दूध दही वाले देश के किसानों को चौपट करेंगे अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट
Diti Bajpai 29 Dec 2018 7:52 AM GMT
लुधियाना/लखनऊ। मिल्क पाउडर के स्टॉक से डेयरी किसान और डेयरी इंडस्ट्री उभर नहीं पाई, उन्हीं पशुपालकों के लिए एक और मुसीबत आने वाली है। अमेरिका में बने डेयरी उत्पादों को भारत में आयात किया जाएगा। सरकार के इस फैसले से देश के सात करोड़ डेयरी व्यवसाय से जुड़े लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट के आयात को देश के किसानों, और कारोबारियों के लिए घातक बताते हुए इस सेक्टर से जुड़े लोगों ने विरोध शुरु कर दिया। इकनोमिक्स टाइम में छपी खबर के मुताबिक अमेरिका से डेयरी प्रॉडक्ट्स के आयात को भारत अनुमति देने के लिए तैयार है। शुरू में यह करोबार 700 करोड़ डॉलर का होगा।
ये ख़बर इसलिए भी परेशान करने वाली हैं क्योंकि पंजाब से लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश तक के किसान लगातार ये आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें लागत के मुताबिक दूध का रेट नहीं मिलता। दूध की कीमतों लेकर पिछले वर्षों में कई आंदोलन भी हुए हैं।
देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति के जानकार देविंदर शर्मा ट्विटर लिखा, "मुझे समझ नहीं आ रहा है, भारत अमेरिका की मदद को क्यों तैयार है जबकि उसके खुद के किसान दूध के रेट को लेकर परेशान हैं।'
I don't understand. Why is India always ready to solve other's problems? US is loaded with milk, with dairy sector in severe crisis, is looking for a market to sustain. India is the world's top milk producer, prices ruling low, and is ready to open its market hitting farmers !! https://t.co/QsRQmvqcxH
— Devinder Sharma (@Devinder_Sharma) December 25, 2018
दूध दही के प्रदेश कहे जाने वाले हरियाणा-पंजाब में किसानों की बेहतरी के लिए काम कर रहे खाद्य वैज्ञानिक कमलजीत सिंह फोन पर बताते हैं, ''देश के पशुपालक पहले से ही नकली दूध से परेशान हैं। ऐसे में बाहर से डेयरी प्रोडक्ट आएंगे तो उनकी परेशान बढ़ेगी। सरकारें इसे बिजनेस के तौर पर इसको देख रही हैं, लेकिन इस फैसले से भारत में दूध का करोबार चौपट हो जाएगा।''
आयात के फैसले के दूरगामी नुकसान गिनाते हुए कमलजीत कहते हैं, "एक अनुमान 60-65 करोड़ लीटर रोजाना की दूध की खपत है, अभी इसका आधा हिस्सा पाउडर से पूरा किया जाता हैं। जिससे किसानों को दाम नहीं मिलते हैं। बाहरी उत्पाद आने से बड़े स्तर के किसान भी इस व्यवसाय को छोड़ देंगे।' कमलजीत जिस मिल्क पाउडर की बात कर रहे हैं, ये वही पाउडर है जो कुछ साल पहले डेनमार्क और नीदरलैंड जैसे देशों से मंगवाया गया था, पाउडर से दूध बनाना सस्ता पड़ता है लेकिन इससे देसी दुग्ध उत्पादकों पर खासा असर पड़ा।
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दूसरी बड़ी समस्या नकली यानी मिलावटी दूध भी है। एनीमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलूवालिया ने अपनी एक रिपोर्ट में सितंबर 2018 में कहा था कि देश में बिकने वाले 68 फीसदी दूध और उससे बने उत्पाद नकली हैं। देश में दुग्ध की स्थिति को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को भारत को एडवाइजरी तक जारी करनी पड़ी थी।
''अमेरिका से डेयरी उत्पाद आते हैं तो हमारी अपनी जो डिमांड है दूध और उनके उत्पाद के लिए वो धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। जब रेट नहीं मिलेगा तो किसान जानवर रखना ही बंद कर देगा। अगर ऐसा हुआ तो हमारी जो पशु संपदा है वो खत्म हो जाएगी। और अमेरिका से आने वाले डेयरी उत्पाद मनचाहे दामों में इन उत्पादों को बेचेंगे।'' मेरठ के केंद्रीय गोवंश अनुसंधान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संजीव कुमार वर्मा बताते हैं।
भारत पिछले 15 वर्षों से विश्व में नंबर एक है। पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, "चार साल में दूध के उत्पादन में करीब 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2018 में 155.50 मीट्रिक टन वार्षिक दुग्ध उत्पादन के साथ भारत पहले स्थान पर है।"
मैंने आज नास कॉम्प्लेक्स, पूसा, नई दिल्ली में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित किया। #NationalMilkDay pic.twitter.com/nBjpl3y9vY
— Radha Mohan Singh (@RadhamohanBJP) November 26, 2018
आयात को लेकर हंगामा इसलिए भी है, क्योंकि अमेरिका के इस कदम को उसके अपने किसानों के हित में बताया जा रहा है। अमेरिका में पिछले एक दशक में दूध के दाम न मिलने से हज़ारों डेयरी फार्म बंद हो चुके हैं कई किसानों में आत्महत्या भी कर ली है। डेयरी सेक्टर पर लिखने वाली वेबसाइट सिविल ईट्स में प्रकाशित लेख के अनुसार अकेले न्यूयार्क राज्य में 2006 से 2016 तक 1600 डेयरी फार्म बंद हो चुके हैं और 2018 में दर्ज़नों डेयरी फार्म बंद होने की कगार पर है। ऐसे में भारत ने अमेरिका की मदद करने के लिए यह फैसला लिया है।
यूनाईटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका चीन को 52 प्रतिशत मिल्क पाउडर का निर्यात करता था, लेकिन व्यापार युद्ध के बाद चीन ने अमेरिका से आने वाले मिल्क पाउडर पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा दिया, जिसके बाद अमेरिका ने भारत की तरफ रूख किया।
देविंदर शर्मा अपने ट्वीट में यही सवाल उठा रहे थे, "अमेरिका का डेयरी उद्योग मुश्किल में है। उसे एक बाजार चाहिए जहां वो अपने प्रोडक्ट खपा सके। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है लेकिन यहां भी रेट की समस्या है, ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट के आयात का फैसला देश के किसानों को नुकसान पहुंचाएगा।"
डेयरी सेक्टर के जानकार एम एस तरार ने बताया, ''कनाडा में डेयरी किसानों को सबसे अच्छे दूध के दाम मिल रहे हैं। क्योंकि उस देश की नीति अच्छी है जितनी आवश्यकता है उतना ही पैदा कर रहे हैं। अमेरिका ने कनाडा देश को दूध बेचने की मांग की थी लेकिन कनाडा की सरकार ने किसानों के हित में काम किया और दूध नहीं आने दिया।''
महाराष्ट्र में वर्ष 2017 और 2018 में दूध को लेकर किसान सड़क पर उतरे। किसानों समतियों को दिए जाने वाले दूध में कम से कम पांच रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे। क्योंकि उनका खर्च नहीं निकल रहा था। पंजाब में कई किसानों गाय-भैंसों की संख्या घटा रहे हैं।
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पंजाब के मोगा जिले जसविंदर सिंह की डेयरी में 15 से 20 भैंसे थी लेकिन धीरे-धीरे भैंसे उन्होंने बेच दी। अब परिवार के लिए दूध निकल आए उसके लिए दो भैंस बची है। जसविंदर बताते हैं, "पहले के मुकाबले अब गाय-भैंसों को पालना मुश्किल हो रहा है। पहले जमीन थी चारा उगाते थे लेकिन अब उनको खिलाने के लिए बाजार से ही खरीदना पड़ता है। और दूध के उतने अच्छे रेट नहीं मिलते। ऐसे में किसान गाय-भैंसे कम कर रहे हैं।" जसविंदर के दावों पर कैटल फीड के बढ़े दाम मुहर लगाते नजर आते हैं। पहले कैटल फीड का 50 किग्रा का बैग 500 रुपए का था, वही अब 1000 रुपए में मिलता है।
पशु उत्पाद बनाने वाली फर्म आयुर्वेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप कालरा बताते हैं, "अगर ऐसा होता है तो देश के पशुपालकों को नुकसान होना तय है। लेकिन हमने सुना है कि सरकार में ही कुछ लोगों ने कहा ऐसा होने नहीं देंगे।'
एक कंंपनी के सहायक उपाध्यक्ष ने गाँव कनेक्शन को बताया, ''हमारे देश में जो डेयरी किसान है वो पहले से ही दूध के दाम को लेकर परेशान है। सरकार का यह फैसला है गलत सिंगनल है किसानों के लिए। लेकिन अमेरिका से आने वाले डेयरी उत्पादों का डेयरी सेक्टर पर कुछ खास असर नहीं डालेगा क्योंकि भारत में दूध की खपत भी सबसे ज्यादा है। और अभी अमेरिका से 700 करोड़ डॉलर का करोबार होगा। जबकि भारत में 80 हजार करोड़ रूपए की मिल्क मार्केंट है, जिसमें 80 प्रतिशत असंगाठित है अगर इनको संगाठित किया जाए तो यह मार्केंट बढ़कर करीब ढेड़ हजार करोड़ हो जाएगा। लेकिन लगातार ऐसा ट्रेंड चलता रहा तो किसानों को दिक्कत हो सकती है।"
दुनिया के डेयरी सेक्टर के लिए बाजार खोलने को भारत में प्रति व्यक्ति उपलब्धता से जोड़ा जा सकता है। देश भले ही दुग्ध उत्पादन में नंबर एक हो लेकिन पर कैपिटा दूध काफी कम है। यानि औसतन एक व्यक्ति के लिए जिनता दूध है वो काफी कम है।
लेकिन इस सवाल का उत्तर तलाशेंगे तो उस पशु पर भी गौर करना होगा, जो पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय सुर्खियों में है। गाय का नाम लगातार अख़बारों में टीवी में रहता है। भारत में गाय भले ही पूज्यनीय हो लेकिन उसका दूध सस्ते में बिकता है, क्योंकि उसमें फैट कम होती है, दूसरा गायों की उत्पादकता भी काफी कम रही है। गाय किसानों की आमदनी का जरिया बने इसलिए सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन शुरु किया है। ऐसे में छुट्टा जानवरों और कम रेट से जूझ रहे किसानों के लिए अमेरिका से डेयरी प्रोडक्ट का आयात नुकसान दायक साबित हो सकता है।
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कृषि मामलों के जानकार रमनदीप मान कहते हैं, "मान लीजिए अभी आयात की बात 700 करोड़ की है, धीरे-धीरे ये बढ़ेगा ही, दूसरा अमेरिकी कंपनियां जबरदस्त ब्रांडिंग करेंगी, वो भी यहां के किसानों को नुकसान पहुंचाएगी।"
खबर के मुताबिक अमेरिका को भारत को यह गारंटी देनी होगी कि वो सिर्फ ऐसे पशुओं का दूध और उनके उत्पाद आयात करेगा, जिन्होंने कभी मांसाहरी चारा न खाया हो। भारत ने अमेरिका को ये सीधा जवाब देते हुए कहा कि उसे डेयरी प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट की इजाजत तभी मिलेगी जब उसकी ओर से पशुचिकित्सकों से प्राप्त एक सर्टिफिकेट देना होगा।
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