सबसे अच्छा रेट मायावती की सरकार में बढ़ा था, उस हिसाब से होते तो अब तक 400 हो जाते।"

किसानों के मुताबिक उन्हें सबसे ज्यादा डीजल की महंगाई ने परेशान किया है। उत्तर प्रदेश में जनवरी 2022 में डीजल की औसत कीमत 87 रुपए प्रति लीटर है। जबकि साल 2021 के जनवरी में रेट 74-75रुपए लीटर था। रबी के पीक सीजन में (नवंबर 2021) में किसानों को 98.89 रुपए में लीटर में डीजल खरीदना पड़ा। कई जगह से 100 का आंकड़ा पार भी कर गया था। थोड़ा और पीछे जाएं तो जनवरी 2020 में यूपी में डीजल की औसत कीमत 64-65 रुपए प्रति लीटर थी।

पश्चिमी यूपी के मुद्दों को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार अनिल चौधरी के मुताबिक 14 दिन में पेमेंट का वादा तो किसी पार्टी ने नहीं निभाया लेकिन बीजेपी सरकार गन्ने के रेट में भी सबसे कम बढ़ोतरी हुई।

भुगतान में हुए कई सकारात्मक बदलाव लेकिन 14 दिन का वादा आधूरा

भुगतान के मामले में कई जिलों में मिलें 14 दिन के अंदर भुगतान कर रही हैं तो कई जगहों पर (शामली में बजाज मिल) मिलों अभी पिछले साल का भी पैसा बाकी है।

यूपी में बीजेपी में सत्ता में आने के बाद गन्ना किसानों को लेकर कई बदलाव किए गए हैं। डिजिटल पर्ची से लेकर हाईटेक पेमेंट सिस्टम तक शामिल है। प्रदेश के गन्ना आयुक्त संजय भूषरेड्डी गांव कनेक्शन को बताते हैं, "प्रदेश में पहले चीनी मिलें चीनी बेचकर उस पैसे किसान का भुगतान न करके दूसरे काम में लगाती हैं। हम लोगों ने ऐसे एक नया सिस्टम लागू किया जिसमें चीनी, एथेनाल, बैगास का मिल कोई भी उत्पाद बेचे जाने पर उसका 85 फीसदी पैसा किसानों के भुगतान में जाएगा, बाकि मिल को मिलेगा। उससे काफी कुछ सुधार हुआ। भुगतान न करने वाले मिलों के खिलाफ नोटिस जारी कई गईं। 20 से ज्यादा मिलों पर कार्रवाई हुई है। अच्छा भुगतान करने वालों मिलों को न्यूनतम दरों पर साफ्ट लोन दिए गए ताकि किसानों को समय पर भुगतान हो सके। भुगतान प्रक्रिया अब सुचारु रुप से जारी है।"

प्रदेश की चीनी मिलों ने पेराई सत्र 2021-22 में 25 जनवरी तक 465.26 लाख टन गन्ने की पेराई की थी, जिससे 45.67 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ। किसानों के गन्ने की कीमत करीब 16000 करोड़ रुपए होती है। जिसमें से 9157.43 करोड़ का भुगतान हुआ था। अगर सिर्फ सरकारी क्षेत्र की मिलों की बात करें तो उत्तर प्रदेश सहकारी चीनी मिल्स संघ लखनऊ से मिले आंकड़ों के मुताबिक चालू पेराई सत्र 2021-22 के दौरान 3 फरवरी तक सहकारी क्षेत्र की 24 चीनी मिलों में 274868 किसानों ने गन्ने की आपूर्ति की, जिसमें 182097 किसानों को भुगतान किया जा चुका है। इस सभी किसानों का कुल देय 1440.91 करोड़ रुपए था, जिसमें से 490 करोड़ का भुगतान हो चुका है। जबकि 950.91 अभी बाकी है।

एथेनॉल का उत्पादन बढ़ा

पिछले कुछ वर्षों में गन्ने के रेट न बढ़ने के पीछे सरकारों ने चीनी की कम खपत को रेट न बढ़ाने की वजह बताई। भारत से चीनी का निर्यात ज्यादा हो नहीं पाता क्योंकि ब्राजील समेत दूसरे देशों में प्रति किलो चीनी की लागत भारत से काफी कम है। ऐसे में सरकार ने कहा कि चीनी के अलावा गन्ने के बाई प्रोडेक्ट पर जोर देगी। जिसका एक बेहतर विकल्प एथेनाल बताया गया है। यूपी सरकार के मुताबिक बीजेपी सरकार में कुल 348 करोड़ लीटर का एथेनॉल का उत्पादन हुआ है जबकि बीएसपी के सरकार के दौरान 7-12 के बाद 58 करोड लीटर, सपा में 142 करोड लीटर एथेनॉल का उत्पादन हुआ था।

एथेनॉल एक प्रकार का अल्कोहल होता है, जिले पेट्रोल में मिलाया जाता है। यह एक प्रकार से ग्रीन फ्यूल है,जिसमें इस्तेमाल से हानिकाकर गैसों कार्बन मोनो ऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड का कम उत्सर्जन होता है। बजट 2022-23 में नरेंद्र मोदी सरकार ने गैर पर 2 फीसदी टैक्स लगाया है।

चीनी मिलों के संगठन इंडियन सुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के मुताबिक 3 फरवरी को कहा कि चालू वित्त वर्ष केलिए संसोधित बजट अनुमान में चीनी उद्योग के लिए आवंटन बढ़ाकर 6,844 करोड़ रुपए किया गया जो स्वागत योग्य है। पहले यह4337 करोड़ था। इस्मा ने कहा कि यह गन्ना के भुगतान के निपटान की दिशा में सकारत्मक कदम है। एस्मा ने कहा कि अगले वित्त वर्ष के लिए बजट आवंटन में 300 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी (एथेनाल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए मिलों को वित्तीय मदद) एथनॉल मिश्रण की बढ़ी आपूर्ति देश में तेल आयात के मद में होने वाले देश के खर्च को कम करेगी।


ट्राली वाला हो या बुग्गी वाला किसान, गन्ना का भुगतान उनके लिए एक अहम मुद्दा है। बैलगाड़ी से गंगा पार करता एक किसान। फोटो- मो. आरिफ

चीनी का उत्पादन

देश में चालू चीनी विपणन सीजन 2021-22 में अक्टूबर से जनवरी की अवधि में 5.64 फीसदी बढ़कर 1.87 करोड़ चन होने का अनुमान है जो पिछले साल समान अविधि में 1.77 करोड़ था। एस्मा के मुताबिक 31 जनवरी 2022 तक देश की 507 मिलों ने 187.08 लाख टन चीनी का उत्पादन किया जो पिछले सीजन में 491 मिलों के 177.06 लाख टन से ज्यादा है। हालांकि इस दौरान चालू सीजन में देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादन राज्य में यूपी में चीनी उत्पादन पिछले साल के 54.4 लाख टन से घटकर 50.3 टन रहा है।

हालांकि यूपी सरकार का कहना है कि 10 वर्ष (सपा बसपा) कार्यकाल में 64 लाख मीट्रिक टन चीनी का औसत सालाना उत्पादन होता था, जबकि बीजेपी सरकार के 5 साल में वार्षिक उत्पादन 116 लाख 71 हजार मीट्रिक टन का रहा है।

उत्पादन और भविष्य की योजनाओं से परे किसानों को अपने आज की चिंता है। बिजनौर में शहर की सरकारी मिल पर गन्ना लेकर आकर किसान श्यो सिंह ने कहा, "किसान को समय पर पेमेंट नहीं मिलता। कर्जे लेकर खेती में लगाता रहता है। बनिया से पैसे लेता है। जो बाद में मिलों से रकम मिलती है वो बैंक और बनिया का ब्याज उतारने में चली जाती है।"

गन्ने के मुद्दे पर पश्चिमी यूपी के कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार पाराशर कहते हैं, जैसे ही आप हरियाणा से यूपी में प्रवेश लेते हैं मुजफ्फरनगर-शामली से लेकर पूरा पश्चिमी यूपी और उधर शारदा-घाघरा की तराई गोंडा तक एक गन्ना बेल्ट है, ये जिले आपस में जुड़े हैं। गन्ने की राजनीति चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत से लेकर अब तक है। उसके पीछे का बड़ा कारण है, कहने को गन्ना एक नगदी फसल है लेकिन असल में ये एक उधारी की फसल बनकर रह गई है। निजी हो या, सरकारी, अर्ध सरकारी, कॉपरेटिव की मिलें किसान से गन्ना लेकर उसका साल-दो साल तक में भुगतान करती हैं।"

वो आगे कहते हैं, "ये खेती के लिए धनी इलाका है। यहां साल में तीन फसलें होती हैं। किसानों को हर चौथे महीने, खाद, बिजली डीजल के लिए पैसे चाहिए होते हैँ। बच्चों की पढ़ाई से लेकर दवा तक पैसे चाहिए। घर में शादी बारात होती हैं और पैसे नहीं होते फिर ये लोग कर्ज लेते हैं, जिसका ब्जाय देते हैं। लेकिन मिल बकाया पैसों पर ब्याज नहीं मिलता है। अगर किसान मिल की बजाए खांडसारी (क्रसर) आदि को गन्ना देता है है तो वहां सरकारी रेट से काफी कम रेट मिलता है। इसलिए वो परेशान रहता है। इसलिए गन्ना यहां मुद्दा है।"

डीजल से लेकर एनपीके और पेस्टीसाइड तक बढ़ती लागत ने बिगाड़ा किसानों का बजट।

बंद पड़ी मिलों के कर्मचारियों और किसानों को मिल शुरु होने का इंतजार

यूपी में पिछले कुछ दशकों में 38 चीनी मिलें बंद हुई हैं। सीतापुर जिले की महौली चीनी मिल घाटे के चलते 1998 में बंद कर दी गई थी। उस दौरान करीब मिल में 1000 से ज्यादा नियमित और संविदा कर्मी थे। हर चुनाव में इस मिल के शुरु होने की बाते होती हैं। लेकिन चुनाव के बाद मामला शांत हो जाता है। महोली इसी मिल परिसर में रह रहे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज मिश्रा कहते हैं, "हर चुनाव से पहले इस मिल की फिर चालू होने के की बातें और वादे होते लेकिन जीतने या हारने के बाद कोई सुध नहीं मिला। एशिया की सबसे जानी मानी चीनी मिल राजनैतिक शिकार हो गई। इससे इस क्षेत्र का बहुत विकास था। यहां का विकास थम गया है। कर्मचारी और क्षेत्रीय किसान दोनों चाहते हैं कि मिल चालू हो।"

सरकारी आंकड़ों के मुताबिद देश में 756 चीनी मिल हैं, जिसमें से 250 बंद पड़ी हैं। बंद पड़ी मिलों में 38 मिल यूपी की है। सोर्स- लोकसभा

लेकिन सिर्फ गन्ना ही चुनावी मुद्दा नहीं, मुद्दे और भी हैं

हालांकि ये भी तय है कि पश्चिमी यूपी में इस बार के चुनाव की धुरी सिर्फ गन्ना नहीं है, उसके अलावा की मुद्दे हैं, जो चुनाव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से प्रभावित करेंगे। किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी भी एक मुद्दा है। कई जगह किसान छुट्टा पशुओं से परेशान हैं। पश्चिमी यूपी की सियासत में इस बार कानून व्यवस्था भी अहम मुद्दा है। तो जातीय समीकरणों की अपनी गुणा-गणित है।

बरेली से लेकर बिजनौर तक बहुत सारे किसान ऐसे मिले जिन्होंने कम गन्ना रेट, गन्ना के बकाए को लेकर बीजेपी की सरकार को घेरा लेकिन कानून व्यवस्था पर सरकार के साथ नजर आए। यशपाल गंगवार जिन्होंने कम रेट और बकाए को लेकर केंद्र और राज्य दोनों को घेरा उन्होंने कहा, "गुंडा राज तो कम हुआ है, रोड पर मोटर साइकिल खड़ी कर दो कोई उठाता नहीं पहले 2 घंटे में चोरी हो जाती थी। वोट मैं अपनी पार्टी को ही दूंगा।"

बिजनौर के मूल निवासी और दिल्ली में रह रहे गौरव कुमार से बिजनौर एक गांव में मुलाकात हुई। दिल्ली में वो मेडिकल इंड्स्टरी में हैं। वो कहते हैं, "14 दिन में किसी का पेमेंट नहीं हुआ लेकिन कोई उसके आसपास पहुंच जाए तो बड़ी बात है। बीजेपी सरकार ने सपा-बसपा का कार्यकाल का भी भुगतान किया है। दूसरा लॉ एंड ऑर्डर भी बड़ा मुद्दा है। यहां लोग अपराध कर गन्ने के खेतों में छिप जाते थे वो क्राइम कंट्रोल हुआ है। स्कूलों जाती लड़कियों से छेड़खानी होती थी वो कुछ हद तक कंट्रोल में अभी बिजली के कम किए है यो सब भी है। दूसरा सुबह मैं दिल्ली से आया दिल्ली-मुजफ्फनगर हाईवे से एक घंटे में मुजफ्फऱनगर था। वोट डालते वक्त ये सब विकास भी दिमाग में रहेगा।"

वो आगे कहते हैं, "गन्ना हमारे यहां इतना ज्यादा है कि चीनी खप नहीं रही। तो इन्होंने इथेनॉल का विकल्प निकाला है, जिसपर इन्होंने (बीजेपी) सरकार ने काम किया है। गन्ना किसानों की समस्या है, लेकिन ये सब भी हैं, क्योंकि सुरक्षित रहोंगे तो सभी काम होंगे।"

ये भी पढ़ें- खेती फिर घाटे का सौदा: डीजल, उर्वरक और पेस्टीसाइड की बढ़ती महंगाई ने घटाया किसान का मुनाफा


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